युद्ध की राजनीति में कौन दूध का धुला

Publsihed: 03.Mar.2019, 19:16

अजय सेतिया / विंग कमांडर अभिनंदन सकुशल भारत लौट आया | देश के साथ मोदी सरकार ने भी राहत की सांस ली है | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 फरवरी को पाक पर एयर स्ट्राईक के बाद चुरू में छप्पन इंची छाती दिखाते हुए कहा था कि देश नहीं झुकने देंगे | लेकिन अगले दिन जैसे ही विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को बंदी बनाए जाने की खबर आई , मोदी सरकार की सांस फूली हुई थी ,क्योंकि विपक्ष को सरकार के खिलाफ राजनीतिक माहौल बनाने का मौक़ा मिल गया था | भारत सरकार ने 1949 की तीसरी जिनेवा संधि का हवाला देकर पाकिस्तान से गुहार लगाई कि पायलट को बिना कोईनुक्सान पहुंचाए , तुरंत लौटाया जाए |

इस मुद्दे पर उमर अब्बदुला का ट्विट काबिल-ए-गौर है, उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को नसीहत दी थी कि अन्तराष्ट्रीय दबाव में पायलट को भेजना पड़े, इससे पहले वह खुद ही पायलट को वापस भेज दें | पाकिस्तान अभिनंदन का इस्तेमाल वैसे ही करना चाहता जैसे कोई अपहरण कर के फिरौती की मांग करता है | मोदी सरकार की तारीफ़ करनी पड़ेगी कि उन्होंने बिना शर्त, बिना कोई नुक्सान पहुंचाए तुरंत अभिनंदन को भारत के हवाले करने की चेतावनी दी | पाकिस्तान इस धमकी का मतलब समझता था | इसलिए उसने 24 घंटे के भीतर ही अभिनंदन को वापस भेज कर अन्तर्राष्ट्रीय जगत में सब से कम समय में बंदी लौटाने का रिकार्ड बना लिया |

लेकिन 24 घंटे तक विपक्ष का पायलट को लेकर माहौल खराब करना आश्चर्यजनक है | जिस से देश में निराशा का वातावरण पैदा हुआ | अगर कांग्रेस का यह आरोप है कि मोदी पाकिस्तान के खिलाफ की गई कार्रवाई का चुनावी फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, जो काफी हद तक सही है , तो कांग्रेस का रिकार्ड भी कोई इस से बेहतर नहीं है | इंदिरा गांधी ने तो 1971 के युद्ध का लाभ उठाने के लिए लोकसभा के चुनाव समय से पहले करवा दिए थे | युद्धबंदियों के मामले भी कांग्रेस की सरकार का रिकार्ड बेहतर नहीं है | इंदिरा गांधी ने 1971 के बाद जल्दबाजी में जुल्फकार अली भुट्टो से समझौता तो कर लिया था, लेकिन 54 युद्धबंदी अभी तक वापस नहीं आ सके, उनमें भी एक विंग कमांडर हरसरन सिंह गिल और 4 स्क्वाड्रन लीडर समेत वायुसेना के 25 पायलट शामिल हैं ।

आश्चर्यजनक है कि पाकिस्तान के 93,000 युद्धबंदियों की रिहाई में 54 भारतीय सेनिकों की वापसी सुनिश्चित नहीं की गई थी, जिन में विंग कमांडर हरसरन सिंह गिल, फ्लाइट लेफ्टिनेंट वी. वी. तांबे , फ्लाइंग ऑफिसर सुधीर त्यागी और भारतीय सेना के कैप्टन गिरिराज सिंह, कैप्टन कमल बख्शी भी शामिल थे | जिनके पाकिस्तानी जेलों में बंद होने के पुख्ता सबूत सार्वजनिक रूप से उपलब्ध थे, लेकिन पाकिस्तान ने युद्ध बंदियों की सूची में इनको नहीं दिखाया | जबकि युद्ध की समाप्ति के 11 दिन बाद 27 दिसम्बर 1971 को भारतीय सेना के मेजर ए.के. घोष का पाकिस्तान की जेल में बंदी अवस्था का चित्र अमेरिकी पत्रिका टाईम्स ने प्रकाशित किया था | इस के बावजूद भारत सरकार ने ऐसी तेजी नहीं दिखाई, जैसी नरेंद्र मोदी सरकार ने दिखाई है |

4 मार्च 1988 को पाकिस्तान की जेल से रिहा होकर भारत आये दलजीत सिंह ने बताया था कि उसने  फरवरी 1978 में फ्लाइट लेफ्टिनेंट वी.वी. तांबे को लाहौर के पूछताछ केंद्र में देखा था । 5 जुलाई 1988 को पाकिस्तानी कैद से रिहा होकर भारत लौटे मुख्तार सिंह ने बताया था कि कैप्टन गिरिराज सिंह कोट लखपत जेल में बंद हैं । मुख्तार ने 1983 में मुल्तान जेल में कैप्टन कमल बख्शी को भी देखा था । उनके मुताबिक उस समय बख्शी मुल्तान या बहावलपुर जेल में थे । इसी तरह के कई और चश्मदीद लोगों की रिपोर्ट भी अलग अलग समय पर उन 54 भारतीय युद्धबंदियों के परिजनों के पास लगातार आती रहीं हैं ।

 

फ्लाइंग ऑफिसर सुधीर त्यागी का विमान भी 4 दिसंबर 1971 को पेशावर में फायरिंग से गिरा दिया गया था और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था । अगले दिन पाकिस्तान रेडियो ने इस बारे में घोषणा की थी और पाकिस्तानी अखबारों ने भी इस खबर को छापा था। इसके बावजूद पाकिस्तान लगातार यही कहता रहा है कि ये 54 लोग उसकी जेलों में बंद नहीं हैं, जबकि उनके परिजनों का मानना था कि ये लोग पाकिस्तान की जेलों में कैद हैं।

 

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