पार्टियां प्रापर्टी बन गई है, तो वारिस बच्चे ही होंगे

Publsihed: 14.Jun.2019, 13:02

 संजय सिंह ने लिया हरिकेश बहादुर का विस्फोटक इंटरव्यू 

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय सचिव, सदस्य- कांग्रेस वर्किग कमेटी, पूर्व प्रभारी- बिहार व झारखंड और दो बार गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेसी सांसद (छठी और सातवीं लोकसभा) रह चुके हरिकेश बहादुर ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत वर्ष 1972-73 में बनारस हिन्दू विविद्यालय में छात्रसंघ अध्यक्ष पद से की थी। उसके तत्काल बाद (1974-75) उन्हें उत्तर प्रदेश युवा कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इंजीनियरिंग में स्नातक हरिकेश बहादुर ने देश-दुनिया की यात्रायें कीं और प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व भी किया। 1974 में इंटरनेशनल सोसियोलिस्ट यूथ कान्फ्रेंस, बेलग्रेड (यूगोस्लाविया) और 1978 में जापान और दक्षिण कोरिया की यात्रा भारतीय संसदीय दल के सदस्य के रूप में की। 1978 में ही र्वल्ड पीस काउन्सिल, मास्को में आयोजित कान्फ्रेंस में शिरकत की। 1979 में यंग कामनवेल्थ लीडर्स की मीटिंग में भाग लेने कोलम्बो (श्रीलंका) गये प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। गॉधीवादी राजनीति के अनुयाई हरिकेश बहादुर देश के उन गिनेचुने नेताओं में शुमार किये जा सकते हैं, जिन्होंने राजनीतिक लाभ लेने के लिए हथकंडों, तिकड़म और जातीय राजनीति का सहारा कभी नहीं लिया। लम्बे समय से उनकी अपनी ही पार्टी कांग्रेस ने उनको उपेक्षित कर रखा है।

प्स्तुत है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश-

संजय : हरिकेश जी आपने कांग्रेस का स्वर्णकाल भी देखा है, जब पूरे देश में कांग्रेस थी। लगभग सभी राज्यों में कांग्रेस थी। आजादी की लड़ाई में इस पार्टी का बहुत बड़ा योगदान था। लेकिन उत्तरोत्तर यह अखिल भारतीय पार्टी सिमटती गई। अब तो कई राज्यों में इसे आप एक पिछलग्गू पार्टी के रूप में देख सकते हैं। गौरवशाली अतीत वाली इस पार्टी का ऐसा हश्र क्यों हुआ ? आप क्या सोचते हैं ?

हरिकेश : 10-15 सालों में इस पार्टी का घोर पतन हुआ है। देखिये, मैं कई बार महसूस करता हूं कि कांग्रेस में ऐसे लोगों की लीडरशिप हो गयी है, जिसकी आस्था मूल्यों की राजनीति की नहीं हैं। कांग्रेस पार्टी का जो मौलिक उद्देश्य था ..लोगों को जो आचरण था..काम करने का तौर-तरीका था.. उससे हट करके बहुत सारे लोग कांग्रेस के अन्दर आए और रागद्वेष की राजनीति करने लगे. अपने व्यक्तिगत लाभ की राजनीति करने लगे। कांग्रेस के पतन का जो मूल कारण मुझे दिखाई दे रहा है, उसके जिम्मेदार तकरीबन एक दर्जन ऐसे लोग है, जो यहां आए और रागद्वेष की राजनीति करने लगे। वे लाइकिंग-डिसलाइकिंग की राजनीति करने लगे- हमको यह व्यक्ति पसन्द है.. वह व्यक्ति नहीं पसन्द है। और उन्होंने अपने नेतृत्व में देखा कि उनमें राजनीतिक सूझबूझ की कमी है तो उसे घेरकर इस प्रकार समझाना शुरू किये..और जो व्यक्ति उन्हें पसन्द नहीं है उसके बारे में इस तरह बताना शुरू किये कि आदमी ठीक नहीं है। ऐसा करके उन्होंने बहुत सारे लोगों को आउट कर दिया सिस्टम से।

संजय : यानि कि जो काबिल और निष्ठावान कांग्रेसी थे उनको बहुत ही तरीके से किनारे लगा दिया गया ?
हरिकेश : जी। जिनकी जनता में छवि थी और जिनका आचरण भी उन लोगों से बहुत बेहतर था.. ऐसे लोगों को ‘सबों’ ने आउट कर दिया। एक गिरोह काम करने लगा। वह गिरोह केवल अपने हित के लिए काम करता है। उसका एक मात्र उद्देश्य यह रहता है कि जब पार्टी सत्ता में हो तो वह मंत्री पद पर आ जाएं और जब सत्ता न रहे तो पार्टी पदों पर वे काबिज हो जाएं। ऐसे लोगों की ..15-20 की संख्या आपको मिलेगी जो पार्टी में इसी हालत में रहते हैं। पार्टी किसी दशा में हो, पार्टी नष्ट भी हो जाये तो उनका पद बना रहना चाहिये। ऐसे लोगों के गिरोह ने, जब नेतृत्व क्षमता की कमी देखा तो उन्हें लगा कि ऐसा नेतृत्व तो उनके लिए बहुत ही सुविधाजनक है .. वह उसे कुछ भी समझा सकते हैं..कुछ भी बता सकते हैं.. कुछ भी कर सकते हैं ..और जब नेतृत्व का डिपेंडेंस ऐसे लोगों पर हो जाता है तो किसी भी संस्था की दुर्गति जो इस कारण होती है, वह कांग्रेस की भी हो रही है।

संजय : क्या आपको लगता है कि कांग्रेस का जो वोट बैंक था वह भारतीय जनता पार्टी में ट्रांसफर हो गया है ..या यूं कहें कि कांग्रेस की जगह भारतीय जनता पार्टी ने ले ली है ? 

हरिकेश : विचारधारा की दृष्टि से मैं बीजेपी को पसन्द नहीं करता। क्योंकि बेसिकली जो भारत के संविधान में .. हमारे संविधान निर्माताओं ने सोचा था ..कहा था .. कि भारत एक लोकतांत्रिक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र रहेगा। मैं इसी सिद्धान्त को मानता हूँ। भारतीय जनता पार्टी परिस्थितिवश इसको समाप्त नहीं कर पा रही है। लेकिन उसके विचारधारा में ऐसे कई मोड़ मिलते हैं जो पसंद नहीं की जा सकतीं। जैसे कि आज के समय में भी वो ऐसे कई काम कर रहे हैं, जिसकी वजह से उनपर शक होता है कि सचमुच वे लोकतंत्र में विास करते हैं कि नहीं ! वैसे तो हिटलर भी लोकतांत्रिक तरीके से ही आया था और उसने लोकतंत्र को नष्ट कर दिया था। वो चीज कई बार इनके आचरण में दिखाई देती है। उस वक्त जब हिटलर जर्मनी में यहूदियों का कत्लेआम करवा रहा था एम. एस. गोलवलकर साहब ने एक लेख लिखा था उसमें उन्होंने कहा था, ‘‘ जर्मनी में हिटलर जो कर रहा है वो ठीक ही कर रहा है। क्यों कि दो संस्कृतियों के लोग एक साथ नहीं रह सकते। इसलिए भारत के लोगों को भी उससे प्रेरणा लेनी चाहिये।’’ .. तो इसका क्या अर्थ निकलेगा, आप सोच सकते हैं। उनके उस लेख को लेकर उस समय काफी हंगामा भी हुआ था। बाद में शायद वह लेख उनकी पुस्तक से हटाया या, या फिर लेख से वे चीजें हटाई गई.. बाद में जरूर कुछ हुआ.मुझे ठीक-ठीक याद नहीं है। लेकिन उस पर विवाद पैदा हुआ था। मैंने सिद्धराज ढड्ढा का एक लेख पढ़ा था, उसमें ये बातें लिखी गई थीं।
और एक महत्वपूर्ण अखबार का एडिटोरियल मैंने पढ़ा था कि गोलवलकर साहब जो गुरूजी कहलाते थे, गाँधीजी के पास जाते थे। जाहिर है बहुत सारी बातें उनसे उनकी होती होंगी। गाँधीजी की प्रतिक्रिया यह थी कि गोलवलकर जी जब उनके पास आते हैं तो बहुत अच्छी बात करते हैं, लेकिन जब जाते हैं तो उल्टा काम करते हैं। तो ये गाँधीजी की प्रतिक्रिया उनके बारे में थी। कहने का मतलब यह है कि ये (भाजपा और संघ) लोग क्या करना चाहते हैं उसका बहुत कुछ सामने आ चुका है। एक खास किस्म की विचारधारा है जो लिबरल पालिटिक्स को पसन्द नहीं करती है। उसी का परिणाम था कि गाँधीजी की हत्या हुई।

संजय : हरिकेश जी, आपने अभी बोला की बीजेपी एक विचारधारा को लेकर चलती है, मैं यह जानना चाहता हूं कि कांग्रेस ने राजीव गाँधी के शासनकाल में शाहबानो मामले में जो कुछ भी किया, जिसके खिलाफ उनके मंत्रिमंडल के सदस्य आरिफ मोहम्मद खान ने अपना तक इस्तीफा दे दिया.. उसको आप किस नजरिये से देखते हैं ? वह कौन सी विचारधारा थी ?

हरिकेश : देखिये, उस समय कुछ ऐसी चीजें हुई, जो नहीं होनी चाहिये थीं। मैं यह मानता हूं। यह मैं जरूर कहूंगा कि राजीव जी के पास वह अनुभव नहीं था राजनीति का, जो उनके पहले वाले प्रधानमंत्रियों के पास था। इसलिए एक ‘ग्रुप’ ने उनको जो कुछ समझाया अपने हिसाब से, वह ग्रुप उनके समय से ही क्रियाशील हो गया था। और उस ग्रुप का ही प्रभाव था कि जो चीज होनी चाहिए थी, उससे उलट करके कुछ हो गया था। उसका नतीजा हुआ कि कांग्रेस को भी बहुत नुकसान पहुंचा। आखिर स्थिति तो बन गई न .. आप इस तरह का सवाल मुझसे पूछ रहे हैं। जब कि आरिफ मोहम्मद खान ने उस समय जो भाषण किया था पार्लियामेंट में वो उन्होंने राजीव जी से बात करके किया था। उनकी राय से किया था। .. मैंने कहा न कि तात्कालिक लाभ के लिए एक समूह जो ढाई-तीन दशक से सक्रिय है, उसी प्रभाव में राजीव जी ने वह फैसला लिया। और उसको लेकर विवाद पैदा हुआ। मैंने कहा न कि राजीव जी में राजनीति को लेकर वह परिपक्वता नहीं थी, जो जवाहर लाल नेहरू , लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गाँधी .. इस तरह के नेताओं में थी। अभी वो प्रासेज में थे। उस समय ऐसे लोग भी थे, जो आज जिन्दा नहीं है, वो भी उनको गलत रास्ते पर चलने. चलाने का काम कर रहे थे। मैं सबका नाम नहीं लेना चाहता, क्यों कि जब वे जिन्दा ही नहीं है तो क्या उनके बारे मे बात करें। उस गलत निर्णय की वजह से ही भारतीय जनता पार्टी को भी एक मौका मिल जाता है सवाल पूछने का।

संजय : हरिकेश जी, भारतीय जनता पार्टी का एक ऐसा दौर था, जब वह जनसंघ नाम से पहली बार चुनाव में उतरी थी और पूरे देश में उसे सिर्फ तीन सीटें मिली थीं। आज यह पार्टी पूरे देश में फैल चुकी है ..

हरिकेश : (सवाल बीच में काटते हुए) .. मैं तो कह ही रहा हूं.. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली हैं। याद आया कि एक बार यूपी में जनसंघ को तीन सीटें मिली थीं, कांग्रेस अब वहां उससे भी नीचे पहुंच गई है। इस प्रकार कांग्रेस की सरकारें देश के तमाम स्टेट्स में हुआ करती थीं, उस जमाने में तो सारे स्टेट्स में होती थीं। जवाहरलाल जी के समय में तो सारे स्टेट्स में होती थी। सिर्फ केरल को छोड़कर.. वहां नम्बूदरीपाद जी की सरकार बन गयी थी। इंदिरा जी के समय में भी ऐसा ही था। लेकिन आज देखिये भारतीय जनता पार्टी और उनके एलाइस की सरकार लगभग देशभर में बन गई है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस को बीजेपी रिप्लेस कर रही है। हालांकि कांग्रेस का वोट बैंक अभी है, जैसा कि कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ के विधानसभा चुनावों में देखने को मिला था। हालांकि वहां भी इस लोकसभा चुनाव (2019) में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। देखिये कांग्रेस जो कुछ भी कहीं थोड़ी बहुत बची है अपने पुराने ग्लोरी की वजह से ही। वर्तमान परिदृश्य में कांग्रेस की जो टोटल लीडरशिप है और उसको चलाने वाले जो लोग हैं इनके कारनामे इस प्रकार है कि उससे लोगों में वितृष्णा फैल गई है। देश में पिछली सरकार (यूपीए-एक और यूपीए-दो) जो हमारी थी उसमें मनमोहन सिंह जी बहुत ही ईमानदार व्यक्ति थे। उनकी ईमानदारी पर देश के किसी भी व्यक्ति को कोई संदेह नहीं था।

संजय : लेकिन उनकी चलती कहां थी। सब कुछ तो दस जनपथ से संचालित होता था !

हरिकेश : हां, बाद में स्थिति तो यह हो गई कि वह सरकार भ्रष्टाचार के लिए बदनाम हो गई। जब कि देश के प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) की ईमानदारी पर कोई सवालंही नहीं उठाता है। फिर भी वह सरकार क्यों बदनाम हुई ! अगर कांग्रेस सरकार अपने भ्रष्टचार के लिए बदनाम हुई तो वर्तमान (मोदी) सरकार अपने तमाम अर्धसत्य के लिए मशहूर.. हो रही है (हँसते हैं)।

संजय : हरिकेश जी, हम फिर अपने पुराने सवाल पर लौटेंगे। आपने कहा था बीजेपी की विचारधारा को आप स्वीकार नहीं कर सकते। जैसा कि आपने भी कहा कि एक ऐसा वक्त था जब देश में केन्द्र में ही नहीं बल्कि सभी राज्यों में ही काग्रेस की ही सरकार हुआ करती थी। इसके पतन के पीछे कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस जो माइनारिटी तुष्टिकरण की नीति को लेकर लम्बे समय से चल रही थी, देश के बहुसंख्य वर्ग को इससे चिढ़ हुई और उसे भारतीय जनता पार्टी के रूप में अपनी आवाज मिल गई? उसे लगा कि भाजपा में उसकी बात सुनी जा रही है !

हरिकेश : मैं जो बात कर रहा हूं वह बहुत ही निष्पक्ष और किसी पार्टी लाइन से अलग कर रहा हूं। आपने जो तुष्टिकरण की बात कही। यह आरोप तो वे लोग लगा रहे थे जो माइनारिटी के खिलाफ लगे थे। उनका यह एक जुमला बन गया। उनका यह मुहावरा बन गया.. तुष्टिकरण.. तुष्टिकरण। माइनारिटी के बारे में शुरू से यह भावना कांग्रेस के नेताओं और सेक्यूलर लोगों में थी, चूंकि ये सीमित संख्या में हैं.. मैं बहुत शुरू की बात बता रहा हूं.. देश में उस समय बँटवारा हुआ था। दोनों तरफ बहुत मारकाट हुई थी। तो लोगों को लगा कि उनके (माइनिरिटी के) मन में एक भय का वातावरण होगा पाटीॅशन की वजह से, तो इसलिए उनके भय को दूर करने के लिए इनको थोड़ा संरक्षण देना चाहिए। तो इसलिए जो कुछ कदम उठाये गये वह तुष्टिकरण नहीं बल्कि उनके मन से भय को हटाकर एक ऐसा समतामूलक दृष्टिकोण की बात हुई, जिससे कि वे लोग एक भयरहित समाज में रहें। व्यवस्था से जो लाभ मिलता है वह उन्हें मिलता रहे। किसी को भेदभाव की भावना न महसूस हो। इस भावना से वह काम शुरू किया गया। बाद में .. कालांतर में जैसे जैसे राजनीति आगे बढ़ती गई.. चुनाव होते गये .. तो हो सकता है कि कुछ लोगों को यह महसूस हुआ हो कि अगर किसी वर्ग विशेष का वोट लेना है तो उसके लिए कुछ विशेष बात करनी पड़ेगी। लेकिन कोई ‘आउट आफ दि वे’ जाकर कोई बात उनके लिए (माइनारिटी) के लिए की गई हो, ऐसा कुछ नहीं है।
देखिये, जिनको माइनारिटी से नफरत थी उन्होंने इसको इश्यू बनाकर इस मुहावरे को पैदा किया.. और ये चीज धीरे-धीरे आगे बढ़ती गयी। और एक ऐसा वक्त भी आया जबकि ऐसा लोगों को महसूस होने लगा कि ये सचमुच तुष्टिकरण वाली बात तो नहीं है ! क्यों ? आपको मैं बताऊं कि कांग्रेस ने एक कमेटी बनायी थी ‘ए के एंटनी कमेटी’। इस कमेटी ने जो रिपोर्ट दिया था उसमें इस बात का जिक्र किया था कि इस देश में यह भावना फैलने लगी है कि कांग्रेस पार्टी बहुत ज्यादा प्रो माइनारिटी होती जा रही है। ये चीज उस वक्त अखबारों में भी आई थी। तो इससे लगा कि कांग्रेस के अन्दर भी कुछ लोग यह महसूस करने लगे थे कि ऐसी भावना देश में फैल रही है जिसको रोका जाना चाहिये। क्यों कि ऐसी कोई बात नहीं है। फिर भी यह बात इसलिए भी हो गई कि जब सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आयी तो हमारे प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह जी ने एक वक्तव्य दिया कि देश के संशाधनों पर माइनारिटी का प्रथम अधिकार है। तो इसको लेकर भी लोगों में बेचैनी फैलने लगी कि उन्हीं का अधिकार क्यों.. देश के सभी नागरिक का बराबर अधिकार है। उनका यह वक्तव्य माइनारिटी को भयमुक्त करने के लिए था कि उनको ऐसा न लगे कि उनके साथ कोई भेदभाव होता है। लेकिन उनके इस वक्तव्य का इंटरपट्रेशन ए्कदम अलग तरीके से हो गया और सवाल उठने लगे कि माइनारिटी को प्राथमिकता क्यों दी जाय।

संजय : मेरा मानना है कि इस वक्तव्य में मनमोहन जी की भावना भले ही कुछ और रही हो, लेकिन उनका शब्द चयन ठीक नहीं था। इसे दूसरे तरीके से भी कहा जा सकता था ?
हरिकेश : जी, शब्द नहीं बल्कि शब्दविन्यास में उनसे गलती हो गई। शायद उस शब्द को एवायड किया जा सकता था।

संजय : मनमोहन जी प्रथम अधिकार की जगह प्रमुख अधिकार बोल सकते थे। उससे गलत संदेश नहीं जाता ?
हरिकेश : जी, माइनारिटी का प्रथम अधिकार है.. कहने से कन्फयूजन हुआ। हालांकि मैं अभी भी इस बात को नहीं मानता कि माइनारिटी तुष्टिकरण की बात कांग्रेस में है। देश में एक समदृष्टि होनी चाहिये। लोगों में भी यह भावना होनी चाहिये। आज की इस परिस्थिति को पैदा करने के लिए नेता तो जिम्मेदार है ही, लोग भी जिम्मेदार हैं। जातिवाद से पूरा समाज प्रभावित हो गया है। अब जातीय और साम्प्रदायिक समीकरणों के कारण जिस तरह के लोग चुन कर आते हैं.. पंचायत से लेकर संसद तक उन पर तमाम अपराध के आरोप हैं।

संजय : पहले माफिया.. अपराधी या अराजक तत्व नेता को संरक्षण देता था और उसके चुनाव में मदद करता था। पर्दे के पीछे से नेता उसकी मदद लेते थे और चुनाव जीतते थे। अब तो खुद माफिया.. अपराधी चुनाव लड़ रहे हैं और पार्टियां बाकायदे उनको टिकट दे रही हैं। तो यह जो अवमूल्यन हुआ है राजनीति का, आपकी पार्टी भी अछूती नहीं है.. आप क्या कहेंगे ?

हरिकेश : जी, लोग ऐसे-ऐसे नेताओं को चुनते हैं जिन पर अपराधिक आरोप लगते हैं। आखिर उनको कौन चुन रहा है ? मान लीजिये नेता या राजनीतिक दल टिकट देता है किसी अपराधी को, लेकिन उसे चुनने का काम तो जनता करती है। जनता उनको वोट देती है। जनता उनको अगर हराने लगे .. नेता वैसे ही टिकट देना बन्द कर देंगे। लेकिन नेता ये देख रहे हैं कि ऐसे ही लोग चुने जाते हैं तो उनको टिकट दे रहे हैं।
ये जो डाइनेस्टिक सक्सेशन की प्रक्रिया शुरू हो रही है..वह क्यों हो रही है ! एक तरफ नेता अपने परिवार, पुत्र-पुत्री, पत्नी को टिकट दे दे रहे हैं और दूसरी तरफ जनता उनको वोट दे रही है ! तो ये सब जनता के वोट से जस्टिफाई हो जा रहा है। राजनीति की जो विकृतियां हैं.. जो बुराइयाँ हैं, जिसको हम लोग मान रहे हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए, तो वो सब जब नेता शुरू कर रहे हैं तो जनता उस पर अपना वोट रूपी मुहर लगा दे रही है। देखिये, बिहार का ही उदाहरण लीजिये..बिहार में लालू प्रसाद यादव का कान्ट्रीब्यूशन था.. काफी काम किए हुए थे तो उनके साथ उनकी जनता थी। आज वही जनता लालू के जेल जाने के बाद उनके बेटे तेजस्वी के साथ खड़ी हो गई। पूरी तरह से। अब तेजस्वी वहां के नेता हैं। वो क्या हैं.. नहीं हैं अलग बात है। लेकिन जो इस तरह से लीडरशिप का ट्रान्सफर हो रहा है, जनसमर्थन का ट्रान्सफर हो रहा है, ठीक इसी तरह से जैसे कि प्रापर्टी ट्रान्सफर हो जाती है। तो पार्टियां जब होती थीं तो पार्टियों के लीडर होते थे, लेकिन जब पार्टी प्रापर्टी बन गयी तो प्रापर्टी के लीडर कहां होंगे, बिल्डर ही होंगे ना !

संजय : हरिकेश जी, आपने इतने लम्बे समय तक (1972 से अब तक) कांग्रेस की सेवा की है। मुझे याद है कि जब आप यूपीए-एक के दौरान कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय सचिव हुआ करते थे और दिन-दिन भर 24 अकबर रोड स्थित मुख्यालय के अपने कक्ष में बैठते थे और लोगों से मिलने का सिलसिला चलता रहता था .

हरिकेश : (सवाल बीच में ही काटते हुये) मैं बैठता था तो बहुत सारे लोगों को यह पसंद नहीं आता था। कांग्रेस के ही बहुत सारे लोग बुरा मानते थे कि मैं क्यों बैठ रहा हूं। क्यों लोगों से मिल रहा हूं। यह भी मेरे खिलाफ एक चार्ज था। इस बात को वे सीधे नहीं कहते थे, बल्कि उसमें कुछ मिलाकर.. जोड़कर पार्टी के शीर्ष नेता से शिकायत करते थे। हर सही काम को गलत बताने का काम ‘गिरोह’ करता था। ‘गिरोह’ यही काम करता है।

संजय :‘गिरोह’ के कुछ लोगों का नाम बता सकते हैं ?
हरिकेश : (हंसते हुये) गिरोह का क्या है। आपको हर पार्टी में पांच-सात लोगों का गिरोह मिल जायेगा। ..मेरे साथ तो आत्याचार के लेवल पर इस गिरोह ने काम किया (हंसते हुए) पूरी तरीके से।

संजय : तो आप मैडम (कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी) से नहीं मिले ?
हरिकेश : मैडम से मैं बहुत मिला। कुछ कहा.. बताया। लेकिन मैंने देखा कि उसका उनपर कोई असर नहीं है। दरअसल उन पर असर वही पड़ता था जो ये लोग (गिरोह) बताते थे।

संजय : यानि कि मैडम पूरी तरह से चौकड़ी या गिरोह में घिरी हुई हैं ?
हरिकेश : मैंने तो यही देखा..। और तो छोड़ दीजिये.. मेरे गोरखपुर जिले की कांग्रेस पार्टी बरबाद हो रही पिछले 15 सालों से। हम लोगों ने कितनी बार उसके बारे में जा-जाकर बताया..। मैंने ही नहीं राम नरेश यादव जी जो दूसरे जिले के थे..अब तो जिन्दा नहीं हैं उन्होंने भी जाकर कहा था, उन पर (सोनिया गाँधी) कोई असर नहीं पड़ता। चीजें वैसे ही चल रही है.. जैसे चल रही थी। कोई सुनता ही नहीं कुछ। कोई आदमी कुछ भी नहीं सुनता। आप चाहे जितनी सच बात बोलें। पता नहीं इनकी क्या मजबूरियाँ हैं।

संजय : कांग्रेस का जो नया नेतृत्व है। जिसे आप यंग लीडरशिप कह सकते हैं। उससे आपको कितनी उम्मीदे हैं ? कांग्रेस को कहां तक और किस ऊंचाई पर ले जा पायेंगे ?
हरिकेश : देखिये ऐसा है कि नेता बनने का कोई फैक्टरी तो होती नहीं। जो लोग इस फील्ड में काम करते हैं, वो जिनका एक्सपोजर जितना ज्यादा होता है, जितना लोगों से मिलते-जुलते हैं.. समाज को देखते हैं ..समझते हैं तो अपनेआप एक नेतृत्व क्रिएट हो जाता है और लोग स्वयं परिस्थिति के हिसाब से फैसले लेते हैं। नेता में जो सबसे बड़ा गुण होना चाहिये, उसमें कोई दुराग्रह नहीं होना चाहिए। प्रीजिडुइस नहीं होना चाहिए। उसे अपने सभी लोगों को समान दृष्टि से देखना चाहिए। और साथ-साथ मानवीय जगत के जो मौलिक.. बेसिक मूल्य हैं उनको लेकर के चलना चाहिये। और उन मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता होनी चाहिए। अगर कोई भी नेता इस दृष्टि से चलेगा तो कालांतर में नेता बनेगा। लेकिन आदमी को बहुत कुछ सीखना.. समझना पड़ता है। कोई आदमी अगर यह मानकर चले कि हम सबकुछ जानते हैं तो इसका मतलब कुछ जानता ही नहीं। कोई सबकुछ जान ही नहीं सकता। जानेगा कैसे ! इस लोकसभा चुनाव में जनता ने उन्हें पूरी तरह नकार दिया।

संजय : हरिकेश जी आप सीधे कुछ कहने से बच रहे हैं !
हरिकेश : सीधे नहीं.. (हंसते हैं) हम जो कह दे रहे हैं, वह सबके लिए सही है। जितना नया नेतृत्व आया हुआ है .. वंश परम्परा से आये हुये सारे नेतृत्व के बारे में हम कह रहे हैं।

संजय : इंदिरा जी भी तो वंश परम्परा से ही आई थीं ?
हरिकेश : आई थीं। लेकिन जवाहर लाल जी के साथ उन्होंने बहुत दिनों तक काम किया था। सीखा था। उन्होंने यह भी देखा था कि कैसे लोगों के साथ मिलना है। उनके साथ कैसा व्यवहार करना है। सब कुछ सीखा था उन्होंने। इसीलिए इंदिरा जी से किसी को बहुत परेशानी हुई ही नहीं। लेकिन इंदिरा जी ने भी जब कोई ऐसे कदम उठाए.. लोगों ने देखा कि लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धान्तों पर उन्होंने कहीं न कहीं चोट पहुंचाई है तो लोग उसका विरोध कर गये। बहुत से लोग कांग्रेस से अलग हो गए। ये सब चीजें भी तो हुई इंदिरा जी के टाइम में। लेकिन इंदिरा जी सारे चीजों को समझती थीं।

   

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