सिंधु जल समझौते की समीक्षा करेंगे मोदी

Publsihed: 25.Sep.2016, 23:36

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  सोमवार को सिंधु जल संधि पर विचार विमर्श के लिए उच्च स्तरीय बैठक बुला रहे हैं. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने 23 सितम्बर को इशारा किया था कि भारत "इंडस वाटर ट्रिटी" पर पुनर्विचार कर सकता है. प्रवक्ता के इस बयान के अगले दिन जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने अपने मंत्रालय में संधि का जमा घटाओ समझा. इंडिया गेट न्यूज़ डाट काम ने विकास स्वरूप के बयान के तुरंत बाद उसी दिन अपनी समीक्षा में लिखा था कि यह कूट्नीतिक दृष्टी से ठीक कदम नहीं होगा, क्योंकि इस से पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहानुभूति मिलेगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान को सम्भावित सहानुभूति को दरकिनार कर के अगर कोई बडा कदम उठाते हैं तो कूटनीतिक दृष्टि से बेहद साहसिक कदम होगा. सम्भवत आजादी के बाद इतना बडा कूटनीतिक साहसिक कदम भारत ने पहले कभी नहीं उठाया. अब तक सारी कूटनीति अफसरशाही के दिमाग से होती रही है. मोदी संधि भले ही रद्द न करेन, लेकिन अगर उन्होने संधि रद्द करने का एक बयान भी दे दिया तो पाकिस्तान के पसीने छूट जाएंगे , क्योंकि यह संधि पाकिस्तान के हित में हुई थी.  जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने विश्व बैंक के हस्तक्षेप से 19 सितम्बर 1960 को कराची में इस ट्रिटी पर जब दस्तख्त किए थे. तब भारत ममें इस की आलोचना हुई थी. इस के बाद फारूक अब्दुल्ला ने कारगिल युद्ध के बाद संधि रद्द करने की मांग की थी. नेशनल कान्फ्रेंस अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में हिस्सेदार थी और फारूक ने खुल कर कहा था कि नेहरू ने यह संधि जम्मू कश्मीर के हितो की अनदेखी कर के की थी. 

भारत में इस ट्रिटी के लिए नेहरू की शुरु से आलोचना होती रही है, क्योंकि नेहरू ने भारत के हिमालयाई क्षेत्र से निकली पश्चिम की तीन नदियों इंडस,चिनाब और झेहलम के सारे पानी पर पाकिस्तान का हक स्वीकार कर लिया था. भारत को हालांकि पेयजल, कृषि, संचार,पनबिजली परियोजनाओ का अधिकार दिया गया था, लेकिन बाद में पाकिस्तान लगातार भारत की पनबिजली परियोजनाओं पर आपति जाहिर करता रहा है.पाकिस्तान के दबाव में भारत को कई बांधो की ऊंचाईं घटानी पडी है.

दूसरी तरफ जम्मू कश्मीर में इस ट्रिटी का विरोध होता रहा है, क्योंकि इन नदियो का उद्गम भारत से है. भारत नदियों का रूख मोड कर सारे पानी का इस्तेमाल कर सकता था. जैसे ट्रिटी के अनुसार भारत इंडस नदी का सिर्फ 20 फिसदी पानी ही इस्तेमाल कर सकता है, जो कश्मीर के लिए अपर्याप्त है. अब अगर भारत इन नदियो का प्रवाह बदल देता है तो पाकिस्तान सूखे और अकाल का शिकार हो सकता है. तो क्या नरेंद्र मोदी इतना बडा कदम उठा सकते हैं. हालांकि कूटनीतिक लिहाज से आसान नहीं है, लेकिन अब तक हम कूटनीति को इसी नजरिए से देखते रहे हैं. क्या मोदी भरतीय कूटनीति का नजरिया बदल देंगे. 

 

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