जलिकट्ट मुद्ददे में भाजपा का वार कांग्रेस पर

Publsihed: 21.Jan.2017, 00:39

भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गिज ने जलिकट्टू मुद्दे पर आज एक बयान जारी कर विवाद पर सिलसलेवार ब्योरा देते हुए कांग्रेस पर जोरदार हमला बेला है। 

2006:
मद्रास हाई कोर्ट ने रेकला (बैलगाड़ी दौड़) आयोजित करने की अनुमति के लिए प्राप्त एक अन्य याचिका की सुनवाई के दौरान जल्लीकट्टू पर रोक लगा दी थी।
 
2009:
तमिलनाडु सरकार ने रेगुलेशन ऑफ़ जल्लीकट्टू एक्ट (TNRJA) पास किया जिसके तहत जल्लीकट्टू किसी भी वर्ष में जनवरी और मई के बीच आयोजित करने की सशर्त अनुमति दी।
 
नवम्बर 2010:
सुप्रीम कोर्ट ने भी (TNRJA) के प्रावधानों के अंतर्गत किसी भी वर्ष में जनवरी से प्रारंभ होकर पांच महीनों के लिए जल्लीकट्टू आयोजित करने की सशर्त अनुमति दी।

11 जुलाई 2011:
कांग्रेस के जयराम रमेश के आधीन वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने जल्लीकट्टू में भाग लेने वाले बैलों पर प्रतिबन्ध लगाया।
परिणामस्वरूप तमिलनाडु के परम्परागत खेल जल्लीकट्टू पर रोक लग गई।

7 मई 2014:
सुप्रीम कोर्ट ने (TNRJA) को रद्द करते हुए खेल को पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया।उस वक्त भी केंद्र में यू पी ए सरकार ही थी।

जनवरी 2016:
मोदी सरकार के तहत पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2011 की अधिसूचना (नोटिफिकेशन) में संशोधन किया, तदानुसार महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात राज्यों में जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ के लिए कुछ विशेष शर्तों के साथ अनुमति दी गई।

जुलाई 2016:
कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी के प्रतिनिधित्व में पशु कल्याण मंडल और पेटा द्वारा दायर याचिका पर निर्णय देते हुए सुप्रीमकोर्ट ने  मोदी सरकार के निर्णय को पलट दिया और एक बार फिर से जल्लीकट्टू प्रतिबंधित किया।

मई 2016:
कांग्रेस पार्टी ने तमिलनाडु में 2016 के चुनाव में जारी अपने मेनिफेस्टो में (चुनाव घोषणापत्र में) वायदा किया था कि यदि वह जीतेगी तो जल्लीकट्टू को प्रतिबंधित करेगी।

भाजपा महासचिव कैलाश विजयवगिय ने कहा कि प्रश्न यह है कि:वर्ष 2011 में जयराम नरेश ने जब जल्लीकट्टू जरूर रुके ऐसा तयशुदा कार्य किया तब डी एम के, ए आई डी एम के और कांग्रेस क्या कर रहे थे? 

उन्होने कहा वस्तुतः सच्चाई यह है कि केवल भाजपा और भाजपा ही तमिलनाडु के लोगों के साथ खड़ी हुई है और जल्लीकट्टू मनाने के उनके अधिकार की उसने रक्षा की है।पूरा मामला माननीय न्यायलय के विचाराधीन है अतः हमें अंतिम न्यायिक निर्णय की प्रतीक्षा करना चाहिए।

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