अमर उजाला, 30 अगस्त 2015
एक ही दिन की दो खबरों पर गौर कीजिए। एक खबर युवक-युवती के झगड़े की। दूसरी खबर उपहार सिनेमा में दो दशक पहले हुई आग लगने की घटना पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की। पहले चर्चा पहली खबर की। जसलीन कौर दबंग किस्म की युवती है। वह खुद को झांसी की रानी कहलाना पसंद करती है। कुछ दिन पूर्व उसी के इलाके तिलक नगर में रहने वाले सरबजीत सिंह नामक युवक से उसकी कहा-सुनी हो गई। जसलीन ने उस पर छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए पुलिस को शिकायत दर्ज करवा दी। इसके अलावा सरबजीत का फोटो फेसबुक पर डालते हुए वही आरोप दोहराया। हमारा विजुअल मीडिया ऐसी चीजें खोजता रहता है। विजुअल मीडिया ने इसे हाथोंहाथ लिया और पूरे देश में बवाल खड़ा कर दिया। स्वयंभू विशेषज्ञों की टिप्पणियां आनी शुरू हो गईं। शाम की आधे घंटे की बहस का यह मुद्दा बन गया। सरबजीत ने यह बहस टीवी पर देखी, तो आत्मसमर्पण करने पुलिस स्टेशन पहुंच गया। अगले दिन सरबजीत को जमानत मिल गई। जमानत के बाद उसने अपना पक्ष रखा, तो मामला ही बदल गया। सरबजीत के अनुसार यह छेड़छाड़ का नहीं, ट्रैफिक जाम में कहासुनी का मामला था। जबकि मीडिया ने पहले ही क्षण युवक को अपराधी घोषित कर दिया था। चैनलों की युवतियों ने उसे झूठा ठहराते हुए अपराधी जैसा व्यवहार किया। अब यह अदालत तय करेगी कि यह छेड़छाड़ का मामला था या ट्रैफिक जाम में मामूली कहा-सुनी का।
दूसरी खबर और भी भयानक है। अट्ठारह वर्ष पहले दिल्ली में उपहार सिनेमा में आग लगी थी, जिसमें 59 लोगों की मौत हुई थी। सिनेमा घर के मालिक सुशील असंल और गोपाल अंसल गिरफ्तार कर लिए गए थे। जमानत से पूर्व सुशील कुमार छह माह और गोपाल करीब करीब पांच माह जेल में रहे। निचली अदालत से सर्वोच्च न्यायालय तक 18 साल केस चला। पिछले सप्ताह सर्वोच्च न्यायालय का अंतिम फैसला आया। न्यूज चैनलों के बाद समाचार पत्रों में भी खबर आई कि दोनों भाई छह माह जेल में रह चुके हैं। अदालत ने इसे पर्याप्त मानते हुए उन पर 60 करोड़ का जुर्माना लगाया है। इस राशि से दिल्ली में नया ट्रामा सेंटर या पहले से चल रहे ट्रामा सेंटर का विस्तार होगा।
स्वाभाविक है कि जिन परिवारों में मौतें हुई थीं, उन्होंने इस फैसले का विरोध किया। अच्छा-खासा हंगामा खड़ा हो गया। खबर में यहां तक बताया गया कि अदालत ने सीबीआई की यह अपील ठुकरा दी कि दोनों भाइयों को कम से कम दो-दो वर्ष कैद की सजा होनी चाहिए। लेकिन खबर सच नहीं थी। सर्वोच्च न्यायालय को स्पष्टीकरण देना पड़ा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि फैसले में दोनों भाइयों को दो-दो वर्ष कैद की सजा दी गई है। यद्यपि फैसले में यह भी कहा गया था कि दोनों की उम्र ज्यादा हो चुकी है। वे करीब छह-छह महीने जेल में रह भी चुके हैं। इसलिए अगर वे चाहें, तो 30-30 करोड़ रुपये जुर्माना अदा कर कैद से मुक्ति पा सकते हैं। तीन माह में जुर्माना नहीं जमा करवाने पर दो-दो वर्ष कैद का फैसला था। अदालत ने फैसला देते समय सिर्फ उम्र के कारण यह विकल्प दिया था, लेकिन मीडिया ने सिर्फ विकल्प को बताया, फैसले को नहीं। क्या उच्च स्तर पर सोचने का वक्त नहीं आ गया है कि मीडिया की आजादी का मतलब अधूरी और भ्रम फैलाने वाली खबरें देना नहीं होना चाहिए? मीडिया के प्रबुद्ध लोगों को खुद ही इस पर विचार करना चाहिए कि इस तरह की आंशिक और एकतरफा खबरों से समाज पर क्या असर पड़ता होगा और उसकी विश्वसनीयता पर कितने सवाल उठते होंगे।
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