अमर उजाला, 02 October 2015
उफा में नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ की बातचीत को भारत में बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अति उत्साह में नवाज शरीफ से वायदा कर आए थे कि वह अगले वर्ष होने वाले दक्षेस सम्मेलन में पाकिस्तान जाएंगे। अब जबकि तीन महीने के अंतराल में ही उफा का सारा उत्साह ठंडा पड़ चुका है और पाकिस्तान कश्मीर का मसला फिर संयुक्त राष्ट्र में ले गया है, तो हालात सौहार्द के नहीं, टकराव के बन चुके हैं। सबसे बड़ा टकराव तो हुर्रियत को साथ लेकर बातचीत करने संबंधी पाकिस्तान के रुख पर है, जबकि भारत हमेशा से द्विपक्षीय बातचीत का समर्थक है।
बहरहाल, उफा सम्मेलन के बाद जिस तरह नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी हुई, उससे स्पष्ट था कि नवाज शरीफ को पाकिस्तानी सेना का समर्थन हासिल नहीं है। अंतत: हुर्रियत के मुददे पर एक बार फिर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की वार्ता भी रद्द हो गई। मगर इसके साथ ही, मोदी सरकार ने सीमा पर गोलीबारी का जो मुंहतोड़ जवाब देना शुरू किया है, उसका कारगर असर दिख रहा है। पाक सेना और पाक के सीमांत नागरिकों को पहली बार एहसास हुआ है कि भारत में कोई मजबूत सरकार सत्ता में है। लिहाजा पाकिस्तान में अब घबराहट ज्यादा है। इसी कारण पाकिस्तान की ओर से संयुक्त राष्ट्र को दो चिट्ठियां लिखी गई हैं, जो स्वाभाविक रूप से कश्मीर से ताल्लुक रखती हैं, और जिनमें भारत की मुखालफत की गई है। एक पत्र में पाकिस्तान का कहना है कि भारत नियंत्रण रेखा पर दीवार खड़ी कर रहा है, जो संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का उल्लंघन है। हालांकि उसने खुद उस प्रस्ताव की पहली शर्त, कि पाक अधिकृत कश्मीर से पाकिस्तानी फौज हट जाएगी, नहीं मानी है। इसके अतिरिक्त वह बलूचिस्तान में भी अनेक लोगों को गिरफ्तार करके उन्हें भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ का एजेंट बताने की कोशिश कर रहा है, ताकि वह बलूचिस्तान में भारत के दखल संबंधी अपने आरोप को पुष्ट कर सके।
वैसे सच यह भी है कि हम भले ही यह मानें कि ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान में मारे जाने के बाद दुनिया भर में पाक की स्थिति कमजोर हुई है। मगर इस धारणा के विपरीत अब भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाक को समर्थन दिया जा रहा है। अमेरिका उसका अब भी आर्थिक और सैन्य सहयोगी है। वह अब भी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान को सहयोगी मानता है। इसके साथ ही, चीन के साथ भी पाकिस्तान के संबंध प्रगाढ़ हुए हैं। अब तो भारत का पुराना साथी रूस भी पाकिस्तान का सहयोगी बन रहा है। लिहाजा पाकिस्तान इस कोशिश में भी है कि वह चीन, रूस और अमेरिका के सहयोग से भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने से रोके।
बेशक मोदी सरकार बनने के बाद भारत ने अपनी पाक नीति में थोड़ा बदलाव किया है। मगर हमें पूर्व की अपनी दो गलतियां सुधारनी होंगी। हमारी पहली गलती है कि पाक अधिकृत कश्मीर पर अपने दावे को जोर-शोर से न उठाना। जबकि दूसरी है, पाक अधिकृत कश्मीर से गुजरने वाले पाक-चीन आर्थिक गलियारे पर कड़ा ऐतराज न जताना। हालांकि ये दोनों गलतियां सुधारी जा सकती हैं। मसलन, पाकिस्तान अगर हमारी सीमा पर गोलाबारी करे, तो हमें उसे माकूल जवाब देने के साथ ही नीलम घाटी और गिलगित पर जवाबी कार्रवाई करनी चाहिए। इससे पाकिस्तान हमारे लिए बेवजह की परेशानी तो नहीं ही खड़ा करेगा, चीन को भी पता चल सकेगा कि वह एक विवादास्पद जगह पर गलियारा बना रहा है।
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