एल.एन.शीतल/ दूरदर्शन के एक युवा अधपढे पत्रकार ने प्रधानमंत्री के खिलाफ प्रेस कान्फ्रेंस की और मोदी विरोधियो का लोकप्रिय हीरो बन गया. वह सोशल मीडिया पर भी मोदी विरोधियो की खूब वाहवाही लूट रहा है. हालांकि प्रेस क्लब में हुई उस की प्रेस कांफ्रेंस में जब उससे सवाल पूछे जा रहे थे, तो उस की घिग्घी बंधी हुई थी. सत्येन्द्र मुरली नाम के इस नए नए पत्रकार का आरोप है कि ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 8 नवंबर 2016 को ‘राष्ट्र के नाम संदेश’ लाइव नहीं था, बल्कि पूर्व रिकॉर्डेड और एडिट किया हुआ था.
इन महाशय को यह भी नहीं पता कि प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति का कोई भी संदेश कभी भी लाईव नहीं होता, हमेशा रिकार्डिड होता है. इन महाश्य का कहना है कि पीएम का भाषण 8 नवंबर की रात लाइव कहकर चलाया जाना अनैतिक था, साथ ही यह देश की जनता के साथ धोखा भी था. तो इन की नजर में राष्ट्रपति अर 25 जनवरी रात को देश को धोखा देते हैं. प्रेस कांफ्रेंस में जो विज्ञप्ति जारी हुई उस की भाषा से सप्ष्ट था कि यह पत्रकारिता की भाषा नहीं अलबत्ता एक खुन्नसी राजनीतिक नेता की भाषा है. विज्ञप्ति के शीर्षक पर पहला शब्द ही मायावती का ब्र्ह्म वाक्य "जय भीम" लिखा है, ऊपर से मायावती के खास समर्थक दिलीप मंडल मंच पर थे, यह प्रेस कांफ्रेंस एक पत्रकार की न हो कर एक विचारधारा की प्रायोजित प्रेस कांफ्रेंस थी. प्रेस नोट के शीर्षक में लिखा था " नोटबंदी का एकतरफा निर्णय" जैसे नोटबंदी का फैसला सर्वदलीय बैठक बुला कर लिया जाना चाहिए था.
सत्येन्द्र मुरली के इस बयान को कई वेबसाईटो और कुछ क्षेत्रीय अखबारो ने भी हाथो हाथ लिया है. पिछले दिनो जीटीवी से भी एक वामपंथी पत्रकार इसी तरह हीरो बनकर निकला था. वामपंथी विचारधारा से प्रभावित इस तरह के पत्रकारो के लिए निश्चित रूप से यह घडी बडी विकट है,आजादी के दो दशक बाद से पत्रकारिता पर उन का वर्चस्व कायम रहा, 90 फीसदी मीडिया पत्रकारिता के निष्पक्ष रहने वाले सिद्धांतो को तिलांजलि दे कर दक्षिणपंथी भाजपा और आरएसएस के खिलाफ लिखते और माहौल बनाते रहे, इस के बावजूद देश पर भाजपा अपने बूते शासक पार्टी हो गई. इसलिए उन के जीवन में कुंठा भर गई है.
सत्येन्द्र मुरली इस कद का पत्रकार तो नहीं है कि उस पर टिप्पणी लिखी जाए, लेकिन उन्होने पत्रकारिता के मूल सिद्धांतो पर सवाल खडा कर दिया है और बिना वजह बदमज़गी फैला दी है, इस लिए लोग अब सोशल मीडिया पर विभिन्न प्रतिक्रियाए प्रकट कर रहे हैं.
न्यूज नेशन के एंकर और प्रोड्यूसर अमित गर्ग शुक्ला ने फेसबुक पर लिखा है " DD NEWS का एक पत्रकार है । जिसने आरक्षण का लाभ लेकर IIMC में एडमिशन प्राप्त किया । सरकारी पैसे पर पढ़ाई पूरी की । और फिर आरक्षण का लाभ लेकर दूरदर्शन में नौकरी भी हासिल कर ली । वो नोटबंदी के फैसले को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर उंगली उठा रहा है । महोदय का कहना है 8 नवंबर को देश के नाम demonetization वाला संबोधन live नहीं recorded था । चलो मान लिया recorded था । अब बताओ ऐसा हो गया तो कौन सा प्रलय आ गया । इस बकलोल को कोई ये बताओ कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का देश के नाम संदेश recorded ही होता है । इसमें नया क्या है ।
"जनाब का दूसरा आरोप है । संबोधन की स्क्रिप्ट पहले ही लिखी जा चुकी थी । अरे पगलऊ इसमें भी कुछ नया नहीं है । 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम जो संदेश आता है उसकी स्क्रिप्ट भी पहले ही लिखी जाती है । मोदी प्रधानमंत्री हैं । तुम्हारी तरह दो कौड़ी के पत्रकार नहीं हैं । जो मुंह उठाकर कुछ भी बोलने चले आएंगे । बकलोल तुम भी तो प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्क्रिप्ट से ही पढ़ रहे थे । और स्क्रिप्ट ख़त्म होने के बाद जैसे ही पत्रकारों ने सवाल पूछा तुम्हारी घिघ्घी बंध गई । बोलती बंद हो गई और पत्रकारिता का सारा ज्ञान तेल लेने चला गया । दरअसल इस तथाकथित बुद्धिजीवी को लगता है प्रधानमंत्री को नोटबंदी का फैसला इस बकलोल से विचार विमर्श करने के बाद लेना चाहिए था ।
"अब देखना ये है कि महोदय काली स्क्रीन वाला चैनल ज्वॉइन करते हैं ? या फिर आम आदमी पार्टी की आंखों का तारा बनते हैं । काहे कि रायता तो इन्होंने फैला दिया है । देखिएगा अब मोदी विरोधी इनको हाथों-हाथ लेंगे । आखिर में प्रधानमंत्री जी से अनुरोध है इन संपोलों को सरकारी खर्चे पर दूध पिलाना बंद करिए । नहीं तो ये गद्दार इसी तरह से अराजकता फैलाते रहेंगे । धन्यवाद ।"
अब वामपंथी पत्रकारो की ओर से इस अधपढ पत्रकार को हाथो हाथ लेने का उदाहरण देखिए, Mediavigil नाम की एक वेबसाईट जो खुद को समाचार माध्यमो की विसंगतियो को सामने लाने और सही संदर्भ में सही सूचना देना ही अपना धर्म बता रही है, ने इस बात पर अफसोस जताया है कि मीडिया ने सत्येन्द्र मुरली के बयान और खुलासे पर तव्वजो नहीं दी. लेकिन वह इस अधपढ पत्रकार के बयान को ब्र्ह्मवाक्य बताने पर तुली हुई है. वेबसाईट लिखती है
"देश की जनता को वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा बताया गया है कि शाम 6 बजे आरबीआइ का नोटिफिकेशन आया, सात बजे कैबिनेट की बैठक हुई और आठ बजे प्रधानमंत्री का संदेश प्रसारित हुआ। मुरली की बात सही है तो जेटली की बात गलत होगी। दोनों एक साथ सही नहीं हो सकते। यह देश की चुनी हुई सरकार के झूठ बोलकर अपने फैसले को मान्यता दिलवाने का एक अभूतपूर्व किस्सा होगा जैसा आज़ाद भारत में कभी नहीं देखा गया। ( पाठक खुद अंदाज लगाए कि वेबसाईत का उद्देश्य क्या है. वह प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को गलत और चंडूखाने की बाते कहने वाले अधपढ पत्रकार को सही बताने की कोशिश कर रही है, और दावा यह कि वेबसाईट का उद्देश्य सही संद्र्भ में सूचनाए उपलब्ध करवाना है )
"बात यहीं नहीं थमती क्योंकि एक और झूठ है जो देश से बोला गया है। वो है नरेंद्र मोदी के ऐप से किए गए सर्वे का नतीजा, जो कहता है कि 90 फीसदी से ज्यादा जनता इस फैसले को सही मानती है। यह तो सफ़ेद झूठ है क्योंकि हम जानते हैं कि केवल 22 फीसदी लोगों के पास स्मार्टफोन हैं। यह कोई चुनावी सर्वे नहीं था जिसमें सैंपल के आधार पर सरलीकरण कर दिया जाए। कुल मिलाकर जिन पांच लाख लोगों ने इस फैसले को सही ठहराया है, वे कुल आबादी का 0.007 फीसदी हैं। दिलचस्प यह है कि ट्विटर और फेसबुक पर ठीकठाक सर्कुलेट होने के बावजूद इस खबर को केवल आजतक की वेबसाइट ने मुख्यधारा के मीडिया संस्थानों में अपने यहां जगह दी है, जबकि प्रेस कॉन्फ्रेंस के मंच पर दिलीप मंडल जैसे वरिष्ठ संपादक मुरली के समर्थन में बैठे थे।" ( यह सारा पैराग्राफ वेबसाईट का खुद का लिखा हुआ है, जो पूरी तरह राजनीतिक है )
अब हम वह खबर देते हैं ,जो प्रधानमंत्री विरोधी एक अन्य वेबसाईट ने जारी की है, इस में कहा गया है कि "पत्रकार ने खुलासा करते हुए कहा कि 8 नवंबर 2016 की शाम से कई दिनों पहले ही पीएम का ‘राष्ट्र के नाम संदेश’ लिखा जा चुका था। उन्होंने आरोप लगाया कि इस मामले में साफ तौर पर मुद्रा के मामले में निर्णय लेने के आरबीआई के अधिकार का उल्लंघन किया गया है। पत्रकार और रिसर्चर सत्येन्द्र मुरली के मुताबिक इस बारे में आरटीआई के जरिए पूछे जाने पर (PMOIN/R/2016/53416) पीएमओ ने जवाब न देकर टालमटोल कर दिया और आवेदन को आर्थिक मामलों के विभाग और सूचना और प्रसारण मंत्रालय को भेज दिया।उन्होंने इसके लिए बाकायदा आरटीआई ट्रांसफर नंबर DOEAF/R/2016/80904 और MOIAB/R/2016/80180 सार्वजनिक है। पत्रकार सत्येन्द्र का कहना है कि पीएमओ में यह रिकॉर्डिंग हुई थी, इस नाते इसे लेकर जवाब देने का दायित्व प्रधानमंत्री कार्यालय का है।"
( पत्रकार महोदय आरटीआई कानून के एकदम अनाडी लगते हैं, हालांकि पत्रकारिता की पढाई में आरटीआई पढाया जाता है , उन्हे इतना भी नहीं पता कि आरटीआई का जवाब उपलब्ध रिकार्ड के आधार पर ही दिया जाता है, रिकार्डिंग करना प्रधानमंत्री कार्यालय का काम नहीं है, जिस विभाग ने रिकार्डिंग की होगी निश्चित है कि वही जवाब देगा और आरटीआई की याचिका नियमानुसार उस विभाग को भेज दी जाती है.)
अब खबर का अंतिम पैराग्राफ देखिए, जिसे जस का तस दिया जा रहा है, इस से स्पष्ट है कि यह प्रेस कांफ्रेन्स किस साजिश के तहत हुई थी. यह प्रेस कांफ्रेंस ठीक उस समय 25 नवम्बर को हुई, जब विपक्ष प्रधानमंत्री पर यह कह कर सीधे हमले कर रहा था कि गोपनीयता नहीं बरती गई थी, मोदी के करीबी उद्धोगपतियो और भाजपा को नोट बदलने की बात पहले बता दी गई थी. इस पत्रकार ने भी अपने प्रेस नोट और प्रेस कांफ्रेंस मे गोपनियता को ही मुख्य मुद्दा बना कर विपक्ष को मसाला देने की कोशिश की, जब कि मुख्यधारा के मीडिया ने सत्येन्द्र मुरली के अनाडीपन पर तव्वजो नहीं दी, खबर देखिए : -
"पत्रकार का आरोप (नेताओ की तरह ) है कि पीएम मोदी ने ‘राष्ट्र के नाम संदेश’ को मीडिया में लाइव बैंड के साथ प्रसारित करने को कहा था, जिसे देश के तमाम चैनलों ने लाइव बैंड के साथ ही प्रसारित किया। पीएम मोदी ने यह सिर्फ दिखावा किया कि मानों उन्होंने अचानक ही रात 8 बजे राष्ट्र को संबोधित किया हो। उन्होंने कहा ‘देश की जनता को भरोसा दिलाने के लिए कि प्रधानमंत्री मोदी ने मामले को बेहद गोपनीय रखा है, इसलिए यह अचानक घोषणा वाला नाटक किया गया, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं था’ पत्रकार ने सवाल उठाते हुए कहा है कि 8 नवंबर 2016 की शाम 6 बजे आरबीआई से प्रस्ताव मंगवा लेने के एक घंटे बाद यानि शाम 7 बजे कैबिनेट की बैठक हुई जो मात्र दिखावा थी, जिसे मोदी ने ब्रीफ किया।
उन्होंने कहा ‘मोदी ने कैबिनेट बैठक में बिना किसी से चर्चा किए ही अपना फैसला सुना दिया। यह वही निर्णय था जिसे पीएम मोदी पहले ही ले चुके थे और रिकॉर्ड हो चुका था। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा THE GOVERNMENT OF INDIA (TRANSACTION OF BUSINESS) RULES, 1961 एवं RBI Act 1934 की अनुपालना किस प्रकार की गई होगी? इस मामले में क्या राष्ट्रपति को सूचना दी गई?’
नियम-कानूनों को ताक पर रखकर पीएम मोदी ने देश को गुमराह किया है और अपना तुगलकी फ़रमान थोपते हुए, देश में आर्थिक आपातकाल जैसे हालात पैदा कर दिए। पीएम के फैसले के चलते देशभर में सैंकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है।”
( केबिनेट के अंदर की बाते बताने वाले इस पत्रकार को रामनाथ गोयनका पुरस्कार तो बनता है. )
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