हेग की अदालत में पाक को पटकनी

Publsihed: 17.Jul.2019, 20:30

अजय सेतिया / नरेंद्र मोदी की हेग की अतर्राष्ट्रीय अदालत का दरवाजा खटखटाने की रणनीति सफल रही | हेग  की अदालत ने बुधवार को भारत के पक्ष में फैसला दे दिया | सोलह में से 15 जज भारत के साथ खड़े हुए | कुलभूषण जाधव को सजा-ए- मौत पर अनिश्चित कालीन रोक लग गई है | अंतर्राष्ट्रीय अदालत ने माना कि पाकिस्तान ने भारतीय उच्चायोग को मिलने नहीं दे कर विएना कन्वेंशन का उलंघन किया | यह पाकिस्तान के स्टेंड की हार है | जिस ने जाधव पर जासूसी का आरोप लगा कर भारतीय उच्चायोग को उन्हें मिलने नहीं दिया था |  भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था | कुलभूषन जाधव के मामले में नरेंद्र मोदी ने चौंकाने वाला फैसला किया था | दो साल की कड़ी मेहनत कामयाब रही | जहां मोदी की कूटनीतिक यात्राओं ने काम किया होगा | वहां भारत की तरफ से पेश हुए वकील हरीश साल्वे ने भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया | फैसले को हरीश साल्वे ने भारत की जीत बताया | एक वकील के नाते यह उन की सफलता थी | साल्वे को भेजना  नरेंद्र मोदी , अरुण जेटली और सुषमा स्वराज का साझा फैसला था | अपन पहले पाक के खिलाफ कभी हेग की अदालत में नहीं गे थे | अलबत्ता 1999 में जब अपन ने पाकिस्तान का हवाई जहाज रण-आफ-कच्छ में गिराया था | तब पाकिस्तान भागा भागा हेग गया था | तब सोली सोराबजी अपने अटार्नी जनरल थे | उन ने हेग की अदालत में दो तर्क रखे | पहला तर्क - गिराया गया पाकिस्तान नेवी का लड़ाकू विमान था | जो 1991 के भारत-पाक समझौते का उलंघन था | जिस के मुताबिक़ लड़ाकू विमान सीमा के 10 किलोमीटर के दायरे में नहीं आ सकते | सोली सोराबजी की दूसरी दलील कामनवेल्थ समझौते की थी | जिस के मुताबिक़ आपसी विवाद आपस में हल होंगे | सो दलील यह थी हेग की अदालत को दखल का हक नहीं |  फैसले में हेग अदालत ने माना अंतर्राष्ट्रीय अदालत की जुरीडिक्शन का मामला नहीं | अब जब पाकिस्तान की फ़ौजी अदालत ने कुलभूषण जाधव को सजा-ए-मौत सुनाई | तो अपन खुद पहली बार हेग की अदालत में पाकिस्तान के खिलाफ गए |  हेग की कोर्ट में जाना मोदी सरकार की बदली हुई नीति का सबूत था  | अपन उस डर से बाहर निकले हैं | पाकिस्तान कश्मीर पर अन्तर्राष्ट्रीय दखल की कोशिश करता रहा | अपन इसे ठुकराते रहे | इस बार भी अपने विदेश मंत्रालय के अफसर मोदी को वही डर दिखा रहे थे | सौरभ कालिया के मामले में वाजपेयी,मनमोहन ,मोदी को डराते रहे | मोदी का यह फैसला सरबजीत से सबक लेकर था | जिसे अपन कूटनीति से बचा नहीं पाए | मोदी यह कदम नहीं उठाते | तो मोदी के समर्थक ही खिलाफ हो जाते | मोदी की विश्वसनीयता का सवाल था | मोदी के इस फैसले ने पाकिस्तान में खलबली मचा दी थी | पाक सेना में भी खलबली मची | पाकिस्तान पूरी तरह कन्फ्यूज हो गया | मई 2017 में जब हेग की अदालत में सुनवाई हुई | तो अपनी तरफ से मशहूर वकील हरीश साल्वे ने मौटे तौर पर दो दलीलें दी थीं | पहली- कुलभूषण भारतीय सेनिक नहीं , नागरिक है | पाकिस्तान ने बार बार कहने के बाद भी काउंसलर एक्सेस नहीं दी | जो विएना कन्वेंशन के मुताबिक़ जरुरी थी | यह मानवाधिकार का मामला है | उन ने कहा हेग की अदालत को दखल देने का पूरा हक है , वह दखल दे और फांसी पर रोक लगाए |  दूसरी दलील थी -पाकिस्तान झूठ बोल रहा है | कुलभूषण को ईरान से लाया गया | उसे बलूचिस्तान में पकड़ा दिखाया गया | पाकिस्तान की तरफ से खावर कुरैशी प्रमुख वकील के तौर पर पेश हुए | हालांकि पाकिस्तान कन्फ्यूज था | उस ने कहा पाकिस्तान को थोड़ा समय मिला | यानि पाकिस्तान ने उम्मींद नहीं की थी कि मोदी ऐसा कदम उठा सकते हैं | पर खावर कुरैशी बचाव मुद्रा में नहीं | अलबत्ता हमलावर थे | उन ने दो नए खुलासे किए | पहला -पाकिस्तान ने भारत को एक बंद लिफाफा सौंपा था | जिस में कुलभूषण के बताए 13 नाम थे | दूसरा- कुलभूषण जाधव का पासपोर्ट हुसैन मुबारक के नाम से था | जाधव के फोटो वाला हुसैन मुबारक के नाम का भारतीय पासपोर्ट अदालत में दिखाया गया | पहले पाकिस्तान उस के नाम से पासपोर्ट की बात बताता रहा था | अचानक यह नया पासपोर्ट कहा से आया | वह कुलभूषण के कबूलनामें की वीडियो भी दिखाना चाहते थे | जिस को देख को साफ़ लगता है कि वह जोड़-तोड़ कर बनाई गयी | पर अदालत ने उतना समय नहीं दिया | अपने साल्वे की दलीलें मानवाधिकार के इर्द-गिर्द थीं | कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को ले कर थी | तो पाकिस्तान पूरी तरह कन्फ्यूज्ड था | पहले तैयारी का समय कम मिलने की बात कही | फिर कहा कि संयुक्त राष्ट्र की बात मानने को बाध्य नहीं | फिर कहा अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट का अधिकार क्षेत्र ही नहीं | अब सवाल खडा होता है कि अगर हेग की अदालत का अधिकार नहीं मानते | तो पाकिस्तान को पेश होने की जरुरत क्या थी | फिर काउंसलर एक्सेस के अधिकार को नकारा | यानी पूरी तरह कन्फ्यूज्ड | अपन कांउन्सलर एक्सेस पर पाक की दलील का कारण बताते जाएं | आपसी  काउंसलर एक्सेस पर 2008 में भारत-पाक समझौता हुआ था | प्रणव मुखर्जी तब अपने विदेश मंत्री थे | उन ने समझौते पर दस्तखत किए थे | पाकिस्तान ने उसी को आधार बनाया | उस में लिखा है मामला सुरक्षा का हो ,तो जानकारी देना या काउंसलर एक्सेस जरुरी नहीं | हरीश साल्वे पहले ही बता चुके थे - 2008 का समझौता यहाँ लागू नहीं होता | काउंसलर एक्सेस के विएना समझौते में एक शर्त है | यह शर्त आर्टिकल 102 में लिखी है | जिस के मुताबिक़ आपसी समझौते यूएन में रजिस्टर्ड होना चाहिए | तभी लागू होंगे | पर खुदा का शुकर है कि यह समझौता यूएन में अभी तक रजिस्टर्ड नहीं | हालांकि बहरीन और कुवैत के मामले में हेग अदालत ने रजिस्टर की बात नहीं मानी थी | अपन ने कोर्ट के फैसले का दो साल इन्तजार किया | हालांकि अपन को आपली सफलता तो तभी मिल गई थी | जब हेग की अदालत ने मसजा-ए-मौत पर अस्थाई रोक लगा दी थी |  

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