मुझे तो वसुंधरा राजे से यह उम्मींद नहीं थी 

Publsihed: 24.Oct.2017, 18:27

अजय सेतिया / आज कल आदमी ( या औरत भी ) सुर्ख़ियों में तब आता है, जब कोई बुरा काम करता है | या फिर इतना बड़ा जुगाडू हो कि सफेद को काला और काले को सफ़ेद बताना जानता हो | वसुंधरा राजे और नरेंद्र मोदी में वैसे तो कोई समानता नहीं है | पर एक समानता है कि दोनों मीडिया को ज्यादा तव्वजो नहीं देते | दोनों के ऐसा करने के अपने अपने कारण हैं | नरेंद्र मोदी को 2002 में दिल्ली से गुजरात भेजा गया था | और वसुंधरा राजे को 2003 में जयपुर भेजा गया | मोदी उस समय भाजपा के महासचिव के नाते दिल्ली में जमे हुए थे और वसुंधरा राजे केंद्र में मंत्री के नाते | मोदी को मुख्यमंत्री बना कर भेजा गया था | तो वसुंधरा राजे को भविष्य का मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति के तहत प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बना कर भेजा गया था | गोधरा में हिन्दू तीर्थ यात्रियों को ट्रेन के डिब्बे में जलाए जाने के बाद मीडिया ने जिस तरह मोदी को खलनायक के तौर पर पेश किया , उस की टीस अभी भी उन के मन में है | जिस किसी ने मोदी के मन की असली बात को समझने की कोशिश की ,वह जानता है कि मोदी दिल्ली के मीडिया से घृणा करते हैं | क्योंकि प्रतिक्रिया में मुसलमानों के खिलाफ भडकी हिंसा के लिए दिल्ली का मीडिया उन्हें दोषी ठहराता रहा | कोर्ट से बरी हो जाने के बाद आज भी दिल्ली का वह तथाकथित सेक्यूलर पत्रकार मोदी के प्रति घृणा फैलाने से बाज़ नहीं आते | हालांकि वह झूठ फैलाने वाला सेक्यूलर मीडिया आज कल कुछ दबा हुआ है | बिलकुल कुछ वैसे ही जयपुर के मीडिया ने वसुंधरा राजे के साथ तब किया था , जब वह प्रदेश अध्यक्ष बन कर जयपुर पहुंची थी | इस लिए दोनों की मीडिया से दूरी समझ में आती है | पर वसुंधरा राजे की मीडिया से दूरी घृणा में बदल जाएगी , कम से कम मुझे ऐसी उम्मींद नहीं थी | मुझे ऐसा लगता था कि उन्होंने अपने पहले शाषन काल में ही मीडिया से नजदीकी बना ली थी | 
नरेंद्र मोदी शायद पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं,  जिन्होंने किसी पत्रकार को अपना मीडिया सलाहाकार नही रखा | इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने जाने माने पत्रकार एच.वाई.शारदा प्रशाद, चन्द्र शेखर ने पीटीआई से रिटायर्ड सम्पादक के.पी,श्रीवास्तव ,देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल ने सभी बड़े अखबारों के सम्पादक रहे एच.के.दुआ , अटल बिहारी वाजपेयी ने पीटीआई के सीनियर एडिटर अशोक टंडन , मनमोहन सिंह ने बिजनेस स्टेंडर्ड के सम्पादक संजय बारू और हिन्दू के सम्पादक हरीश खरे को अपना मीडिया एडवाइजर रखा था | जो बाकायदा फीड बैक देते और लेते रहते थे | मीडिया भी बाखबर रहता था और प्रधानमंत्री भी | जब कि नरेंद्र मोदी अपने साथ अहमदाबाद से एक रिटायर्ड पीआरओ ले आए हैं | जिनका दिल्ली के मीडिया के साथ तारतम्य बैठने का सवाल ही नहीं था | वैसे मोदी मीडिया के साथ कोई तारतम्य चाहते भी नहीं हैं | लेकिन खुद बाखबर रहने का तारतम्य भी टूट गया | नतीजतन उन्हें जीएसटी और नोटबंदी से पैदा हुए आकृश की भनक ही नहीं लगी | उन्होंने मीडिया को सेंसर करने के कोई कदम तो नहीं उठाए | पर इतनी उपेक्षा कर दी कि मीडिया को लोकतंत्र का चौथा खम्भा होने का एहसास ही नहीं रहा | 
मोदी ने बिना कोई क़ानूनी शिकंजा कसे मीडिया को लाचार बना दिया है | जबकि वसुंधरा राजे को ब्यूरोक्रेसी ने गुमराह कर के उन से क़ानून के ड्राफ्ट पर सहमती करवा ली , जो ब्यूरोक्रेसी का बचाव करता है और मीडिया की स्वतन्त्रता पर रोक लगाता है | ऐसा कोई कारण समझ नहीं आता कि वसुंधरा राजे ने खुद अपने मन से विधि विभाग को बिल का प्रारूप बनाने को कहा हो | आरटीआई लागू होने के बाद पूरे देश की ब्यूरोक्रेसी परेशान है , क्योंकि पारदर्शिता ने उन की लूट खसूट के कवाड़ पूरी तरह बंद नहीं किए तो, भेड तो दिए ही है | इस लिए ब्यूरोक्रेसी ऐसा चाहती है कि आरटीआई में मिली सूचना के आधार पर भी खबरें न बन सकें और सरकार उन की रक्षा करे | राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी भी बाकी देश से अलग नहीं है, हालांकि की राज्यों के मुकाबले राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी कम भ्रष्ट है | फिर भी कोई कारण तो है कि ब्यूरोक्रेसी मीडिया से अपना बचाव चाहती है ,इस लिए ब्यूरोक्रेसी ने विधानसभा से बिल पास होने से पहले अध्यादेश तक जारी करवा लिया | 
बिल में पांच मुख्य बातें हैं | पहली- बिना सरकार के इजाजत किसी भी पंच-सरपंच, विधायक, सांसद और अधिकारी-कर्मचारी पर कोई एफआईआर नहीं होगी | दूसरी - बिना इजाजत के मीडिया के खबर छापने पर भी पाबंदी होगी | तीस्र्ती -किसी भी लोकसेवक के खिलाफ कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं करा सकता है | पुलिस भी एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती | चौथी-  किसी भी लोकसेवक के खिलाफ कोई कोर्ट नहीं जा सकता है और न ही जज किसी लोकसेवक के खिलाफ कोई आदेश दे सकता है | पांचवीं - कोई भी मीडिया किसी लोकसेवक के खिलाफ बिना सरकार की इजाजत के आरोप नहीं लगा सकता | छटी- किसी भी लोकसेवक की शिकायत के पहले सरकार से इजाजत लेनी होगी |  180 दिन के अंदर सरकार के स्तर पर सक्षम अधिकारी इजाजत देगा और 180 दिन के अंदर नहीं पाया तो खुद ही इजाजत समझा जाएगा | सातवीं- इस कानून के उल्लंघन करने वाले भी दंड के हकदार होगें. दो साल की जेल हो सकती है | कुल मिला कर ये सभी बातें भ्रष्टाचार निरोधक लोकपाल की भावना के खिलाफ हैं , जो संसद से पास हो चुका है | 
इस के अलावा भष्टाचार के मामलों में सरकार की पूर्व इजाजत संबंधी प्रावधान पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही ऐतराज जता चुका है , इजाजत रोक कर बैठे एक राज्यपाल तक की खिंचाई हो चुकी है | इस लिए विधानसभा बिल पास कर भी दे , तो भी न्यायालय बिल को निरस्त कर देगा | वैसे भी वसुंधरा राजे को एहसास हो गया है कि किन्हीं स्वार्थी तत्वों ने उन की भलमानसहत का नाजायज फायदा उठा कर चुनाव से एक साल पहले मीडिया से दुश्मनी बनवाने की साजिश रची है | फिलहाल तो बिल प्रवर समिति को भेजा गया है, लोकपाल बिल भी संसद में 40 साल तक प्रवर समिति में लटकता रहा है | इस लिए उम्मींद की जानी चाहिए कि प्रवर समिति से लौटा तो भी यह बिल विधानसभा से पास नहीं होगा | मोदी और वसुंधरा राजे में मीडिया से दूरी की समानता तो है, लेकिन वसुंधरा राजे किसी भी कारण से मीडिया से घृणा करती होंगी, यह समझ से परे है | इस लिए बेहतर होगा कि वह बिल को वापस ले लें और बिल का सुझाव देने वाले से पिंड छुडाए, वह उन का हितैषी नहीं दुश्मन है | बिल का प्रारूप बनाने वाले भी कम दोषी नहीं हैं , अलबत्ता पता लगाया जाना चाहिए कि बिल का प्रारूप बनाने वालों के पीछे कौन था | 

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