सुप्रीमकोर्ट ने "निजता" को बताया मौलिक अधिकार

Publsihed: 24.Aug.2017, 12:30

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संवैधानिक बेंच ने गुरुवार को ‘राइट टू प्राइवेसी’ मामले में एक ऐतिहासिक फैसला दिया जिसके अनुसार कोर्ट ने निजता के अधिकार को एक मौलिक अधिकार माना है। हालांकि आधार कार्ड पर कोर्ट  फैसला पांच सदस्यीय बैंच पर छोड़ दिया है | लेकिन कांग्रेस ने आज जल्दबाजी में बुलाई गई प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि सरकार आधार कार्ड का हर मामले में इस्तेमाल नहीं कर सकेगी | 

पी.चिदम्बरम और सुरजेवाला ने सुप्रीमकोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि कांग्रेस के स्टेंड को अदालत ने सही साबित किया | इस फैसले का प्रभाव देश के करोड़ो लोगों पर पड़ेगा।  9 जजों की संवैधानिक बेंच के सदस्यों में चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस आर के अग्रवाल, जस्टिस आर एफ नारिमन, जस्टिस ए एम सप्रे, जस्टिस धनन्जय वाईचन्द्रचूड, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।

शनिवार को रिटायर हो रहे चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता में नौ जजों की संवैधानिक पीठ ने 6 दिनों तक लगातार सुनवाई की थी और 2 अगस्त को पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। गुरुवार को नौ जजों की संवैधानिक पीठ ने इस मामले में आखिरी फैसला सुना दिया है और कहा कि, निजता के अधिकार को एक मौलिक अधिकार माना है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 (ए) के तहत आता है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड के मामले पर कुछ नहीं कहा। हालांकि, आधार कार्ड मामले में 5 जजों की बेंच पर फैसला छोड़ दिया गया है।

केंद्र को लगा झटका

बता दें कि, केंद्र सरकार निजता मौलिक अधिकार नहीं मानती है और इसे लेकर केंद्र ने कोर्ट में अपना पक्ष भी रखा था और अब कोर्ट के फैसले का असर तमाम समाज कल्याण योजनाओं पर पड़ेगा जिसका लाभ उठाने के लिए आधार को अनिवार्य करने में लगी थी। अब सरकार को सरकारी नीतियों पर नए सिरे से समीक्षा करनी होगी जिसके अनुसार अब आपके निजी डेटा को लिया जा सकता है लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।

क्या थी दलीलें ?

बता दें कि, कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व जज केएस पुत्तास्वामी ने साल 2012 में आधार स्कीम को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की थी और कहा था कि, ‘इस स्कीम से इंसान के निजता और समानता के मौलिक अधिकार का हनन होता है।’ याचिकाकर्ताओं में पूर्व जज केएस पुत्तास्वामी के अलावा बी विल्सन, अरुणा रॉय और निखिल डे भी शामिल हैं। इस मामले में केंद्र सरकार अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि, आज का दौर डिजिटल है, जिसमें राइट टू प्राइवेसी जैसा कुछ नहीं बचा है।’

वहीं, याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि, “यह आम आदमी के निजता के अधिकार में दखल है। आधार स्कीम पूरी तरह से मूल अधिकार में दखल है। संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद-21 (जीवन व स्वतंत्रता का अधिकार) में दखल है।” पहले ये मामला सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच के पास गया लेकिन सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने इस मामले को 9 जजों को रेफर किया था। 9 जजों की संवैधानिक बेंच ने पहले इस मामले में सुनवाई की थी और 2 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया और गुरुवार को इस मामले में अपना फैसला सुना दिया।

आपकी प्रतिक्रिया