अमर उजाला, 22 November 2015
सितंबर २००८ में पांच बम धमाकों के बाद दिल्ïली पुलिस ने बाटला हाउस में छापा मारा तो कई घंटे की मुठभेड़ हुई। दो आतंकी मारे गए और दो भागने में कामयाब हो गए। मुठभेड़ का विशेषज्ञ मोहन चंद्र शर्मा भी मुठभेड़ में मारा गया, लेकिन सत्ताधारी कांग्रेस के एक बड़े नेता ने मुठभेड़ को फर्जी करार दे दिया। सपा, बसपा जैसे करीब करीब सभी दलों ने मुठभेड़ को फर्जी बताया। पूरे देश मेें बवाल हुआ, संसद, मानवाधिकार आयोग और अंतत: अदालत ने मुठभेड़ को असली करार दिया।
बाटला हाउस की याद इसलिए आई क्योंकि पेरिस में हुए आतंकी हमले केबाद भी मुठभेड़ हुई। सेंट डेनिस के अपार्टमेंट में छापा मारा गया, मुठभेड़ में आतंकी हमले के मुख्य अभियुक्त अब्दुल हमीद अकनौद समेत तीन आतंकी मारे गए और सात भाग गए। सेक्यूलरिज्म तो फ्रांस में भी है। इसीलिए यूरोप में फ्रांस एक ऐसा देश है, जहां मुसलमानों की आबादी सर्वाधिक है। लेकिन वहां किसी राजनीतिक दल ने मुठभेड़ को फर्जी नहीं कहा। भारत आतंकवाद का सर्वाधिक शिकार देश है। अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के ताजा आंकड़ों के अनुसार १६२ देशों में भारत आतंकवाद का शिकार छटे नंबर का देश है। भारत के नेता इसके बावजूद आतंकवाद को लेकर गंभीर नहीं हैं। मणिशंकर अय्यर विदेश सेवा में रहे, केंद्र में मंत्री रहे, अभी मनोनीत सांसद हैं, लेकिन पैरिस हमले के बाद उनका बयान आया कि फ्रांस में आतंकी हमला असहिष्णुता के कारण हुआ। उत्तर प्रदेश के मंत्री आजम खां का बयान आया कि अमेरिका और यूरोपीय देशों की अफगानिस्तान, इराक और सीरिया नीति की प्रतिक्रिया है। कुल मिलाकर हम बाटला हाउस से एक कदम आगे नहीं बढ़े। आतंकवाद पर हमारी सोच तुच्छ राजनीतिक और तुष्टिकरण से भरी हुई है। उधर पैरिस पर आतंकी हमले के कुछ घंटे बाद ही वहां के समाजवादी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने आतंकवाद के खिलाफ बाकायदा युद्ध छेड़ दिया, जिसमें फ्रांस की दक्षिणपंथी मध्यमवर्गीय पार्टियां भी उन के साथ हैं। यहां तक कि रूस और अमेरिका ने भी फ्रांस के साथ मिलकर नए इस्लामी राज्य 'दाएश' की राजधानी 'रक्का' को बमबारी करके तबाह कर दिया। तीनों राष्ट्रों का ऐसा गठबंधन ७५ साल पहले हिटलर के खिलाफ हुआ था।
फ्रांस ने सिर्फ सीरिया पर नहीं अलबत्ता अपने देश के अंदर भी कार्रवाई शुरू की। उसने कुछ घंटे के अंदर ही घोषित कर दिया था कि 'स्थानीय मदद' से फ्रांस पर हमला हुआ है। चार दिन बाद सेंट डेनिस में हुई मुठभेड़ में यह साबित हो गया जिसमें बेल्जियम निवासी अब्दुल हमीद मारा गया।मुंबई पर हुआ पाक प्रायोजित आतंकी हमला भी 'स्थानीय मदद' के बिना संभव नहीं जान पड़ता। उस समय यह आवाज भी उठी थी। बाटला हाउस जैसी भारत की तुच्छ सांप्रदायिक राजनीति उस 'स्थानीय' को निगल गई। क्योंकि अगर कोई ऑपरेशन होता तो देश सेंट डेनिस की तरह एकजुट दिखाई नहीं देते। भारत में अभी यह ब्रह्म वाक्य है कि आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता। भाजपा के एक नेता ने एक बार कह दिया था कि आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन सभी आतंकवादी एक धर्म के होते हैं, इस पर अब तक भारत में बवाल मचता रहता है। लेकिन दुनियां के देश अब यह मानने लगे हैं कि आतंकवाद की सारी घटनाएं धर्म आधारित हैं। आईएसआईएस नाम नया हो सकता है, लेकिन जेहादी गुटों का पश्चिमी देशों पर निशाना नया नहीं है। ग्यारह वर्ष पहले २००४ मेड्रिड पर हुए आतंकी हमले में १९१ लोग मारे गए थे, २००५ में लंदन, २०११ में नार्वे, २०१२ में फ्रांस, २०१४ में ब्रसुल्स, २०१५ में दो बार फ्रांस इस्लामिक आतंकवाद के हमले झेल चुके हैं। भारत समेत दुनिया भर के मुसलमान यह मानते हैं कि ९/११ के बाद अमेरिका ने जिस तरह अफगानिस्तान और इराक को बर्बाद किया ये उसकी प्रतिक्रिया है।दुनिया का मुसलमान कहीं भी रहता हो, वह एक ही तरह से सोच रहा है। एशिया ही नहीं, यूरोप के मुसलमान भी खुद को यूरोपियन बाद में और मुसलमान पहले मानते हैं। इसलिए संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट चौंकाने वाली है कि ४००० यूरोपीयन मुसलमान सीरिया में आईएसआईएस के साथ मिलकर सीरिया सरकार के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं।
सीरिया मुस्लिम आतंकवादियों की नई प्रयोगशाला बन चुका है, जहां दुनियाभर के कट्टरपंथी मुस्लिम इकट्ठा हो रहे हैं और उन्हें प्रशिक्षण देने के बाद उनके अपने देशों में ऑपरेशन करने के लिए भेजा जाने लगा है। इस नई प्रयोगशाला से खतरा बढ़ गया है कि कहीं तीसरा विश्व युद्ध जेहाद की शक्ल में न हो। सीरिया के कुर्द और यहुदी(याजिदी) शरणार्थियों के साथ-साथ आईएसआईएस के जेहादी भी यूरोपीय देशों में शरणार्थियों की शक्ल में जा चुके हैं, सेंट डेनिस में मारे गए दो आतंकवादियों के पास से सीरिया के पासपोर्ट बरामद होने के साथ साथ शरणार्थी का कार्ड भी मिला है। इसलिए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि सीरिया के शरणार्थी यूरोपीय देशों के लिए खतरे की घंटी साबित होंगे। आतंकियों का अगला निशाना रूस हो सकता है। भारत से कितने मुस्लिम सीरिया पहुंचे हैं, इसकी कोई पक्की खबर नहीं है। लेकिन कश्मीर में आए दिन आईएसआईएस के बैनर - झंडे दिखाया जाना खतरे से खाली नहीं है। भारत सरकार को अपनी कश्मीर नीति नए सिरे से बनानी होगी। अब खतरा सिर्फ पाकिस्तान के लश्कर-ए- तोएबा से नहीं, बल्कि आईएसआईएस के अंतरराष्ट्रीय गिरोह से होगा।
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