चुनावों में काले धन पर प्रहार

Publsihed: 12.Apr.2019, 10:49

अजय सेतिया / यह एक अच्छा कदम है कि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करने के बाद जिस तरह उद्योगपतियों को सरकारी सम्पदा लुटा कर काला धन हासिल करती हैं, उस की पोल खुल रही है | 

 

          

चुनाव प्रचार अपने न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया है | चुनाव आयोग को सरकार की हर गतिविधि पर दखल देना पड रहा है , आयोग की भी सम्भवत ऐसी किरकिरी पहले कभी नहीं हुई होगी , जैसी इस बार हो रही है | हर रोज चुनाव आयोग को नए तरह की शिकायत का सामना करना पड़ रहा है | कभी चुनाव में सेना के शौर्य को भुनाने की शिकायत तो कभी आयकर विभाग की छापेमारी पर शिकायत |
 

पहली बार सरकारी एजेंसियां चुनाव में धन का इस्तेमाल रोकने के प्रयास कर रही हैं , इस से पहले पिछले तीन चार चुनावों से चुनाव आयोग ने अपने प्रवेक्षकों के माध्यम से चुनाव ने धन बल रोकने का प्रयास जरुर किया था, इन्हीं प्रयासों के अंतर्गत वाहनों की चेकिंग में करोड़ों रूपए का कैश पकड़ा जाता रहा है | जब निजी वाहनों की चैकिंग में कैश पकड़ा जाने लगा तो राजनीतिक नेताओं ने ट्रेन और बसों के माध्यम से कैश का आवागमन शुरू कर दिया था , कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सरकारी बस की छत से नोटों से भरी गठरियाँ पकड़ी गई थीं | इस बार चुनावों से पहले आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय भी सक्रिय हो गया है | पिछले छह महीनों में राजनीतिक नेताओं , उन के रिश्तेदारों और उन के करीबियों पर 15 से ज्यादा जगहों पर छापे मार कर सैंकड़ों करोड़ का काला धन पकड़ा गया है |

 

विपक्ष का आरोप है कि सरकार के इशारे पर राजनीतिक विद्वेष के चलते विरोधी नेताओं पर छापे मारे जा रहे हैं | यानी उन का कहने का मतलब है कि सरकारी एजेंसियां सिर्फ विपक्षी नेताओं का काला धन पकड़ रही है, भाजपा और उस के सहयोगी नेताओं का काला धन नहीं पकड़ रही | इस तरह चुनाव आयोग को शिकायत करने वाले यह तो मान रहे हैं कि पकड़ा जा रहा काला धन उन का है और वे उसे चुनाव में इस्तेमाल करने वाले थे | सब से ताज़ा छापा कांग्रेस के अकाऊँटेंट एस.एम. मोईन के घर पर मारा गया , जिस पर कांग्रेस के अकसर मौन रहने वाले नेता अहमद पटेल तक ने कड़ी आलोचना की है | उन्होंने सरकार पर फौन टेपिंग का भी आरोप लगाया है | विपक्षी दलों की शिकायत पर चुनाव आयोग को कहना पडा है कि सरकारी एजेंसियों को निष्पक्ष रह कर अपनी कार्रवाई करनी चाहिए और अपनी कार्रवाई से चुनाव आयोग को अवगत भी करवाना चाहिए | इस से स्पष्ट है कि सरकारी एजेंसियां चुनाव आयोग को अपने छापों और उस में पकड़े गए धन के बारे में अवगत नहीं करवा रहीं थी |

 

अब चुनाव आयोग यह तो कह नहीं सकता कि आर्थिक अपराध रोकने वाली एजेंसियां विपक्ष के नेताओं से जुड़े ठिकानों पर छापेमारी न करें , जो असल में शिकायत कर्ताओं की मांग है | हर सत्ताधारी दल किसी न किसी तरीके से अपनी पार्टी के लिए सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल करता रहा है , यह भी उसी कड़ी में ही है , लेकिन यह एक अच्छा कदम है कि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करने के बाद जिस तरह उद्योगपतियों को सरकारी सम्पदा लुटा कर काला धन हासिल करती हैं, उस की पोल खुल रही है |  

 

राजनीतिक गलियारों में यह अक्सर कहा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में सपा , बसपा का काला धन रोकने के लिए नोट बंदी जैसा कदम उठाया था | पाठकों को याद होगा कि नोटबंदी से सर्वाधिक तकलीफ मायावती को हुई थी , क्योंकि उन का सारा पैसा कैश में ही आता है | मोदी ने 2017 में क़ानून में संशोधन करते हुए राजनीतिक दलों के लिए कैश डोनेशन लेने की सीमा 20000 रूपए से घटा कर सिर्फ 2000 रूपए कर दी थी , अब राजनीतिक दलों को यह बताना भारी पड रहा है कि उन के पास यह इतना कैश आया कहाँ से |   

         

 

आपकी प्रतिक्रिया