अजय सेतिया/ राहुल गांधी ने आज अपनी सफल किसान यात्रा की आखिर में आ कर रेड पीट ली. पहले तो दिल्ली में घुसते ही हरियाणा के कांग्रेसियो ने आपस मे लाठिया भांजी. फिर जंतर- मंतर में अपने भाषण के समय तैश में आ कर कहा कि जिन सेनिको ने खून दिया, आप उनके खून के पीछे छिप रहे हो, उन के खून की दलाली कर रहे हो. अब इस जुमले का कोई मतलब नहीं. वह जो कहना चाहते थे,कह नहीं पाए. उनके साथ हमेशा यह होता है.
राहुल गांधी अपने पिता राजीव गांधी की तरह सहज हो कर बात नहीं कर पाते. राजीव गांधी का भी शुरु शुरु में मज़ाक उडता था, क्योकि वह ज़मीन के आदमी नहीं थे. लेकिन वह कभी होश नहीं खोते थे, न ही भाषण देते समय आपा खोता थे. जबकि राहुल गांधी जोश में होश खो जाते हैं. लोकसभा चुनाव से पहले प्रेस क्लब में उनका गुस्सा जायज था, उस गुस्से से वह दर्शाना चाहते थे कि गलत गलत है भले वह गलत उन्ही की पार्टी के प्रधानमंत्री ने किया हो. राहुल गांधी ने उस समय वह अध्यादेश रुकवा कर देश का भला किया, जो मनमोहन सिंह सजा याफ्ता लालू यादव को चुनाव लडने का पात्र बनाने बनाने वाला था. लेकिन उन के गुस्से ने उन्हे मज़ाक का पात्र बना दिया.
कांग्रेस अपने 131 साल के इतिहास में सब से ज्यादा संकट काल में है. सोनिया गांधी अस्वस्थ होने की वजह से ज्यादा काम नहीं कर सकती, इस लिए कांग्रेस को इस संकट से उबारने के लिए पार्टी कार्यकर्तायो को फिलहाल सिर्फ राहुल गांधी से उम्मींद है. लेकिन राहुल गांधी गम्भीर,परिपक्व और विषयो को समझने वाले नेता की छवि नहीं बना पा रहे. कभी उन की संसद में झपकी लेते की तस्वीर छपती है, कभी सदन में पूरा का पूरा भाषण हंसी मज़ाक का पात्र बन कर रह जाता है. उनके सलाहकारों को उन्हें समझाना चाहिए कि वह चुटकले नहीं पढा करें, इस का असर उन के संसद में भाषण पर पड्ता है, संसद में दिया गया उन का एक भाषण यू ट्यूब पर हंसी मज़ाक का विषय बना हुआ है.
उन के सलाहाकारो को उन्हें यह भी समझाना चाहिए कि वह अपने भाषण में जोश की बजाए परिपक्वता और सहजता की ओर धयान दें. उन की मां ने भी गुजरात विधानसभा चुनावो में खून की दलाली जैसा जुमला बोला था. उन्होने नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कह दिया था, वह उन्हे इतना महंगा पडा कि सालों साल उस के नतीजे भुगतने पडे. लोकतंत्र में विपक्ष का मजबूत होना जरुरी है,कांग्रेस के कार्यकर्ता राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष बनने का इंतजार कर रहे हैं , लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता दो कारणो से उन को बागडोर सम्भालने का विरोध कर रहे है. एक कारण है उन का अपरिपक्वता दिखाना और बात बात पर कपडे फाडना, यूपी विधानसभा के पिछले चुनाव में उन्होने मंच से एक कागज फाड दिया था.
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