आलोक शर्मा / जयपुर के चांदपोल इलाके में एक नामी मुस्लिम रेस्तरां है 'बिस्मिल्लाह'। मशहूर उससे पहले से है, जब से मैंने उसे जाना। यह वक्फ़ा भी तीस साल तो होगा ही। इस्लाम में जक़ात का नियम है। इसके मुताबिक़ प्रत्येक मनुष्य को अपनी आय का एक निश्चित हिस्सा दान करना चाहिए। इसकी शुरुआत करने वाले सज्जन ख़ालिस मज़हबी उसूलपसंद और सज्जन इंसान थे। इसलिए उन्होंने नियम बना रखा था कि प्रतिदिन सुबह-शाम जब भी कारोबार की शुरुआत होती, एक घंटा अवधि तक जरूरतमंदों को निशुल्क भोजन वितरित किया जाता था। इस अवधि में उसके सामने फकीरों, भिखारियों और अन्य बेबसों की भीड़ लगी रहती। अच्छाई आपको मोल चुकाती ही है। अल्लाहतआला ने उन्हें ख़ूब बरक़त दी। रेस्टोरेंट लगातार बढ़ता गया और बिजनेस भी। जब मैंने उसे जाना था, तब वह छोटा सा ढाबा था, लेकिन धीरे-धीरे बेशुमार आमदनी वाला एक बड़ा रेस्तरां हो गया। वालिद जन्नतनशीं हुए, तो औलाद ने भी यह खानदानी रवायत जारी रखी। अरसे से उधर जाना नहीं हुआ, अतः सुनिश्चित नहीं हूं, फिर भी यक़ीन है कि सिलसिला जारी होगा।
जयपुर के ही मिर्ज़ा इस्माइल रोड पर आकाशवाणी के कार्यालय के पास एक बेहद मशहूर चाय विक्रेता हैं गुलाब जी। उनकी दुकान बमुश्किल दस वाई छह फीट की होगी और वे चाय, फैन तथा बिस्किट के अलावा कुछ और नहीं रखते थे। इन्हें भी मैंने उतनी ही अवधि पूर्व जाना। ये भी धर्मप्राण और परोपकारी जीव थे, अतः नियम बना रखा था कि पहली चाय सर्व होने के एक घंटा तक जरूरतमंदों को एक चाय और बिस्किट या फैन मुफ़्त वितरित किया जाता था। यहां भी सुबह-सवेरे से ही फकीरों, भिखारियों और अन्य बेबसों की भीड़ लगी रहती थी। उनकी एक ख़ासियत यह भी थी कि इस एक घंटे की अवधि में अगर कोई सामान्य ग्राहक बिना पैसे दिए उठ कर चल दे, तो वे उसे टोकते कतई नहीं थे। कोई और कहता, तो शायद मैं यकीन नहीं करता, लेकिन एक बार का मेरा खुद का अनुभव है। आकाशवाणी में एक रिकॉर्डिंग थी। तय समय पर सुबह ही एक मित्र के साथ मैं पहुंच गया। चर्चा में वे भी आमंत्रित थे। कार्यक्रम संयोजक वेद व्यास जी ने बताया कि तैयारियों में अभी एक घंटा लगेगा, तो हम चायपान के लिए वहां पहुंच गए। फैन खाकर चाय पीने के बाद हम उठे। किसी ग़लतफ़हमी के कारण दोनों ने मान लिया कि पैसे दूसरे ने दे दिए होंगे और चलते बने। कोई रोक-टोक नहीं हुई। आकाशवाणी के मेनगेट पर पहुंच कर अचानक मेरी छठी इन्द्रिय सक्रिय हुई और मैंने मित्र से पूछा - यार, पैसे दे दिए थे न?
उन्होंने कहा, अरे तुमने नहीं दिए क्या? मैं तो समझा था कि तुमने दे दिए।
हम लौटे। मैंने उनसे क्षमा मांगी और पूछा - आपने कहा क्यों नहीं?
उनका उत्तर था - हक़ का पैसा कहीं नहीं जाता। जो अपना नहीं है, वह कभी नहीं मिलता। आप आ गए न पलट कर। और हलके से मुस्करा दिए।
लेकिन गुलाब जी का सबसे बड़ा परिचय यह है कि वे शास्त्रीय संगीत के तगड़े शौक़ीन थे। जयपुर में एक संगीत संध्या आयोजित करने में वे प्रति वर्ष लाखों रुपए खर्च करते थे। उन्होंने जयपुर वालों को पंडित भीमसेन जोशी, कुमार गन्धर्व, पंडित जसराज जैसे अनेकानेक कलाकारों की कला का रसास्वादन कराया। यह सब उसी छोटी सी दुकान के बल पर। उधर गए हुए भी अरसा हुआ, लेकिन मुझे विश्वास है कि उनकी संतति अपने पिताश्री की परम्परा जारी रखे होगी।
इस सब का उल्लेख आज इसलिए कि बिरादर तनिक समझो। पकौड़ा बेचना आपकी नज़र में गुनाह हो गया, लेकिन श्रम और नेकचलनी का अपना महत्व है। ताज़्ज़ुब की बात यह है कि पीएम के पकौड़ा संबंधी बयान का सबसे मुखर विरोध समाजवादियों, उनसे गलबहियां करती रही कांग्रेस और श्रम का महत्व जानने और स्थापित करने का दावा करने वाले वामपंथियों ने किया है।
जिस देश में सीए, बीटेक-एमटेक, एमबीए चपरासी अथवा सफाईकर्मी के सरकारी पद के लिए आवेदन करने को विवश हैं, वहां यह आभिजात्य समझ से परे है। ग़ज़ब की बात यह है कि पढ़े-लिखे नौजवान निजी नौकरियों तक में बारह-चौदह घंटे के बंधुआ मज़दूर बनने को तैयार हैं, लेकिन ऐसे काम छोटे हैं।
आंखे खोलो, मित्रो। आजकल सब्जी विक्रेता तक अपनी थड़ी खोलने के लिए कार में आता है और आप?
पीएम की समस्या यह है कि वे एक साथ दो भूमिकाएं निभा रहे हैं - नेता और समाज सुधारक। मुझे उम्मीद है कि भारत का युवा उन्हें बहुत जल्द मुकम्मल तौर पर समझ लेगा और तब भारत की तस्वीर कुछ और होगी।
( लेखक जयपुर के वरिष्ठ पत्रकार हैं, उन की वाल से साभार )
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