उत्तराखंड विधानसभा का नतीजा उम्मीद के मुताबिक ही है. स्पीकर ने भाजपा के विधायक भीम लाल आर्य को बर्खास्त नहीं कर के भाजपा का एक वोट हरीश रावत के लिए सुरक्षित कर लिया था. इस लिए भाजपा 28 से 27 हो गई, लेकिन कांग्रेस की रेखा आर्य ने भाजपा के साथ वोट कर के भाजपा के वोट फिर 28 कर दिए. बाकी 62 में से 34 वोट हरीश रावत के पक्ष में गए.....यानि स्पीकर ने 9 कांग्रेसी विधायकों को निलंबित न किया होता तो हरीश रावत के पक्ष में 34 और उन के विपक्ष में 37 विधायक होते.
पहली रणनीतिक गलती
भाजपा और कांग्रेस के बागी राजनीतिक रणनीति बनाते और विनियोग विधेयक की जगह अविश्वास मत पेश करते तो 18 मार्च को सदन में सरकार गिर गई होती.
दूसरी रणनीतिक गलती
भाजपा और कांग्रेस के विधायक राज्यपाल से अलग अलग मुलाकात करते और अलग अलग मेमोरंडम देते तो विधायकों की सदस्यता रद्द का कोई ठोस आधार नहीं बनता.
तीसरी संवैधानिक गलती
35 विधायकों ने 18 मार्च की रात राज्यपाल से कहा था कि विनियोग विधेयक मत विभाजन से पास नहीं हुआ. राज्यपाल को स्पीकर से रिपोर्ट मांग कर विनिवेश विधेयक पर निर्णय लेना था. लेकिन उन्होंने हरीश रावत को 9 दिन में जुगाड का मौका दे कर बहुमत साबित करने को कह दिया. बस यहीं से भाजपा और बागियों की रणनीति का खेल बिगड गया था.
चौथी संवैधानिक गलती
केंद्र सरकार ने राज्यपाल की गलती सुधारते हुए सदन में संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार विनियोग विधेयक पास नही होने को संवैधानिक ब्रेक डाउन मानते हुए उस के आधार पर राष्च्रपति राज लगाया. लेकिन अटार्नी जनरल सुप्रीम कोर्ट में सदन में बहुमत के सिद्धांत पर सहमत हो गए.
अब सुप्रीमकोर्ट को संवैधानिक ब्रेकडाउन पर फैसला सुनाना चाहिए. संवैधानिक ब्रेकडाउन की परिभाषा तय करनी चाहिए.लोकसभा मे उत्तराखंड के बजट पर बहस का जवाब देते हुए वित्तमंत्री अरूण जेतली ने कहा कि अपने बहुमत के आधार पर कोई विधानसभा भारत से अलग होने का प्रस्ताव पास कर दे तो क्या 356 नहीं लगाया जाएगा. यह संवैधानिक ब्रेकडाउन बनता है. इस लिए सुप्रीमकोर्ट को संवैधानिक ब्रेकडाउन की परिभाषा तय करनी चाहिए. मामला अभी सुप्रीमकोर्ट में है. संभवत आगे की बहस इस मुद्दे पर होगी. जो बात अरूण जेतली सदन में जोर दे कर कह रहे हैं, वह बात उन का अटार्नी जनरल सुप्रीम कोर्ट मे क्यों नहीं कह पाया. अब अगर बुधवार से शुरू होने वाली सुनवाई सरकारी लाइन पर नहीं हुई और कोर्ट का फैसला केबिनेट के फैसले के अनुरूप नहीं हुआ तो मोदी सरकार की बहुत बडी हार ही नहीं होगी अलबता उनकी केबिनेट में बैठे कानूनविदों की भी पोल खुलेगी, जिन की पैरवी पर राष्ट्रपति राज लगाया गया था. अटार्नी जनरल की तो छुट्टी भी हे सकती है क्योंकि सुब्रह्मणयम स्वामी पहले से उनसे खार खाए हुए हैं.
भाजपा राजनीतिक तौर पर मात खा गई है क्योंकि कांग्रेस के दस विधायक टूटने के बावजूद वह उस का सदन में सीधा लाभ नहीं उठा पाई. यह रणनीतिक अपरिपकवता के चलते हुआ. इस राजनीतिक उथल पुथल में सतपाल महाराज की राजनीतिक उपयोगिता और दावे की भी पोल खुल गई. शुरू में वह अपने साथ 7 विधायक होने का दावा कर रहे थे. फिर चार का दावा किया, बाद में पार्टी अनुशासन की धज्जियां उडाते हुए एक लिखित बयान में यंहा तक कह दिया कि पहले भगत सिंह कोशियारी अपनी चेली रेखा आर्य को कांग्रेस से ले कर आएं फिर वह भी कांग्रेस से अपने विधायक ले आएंगे. आज जब सुप्रीमकोर्ट के निर्देश पर सदन में मतविभाजन हुआ तो कांग्रेस की रेखा आर्य (जो पिछली बार भाजपा टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस में चली गईं थी और कांग्रेस के टिकट पर जीती थी.) ने भाजपा के साथ वोट किया लेकिन सतपाल महाराज खेमें का एक भी कांग्रेसी या पीडीएफ का विधायक भाजपा के साथ नहीं आया.
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