पार्टी से निकाल अखिलेश का कद और बढा दिया मुलायम ने

Publsihed: 30.Dec.2016, 21:18

मुलायम परिवार के दो-फाड होने से उत्तरप्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया है. बसपा और भाजपा सकते में आ गई हैं. दोनो दल समझ नहीं पा रहे हैं कि मुलायम सिंह यादव जैसा घाघ नेता ऐसा कैसे कर सकता है या फिर ये वाकई दूसरी बार यूपी की सत्ता में आने की मुलायम की कोई अचूक चाल है.

अखिलेश खुद को जातिवाद की राजनीति से ऊपर उठ कर खुद को शहीद के रूप मे पेश कर के मायावती और भाजपा दोनो पर भारी पड सकते है. अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए वह निश्चित ही कांग्रेस के साथ गठजोड कर के चुनाव मैदान में उतरेंगे. हालांकि सपा के प्रवक्ता गौरव भाटिया ने इतने बडे घटनाक्रम के बाद भी उम्मींद जताई है कि मुलायम सिंह अखिलेश यादव और रामगोपाल का निलम्बन वापिस ले लेंगे और संकट टल जाएगा.   

अखिलेश और रामगोपाल के यूं अचानक निष्कासन से भले ही समाजवादी पार्टी में हाहाकार मच गया हो लेकिन इतना जरूर हुआ है यूपी के हर शहर-गांव की गली-मोहल्लों में लोगों के पास चर्चा करने के लिए बस एक ही मुद्दा हो गया है- भले आदमी को लोग परेशान कर रहे हैं. अखिलेश यादव ने पाच साल राज के बाद भी जनता की सहानुभूति अखिलेश के साथ बनी हुई है और उन्होने भले आदमी की छवि बना ली है. 

अखिलेश को पार्टी से निकालकर मुलायम ने उन्हें चाहे-अनचाहे बहुत बड़ा नेता बना दिया है जो पहले से ही अपनी साफ-सुथरी छवि को लेकर लोकप्रिय है. अखिलेश सरकार पर जो सबसे बड़ा दाग था वो था गुंडागर्दी, जिसके प्रतीक बड़े-बड़े चेहरों के पार्टी में आने या टिकट देने के खिलाफ अखिलेश तनकर खड़ा होते दिखे हैं. ऐसे में लोगों के बीच यही मैसेज जाएगा कि गुंडों, क्रिमिनल्स और भ्रष्ट लोगों के खिलाफ पार्टी में झंडा उठाने पर अखिलेश को शिवपाल ने मुलायम को मिलाकर पार्टी से बाहर निकलवा दिया.

चुनाव सिर पर है जिसमें लोगों के बीच अखिलेश चर्चा का सबसे बड़ा विषय बनेंगे और अपनी साफ-सुथरी छवि को अगर वो भुना ले गए तो यूपी कब्जाने का सपना देख रही कई पार्टियों की सारी रणनीति फुस्स हो जाएगी.बदले हालात में ये भी माना जा रहा है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी यूपी में मुलायम सिंह यादव के बदले अखिलेश यादव के साथ हाथ मिलाने में अपना फायदा देखें. अगर अखिलेश और राहुल साथ आए तो शिवपाल और मुलायम का गेम पूरी तरह खराब हो जाएगा.

वैसे, मुलायम का गेम असल में है क्या, इस पर भी बहुत सस्पेंस है. बहुत लोग ये कह रहे हैं कि ये सब मुलायम सिंह के मास्टरप्लान का हिस्सा है जिसके जरिए वो एक तरफ से यूपी में सपा की सत्ता कायम रखने की कोशिश कर रहे हैं तो दूसरी तरफ अखिलेश को बड़े नेता के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं.लेकिन इस मास्टरप्लान में नैचुरली इतना सस्पेंस, इतना गुस्सा और इतना रोमांच डाल दिया गया है कि ना तो जनता इसे समझ पा रही है और ना विपक्षी दल ही उस स्क्रिप्ट की कोई काट खोज पा रहे हैं.

उम्मीद तो की जा रही थी कि नए साल की पूर्व संध्या पर डिमोनटाइजेशन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण और नोटों की विदाई पर पूरे देश में चर्चा होगी लेकिन मुलायम के इस चौंकाने वाले कदम से यूपी के साथ-साथ हिन्दी पट्टी का माहौल झटके से बदल गया है. रामगोपाल की विदाई की खबर शायद इतनी बड़ी नहीं होती लेकिन मुलायम अपने बेटे अखिलेश को ही पार्टी से निकाल देंगे, ऐसा किसी ने सपने में नहीं सोचा होगा. कम से कम आम लोगों ने तो बिल्कुल नहीं. अगर ऐसे में अखिलेश ने इस्तीफे का दाव चल दिया ,तो विधानसभा चुनाव के तारीखों की घोषणा से ठीक पहले इस पूरे प्रकरण से अखिलेश यादव जनता को एक शहीद के तौर पर दिखेंगे.

मुलायम सिंह यादव एक 'हानिकारक बापू' के तौर पर जो अपने भाई के मोह में अंधा होकर एक युवा, बेदाग और विकास के लिए समर्पित बेटे की राजनीतिक बलि ले रहा है.जगह-जगह से टीवी चैनल्स पर अखिलेश समर्थकों के हंगामे के वीडियो दिखाए जा रहे हैं. वो सदमे में हैं. उनको उम्मीद नहीं थी. कुछ लोगो ने उसी तरह आत्मदाह की कोशिश की है , जिस तरह तमिलनाडू मे अपने नेता के समर्थन में जनता करती है. हिंदी पट्टी में इस तरह की घटनाए पहली बार हुई हैं. यूपी के हर नुक्कड़ पर लोग सारे काम छोड़कर अखिलेश के साथ सहानुभूति में हैं. अगर ये वाकई मुलायम का पहलवान दांव है तो विपक्षी पार्टियों के पास अभी तक इसे समझने और इसका काट निकालने का हुनर दिख नहीं रहा.

अभी तो किसी के समझ में ये नहीं आ रहा है कि आगे क्या होगा? क्या अखिलेश कांग्रेस से हाथ मिलाकर एक नए बैनर के तले चुनाव लड़ेंगे या आखिरी समय में मुलायम अपनी शर्तें रखकर मान जाएंगे. दोनों ही स्थिति में फायदा अखिलेश को होना तय है.अगर अखिलेश की 'शहीद' इमेज की खातिर मुलायम हानिकारिक बापू बनने को भी तैयार हैं तो ये सचमुच अद्भुत राजनीतिक परिघटना है.

 

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