1971 की जंग जीतने का श्रेय किस ने लिया था.

Publsihed: 08.Oct.2016, 14:34

अजय सेतिया / सर्जिकल स्ट्राईक की घोषणा के तुरंत बाद कांग्रेस सदमे में थी. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तुरंत पार्टी के वरिष्ट नेताओ की बैठक बुला कर सलाह ली . सोनिया गांधी को सलाह दी गई थी कि सरकार के निर्देश पर सेना ने आप्रेशन किया है, इसलिए पार्टी के पास समर्थन करने के सिवा कोई विकल्प नहीं है. उसी शाम हुई सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस ने सरकार और फौज दोनो को बधाई दी. सिर्फ मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के सीता राम येचुरी ने कश्मीर समस्या हल करने और पाकिस्तान के साथ बातचीत करने की वकालत की थी. 

सर्जिकल स्ट्राईक का निर्णय प्रधानमंत्री स्तर पर हुआ था. बिलकुल उसी तरह जिस तरह इंदिरा गांधी ने अप्रेल 1971 में बुलाई केबिनेट बैठक में विशेष तौर पर आमंत्रित जनरल मानेकशाह से पूछा था कि क्या पाकिस्तान पर हमला किया जा सकता है. ( मानेकशाह ने तैयारी का समय मांगा था,और जंग 3 दिसम्बर 1971 को शुरु हुई थी ). उरी की सेनिक छावनी पर आतंकी हमला 18-19 सितम्बर की रात में हुआ था और प्रधानमंत्री ने 20 सितम्बर को सुरक्षा मामलो की केबिनेट कमेटी में पाकिस्तान के आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरो को नष्ट करने के लिए बैठक में बुलाए गए सेनाध्यक्ष को सर्जिकल स्ट्राईक की हरी झंडी दी थी. सेनाध्यक्ष ने सात आठ दिन मांगे थे.

28 सितम्बर की रात को हुए सफल सर्जिकल स्ट्राईक की रात भर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने रात भर लाईव मोनिटरिंग की. सुबह सुरक्षा मामलो की कमेटी की बैठक के तुरंत बाद मिलट्री आप्रेशन के डायरैक्टर जनरल ने सफल आप्रेशन का एलान किया. बांग्लादेश को मुक्त करवाने के लिए जनरल मानेकशाह की रहनुमाई ने 1971 की जंग लडी गई थी. पाकिस्तान सेना के जनरल ए.ए.ए.नियाजी की रहनुमाई में जब पाक फौजो ने 16 दिसम्बर को शाम साढे चार बजे लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोडा के सामने आत्मसमर्पण किया . उस समय इंदिरा गांधी साऊथ ब्लाक स्थित पीएमओ में स्वीडिश टेलीविजन को इंटरव्यू दे रही थी, उन्हे मानेकशाह का फोन आया कि पाक फौज ने आत्मसमर्पण कर दिया है. इंदिरा गांधी ने स्वीडिश टीवी के क्रू को इंतजार करने को कहा और तुरंत संसद भवन जा कर 5.30 पर संसद में सफल आप्रेशन की घोषणा की. संसद में उन्हे बधाईया दी गई ,कांग्रेस के सांसदो ने उन की तारीफ में कसीदे गढे. इंदिरा गांधी को वही पर ( संसद में ही ) दुर्गा की उपाधी मिली थी. जो कांग्रेस के किसी नेता ने नहीं दी थी, अलबत्ता विपक्ष के एक नेता ने दी थी, क्योंकि तब राजनीति इतनी गिरी हुई नहीं थी.

अगले दिन 1,सफदरजंग पर ढोल नगाडे बजे थे. देश भर में सेना को बधाईयो के साथ इंदिरा गांधी जिंदाबाद के नारे लगे थे. पर 45 साल बाद देश की राजनीति बहुत गिर चुकी है, विपक्ष के नेताओ को प्रधानमंत्री जिंदाबाद के नारे पसंद नहीं . वे उस कठोर निर्णय पर प्रधानमंत्री को बधाई देने को तैयार नही. जिनके निर्णय और आदेश पर सेना ने सर्जिकल स्ट्राईक को सरअंजाम दिया. प्रधानमंत्री के आदेश के बिना भारतीय सेना सर्जिकल स्ट्राईक नहीं कर सकती थी. जैसे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का आदेश प्राप्त किए बिना मानेकशाह पाकिस्तान पर चढाई नहीं कर सकते थे.  बांग्लादेश के सफल सैन्य आप्रेशन के बाद मानेकशाह को फिल्डमार्शल के पद और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, लेकिन खुद इंदिरा गांधी ने भारत रत्न ले लिया, जो देश का सर्वोच्च सम्मान है.. 

प्रधानमंत्री मोदी ने सभी मर्यादायो का पालन किया, न तो उन्होने खुद प्रेस कांफ्रेन्स बुला कर सर्जिकल स्ट्राईक की घोषणा की, न ही अपने रक्षामंत्री को आगे किया, वह ऐसा कर सकते थे. क्योंकि पठानकोट और उरी में हुई आतंकवादी वारदातो पर देश उन से जवाब मांग रहा था. देश सेना से जवाब नहीं मांग रहा था. सात रेसकोर्स पर बधाईयो का तांता लग सकता था, भाजपा कार्यालय में भी ढोल नगाडे बज सकते थे. स्वाभाविक है, जनता के ताने सुन रहे भाजपा नेताओ और कार्यकर्ताओ के लिए राहत और खुशी की बात थी कि उन का नेता नरेंद्र मोदी बयान बहादुर या कागजी शेर नहीं निकला,जैसा कहा था, भले ही वैसा नहीं किया, पर चुप्पी साध कर तो नही बैठा. कई सालो से सुन रहे थे कि रोज रोज के सीज़ फायर उलंघन से परेशान भारतीय सेना मुह तोड जवाबी कार्रवाई की इजाजत मांग रही है, लेकिन प्रधानमंत्री इजाजत नही दे रहे. 

29 सितम्बर को सर्वद्लीय बैठक में सरकार और सेना को दी गई बधाई का कार्यकाल बहुत छोटा रहा, जैसे ही भाजपा काडर ने अपने नेताओ को बधाईया देनी शुरु की, सेना के सर्जिकल स्ट्राईक पर सवाल उठने शुरु हो गए. अरविंद केजरीवाल को भले ही ज्यादा गम्भीरता से नही लिया जाता, लेकिन वह दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, सर्जिकल स्ट्राईक पर उनका बयान पाकिस्तान के लिए तो बिल्ली के भागो छिका फूटने वाला था, क्योंकि उन्होने वही लाईन ली थी, जो तख्ता पलट की आशंका से घबराए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने ली थी. केजरीवाल को अब भारत की जनता बेहतर जानती है, लेकिन कांग्रेस के प्रवक्ता संजय निरुपम का यह कहना कि उन के हिसाब से कोई सर्जिकल स्ट्राईक हुआ ही नही, दुर्भाग्यपूर्ण था. वह कौन से रक्षा विशेषज्ञ हैं, सेना का अपमान और देश की भावनाओ को आहत कर के अपनी पत्नी के माध्यम से अपनी सुरक्षा मांगने वाले महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष संजय निरुपम को बताना चाहिए कि सेना में उन का कौन सा सूत्र था, जिसने उन्हे यह ज्ञान दिया था. 

इतना क्या कम था कि देश पर 55 साल राज करने वाली 131 साल पुरानी कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी का अटपटा सा बयान आ गया, जिस ने राजनीति के गिरते स्तर का बोध करा दिया. जंतर- मंतर में अपने भाषण के समय तैश में आ कर नरेंद्र मोदी को सम्बोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि जिन सेनिको ने खून दिया, आप उनके खून के पीछे छिप रहे हो, उन के खून की दलाली कर रहे हो. अब इस जुमले का कोई मतलब नहीं. वह क्या कहना चाहते थे,किसी को समझ नहीं आया, पर भाजपा को तो मौका चाहिए था, उस ने तुरंत लपका और खुद अमित शाह ने आ कर राहुल गांधी के खिलाफ मोर्चा सम्भाल लिया, अब राहुल का बचाव करना कांग्रेस की मजबूरी थी और घटिया स्तर की तू-तू,मै-मै शुरु हो गई. कांग्रेस ने बयानो को फिरकी तरह घुमाने वाले कपिल सिब्बल को उतारा.कपिल सिब्बल का हमला इतना भारी था कि भाजपा ने जवाबी हमले के लिए उतने ही बडे वकील रवि शंकर प्रशाद को मैदान में उतारा. खून के जुमले पर भाजपा-कांग्रेस की जंग दोनो पार्टियो के वकीलो की जंग बन गई. फिर रवि शंकर प्रशाद का जवाब देने के लिए कांग्रेस ने रणदीप सिंह सुरजेवाला को उतारा. 

यह सब क्यो हुआ, इस लिए क्योकि पिछले एक साल से विपक्ष के पास मोदी को ललकारने के लिए काफी मसाला मिल गया था,विपक्ष दिल्ली और बिहार के बाद यूपी और पंजाब में मोदी को धूल चटाने की उम्मींद पाले बैठे हैं, लेकिन सर्जिकल स्ट्राईक ने मोदी की घटती साख को सम्भाल ही नहीं लिया अलबत्ता और बढा दिया है, जिस का यूपी और पंजाब में भाजपा-एनडीए को लाभ होने की सम्भावना ( विपक्ष के लिए आशंका ) बन गई है. अब इन नेताओ के लिए देश और सेना की इज्जत के सामने राजनीतिक नफा-नुकसान ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है, इस लिए भद्दी राजनीति देखने को मिल रही है, जो पहले कभी भी किसी सैन्य कार्रवाई के समय नही देखी गई , तब भी नहीं जब इंदिरा गांधी ने 1971 में अपनी पीठ थपथपाते हुए वी.वी.गिरी से भारत रत्न की संस्तुति करवा ली थी, और बदले में 1975 में इंदिरा गांधी ने वी.वी.गिरी को भारत रत्न की संस्तुति कर दी थी

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