पाकिस्तान का शासन अब सिर्फ दो प्रांतों पंजाब और सिंध तक ही सीमित रह गया है। जरदारी ने यह मान लिया है कि फाटा और एनडब्ल्यूएफपी के ज्यादातर इलाकों में अलकायदा का कब्जा हो गया है। पाकिस्तान की नींद अब उखड़ी है, जब बहुत देर हो चुकी है। अब भी अगर पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ खड़ा नहीं होता, तो भारत और अमेरिका को सैन्य कार्रवाई करनी पड़ेगी।
अमेरिका के नए राष्ट्रपति बाराक हुसैन ओबामा ने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस करवाने में बीस दिन का लंबा वक्त लिया। भारत के प्रधानमंत्री की तरह तुरुत -फुरुत अपनी नीतियों का खुलासा करने के बजाए ओबामा ने अपनी रणनीति पर अमल शुरू करने के बाद खुलासा किया। जैसी कि उम्मीद थी ओबामा ने दुनियाभर की भावनाओं की कद्र करते हुए इराक में बुश प्रशासन की गलतियों को सुधारना शुरू कर दिया है। दूसरी तरफ अफगानिस्तान के मोर्चे पर और कड़ाई बरतनी शुरू की है, ताकि तालिबान और अलकायदा का फैलाव रोका जा सके। जार्ज बुश के अफगानिस्तान पर हमले का नतीजा यह निकला है कि इन दोनों कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवादी संगठनों का फैलाव पाकिस्तान के फाटा (फैडरली एडमिनस्टर्ड ट्राइबल एरिया), एनडब्ल्यूएफपी(नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस) और ब्लूचिस्तान तक हो गया है। फिलहाल पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांत ही इन दोनों आतंकी संगठनों के प्रभाव से बचे हुए हैं। हालांकि यह दावा के साथ नहीं कहा जा सकता कि इन आतंकी संगठनों का इन दोनों प्रांतों में बिल्कुल प्रभाव नहीं है।
नाइन-इलेवन के बाद राष्ट्रपति बुश ने जब अफगानिस्तान पर हमला बोला, तो वहां की तालिबानी सरकार और ओसामा बिन लादेन के अलकायदा मरजीवड़ों ने पाकिस्तान के फाटा और एनएफडब्ल्यूपी से लेकर ब्लूचिस्तान तक पांव फैला लिए। अफगानिस्तान की तालिबान सरकार और अलकायदा के संबंध पहले ही पाकिस्तान के साथ ठीक नहीं थे। ऊपर से परवेज मुशर्रफ सरकार ने तालिबान और अलकायदा के खिलाफ अमेरिका को भरपूर समर्थन दे दिया था। इसलिए इन दोनों कट्टरवादी संगठनों ने पाकिस्तान के इन तीनों प्रांतों की सरकारी एजेंसियों पर कब्जा करना शुरू कर दिया। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि जिस तरह अफगानिस्तान पर कोई विदेशी शासक कभी राज नहीं कर पाया, उसी तरह भारत पर शासन करने वाला कोई विदेशी शासक फाटा पर भी कभी शासन नहीं कर पाया। भारत-पाक बटवारे के बाद पाकिस्तान में चार प्रांत बनाए गए थे- पंजाब, सिंध, एनडब्ल्यूएफपी और ब्लूचीस्तान। फाटा के बीस हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को किसी प्रांत में शामिल नहीं किया गया था। फाटा ने पाकिस्तान का शासन कबूल नहीं किया था। एनडब्ल्यूएफपी का गवर्नर ही फाटा में पाकिस्तान सरकार के एजेंट के तौर पर काम करता था। अय्यूब खां ने पांचों प्रांतों को भंग करके पाकिस्तान को एक इकाई के तौर पर बना दिया था लेकिन उसके खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ और आखिरकार 1969 में जनरल याहियां खां ने शासन संभालते ही चारों प्रांतों को दुबारा से गठित कर दिया। डीर, स्वात, चितराल, मालाकंड और हजारा ट्राइबल क्षेत्रों को एनडब्ल्यूएफपी में शामिल किया गया, जबकि झोब, सिब्बी, लोरालाई और चगाई ट्राइबल क्षेत्रों को ब्लूचिस्तान में शामिल किया गया। बाकी बचे ट्राइबल क्षेत्रों मोहमंड, कुर्रम, खैबर, बाजौर, ओराकजाई, उत्तरी वजीरीस्तान, दक्षिणी वजीरीस्तान, कोहाट, पेशावर, बानू और डेरा इस्माइलखां जिलों को फाटा में शामिल किया गया। फाटा में तो पहले ही पाकिस्तान की हुकूमत नहीं चलती थी, लेकिन अब फाटा, एनडब्ल्यूएफपी और ब्लूचिस्तान पर भी आतंकियों का कब्जा हो चुका है।
अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा ने नौ फरवरी को पाकिस्तान और अफगानिस्तान के लिए तैनात अपने नुमाइंदे रिचर्ड होलबु्रक को पाकिस्तान भेज दिया था। रिचर्ड होलबु्रक ने दो दिन तक पाकिस्तान सरकार और सेना प्रमुख से बातचीत करके उन्हें साफ कर दिया कि अगर पाकिस्तान के इन तीनों प्रांतों में आतंकवादियों का खात्मा करने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो पाकिस्तान को मुश्किल का सामना करना पड़ेगा। दस फरवरी को बाराक ओबामा ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में भी पाकिस्तान को साफ-साफ चेतावनी दे दी थी कि उसके इलाके आतंकवादियों के पनाह केंद्र बन चुके हैं, अगर उसने आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू नहीं की, तो पाकिस्तान को नतीजे भुगतने पड़ेंगे। प्रेस कांफ्रेंस के अगले दिन बाराक ओबामा ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से फोन पर बात करते हुए उन्हें आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई में ईमानदारी बरतने की स्पष्ट चेतावनी दी। जरदारी को यह भी कहा गया कि वह अपनी ईमानदारी का सबूत मुंबई पर हमला करने वाले पाकिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ फौरन ठोस कार्रवाई करके दिखाए। नतीजतन पाकिस्तान सरकार को अगले ही दिन यह मानना पड़ा कि मुंबई में हमला करने गए आतंकवादी पाकिस्तानी थे और वे कराची से समुद्र के रास्ते मुंबई पहुंचे थे। पाकिस्तान के पास इस बात के सबूत कई दिनों से मौजूद थे, लेकिन वह इसे कबूल करने में आनाकानी कर रहा था। मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले के पीछे पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तोएबा का हाथ होने के पक्के सबूत सिर्फ भारत ने ही नहीं, अलबत्ता अमेरिका ने भी पाकिस्तान को मुहैया करवा दिए थे। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने राष्ट्रपति जरदारी और प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी से ज्यादा ईमानदारी बरती, जब उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा कि मुंबई हमले के वक्त पकड़ा गया कसाब पाकिस्तान का नागरिक है, जिसे कबूल करने में आनाकानी नहीं करनी चाहिए। लेकिन सरकार ने भारत की ओर से सबूत दिए जाने के बावजूद अपनी आनाकानी जारी रखी। अब भले ही अमेरिका के दबाव में पाकिस्तान ने यह कबूल किया है कि मुंबई हमले में उसके नागरिक शामिल थे, लेकिन अभी भी उसका किंतु-परंतु जारी है। फिर भी दुनिया के सामने अब यह साबित हो गया है कि भारत जो बात पिछले तीस साल से कह रहा था, वह सही थी कि भारत में होने वाले सभी आतंकवादी हमलों की जड़ में पाकिस्तान ही है। हालांकि अभी यह साबित होना बाकी है कि भारत में आतंकवादी वारदातें करने के लिए आने वाले आतंकियों को पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई ही भेजती रही है।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने आखिर अमेरिकी टेलीविजन सीबीएस को दिए गए इंटरव्यू में यह कबूल कर लिया है कि तालिबानी और अलकायदा के आतंकवादियों ने फाटा के पेशावर और एनडब्ल्यूएफपी की स्वात घाटी में कब्जा कर लिया है। उन्होंने कहा है कि अब उनके पास यह कबूल करने के सिवा कोई चारा नहीं बचा है कि तालिबानी लड़ाके पूरे पाकिस्तान पर कब्जा करने की फिराक में हैं। उन्होंने यह भी कबूल कर लिया है कि पाकिस्तान में तालिबान और अलकायदा का समर्थन होने के कारण उनकी सरकार को देश का अस्तित्व बचाने के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है। जरदारी ने इस इंटरव्यू में कहा है कि पिछले सात सालों में अलकायदा और तालिबान का प्रभाव इतना ज्यादा बढ़ चुका है कि पाकिस्तान की सेना को उनका मुकाबला करने में मुश्किल पेश आ रही है। हालांकि उन्होने जोर देकर कहा है कि उनकी सरकार किसी भी हालत में फाटा और एनडब्ल्यूएफपी में आतंकवादियों के सामने घुटने नहीं टेकेगी। अमेरिकी टेलीविजन पर असलियत को कबूल करने से पहले जरदारी ने प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी, सेना प्रमुख असफाक परवेज कियानी, आईएसआई प्रमुख जनरल अहमद शुजा पाशा, विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशी, गृहमंत्री रहमान मलिक, एनडब्ल्यूएफपी के गवर्नर ओवैस अहमद गनी, वहां के मुख्यमंत्री हैदर खां होती भी मौजूद थे। बाराक ओबामा के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद पाकिस्तान सरकार में व्यापक बदलाव देखने को मिल रहा है। इससे पहले अमेरिका की रहनुमाई वाली नाटो फौजें जब स्वात घाटी, कोहाट, बाजौर वगैरह में अलकायदा के ठिकानों पर हवाई हमले करती थी, तो पाकिस्तानी सरकार उसका कड़ा विरोध करती थी। अब न सिर्फ पाक सरकार ने यह कबूल कर लिया है कि उसके ज्यादातर हिस्सों पर तालिबान और अलकायदा का कब्जा हो चुका है अलबत्ता यह भी कबूल कर लिया है कि पड़ोसी देश भारत पर भी आतंकवादी हमले पाकिस्तान से ही हो रहे हैं। भारत के लिए यह अच्छी बात है कि पाकिस्तान ने उस सच्चाई को मानना शुरू कर दिया है, जिसे वह अब तक झुठला रहा था। पाकिस्तान अगर मुंबई हमले के मामले में ईमानदारी से कार्रवाई शुरू करता है, तो यह भारत-पाक रिश्तों में नया मोड़ साबित होगा। अलकायदा के आतंकियों से सिर्फ पाकिस्तान को खतरा नहीं है, वे लगातार आगे बढ़ रहे हैं और भारत से भी अब बहुत दूर नहीं रहे। भारत को यह याद रखना ही होगा कि आतंकवाद से मुक्त मजबूत पाकिस्तान में ही उसका भला है। पाकिस्तान अगर खुद आतंकवाद से मुक्त होने के लिए तैयार हो रहा है, तो भारत को आगे बढ़कर उसे सहयोग करना चाहिए। अगर पाकिस्तान आतंकवाद से मुक्त होने में ईमानदारी नहीं बरतेगा, तो भारत और अमेरिका को मिलकर आतंकवाद के खिलाफ दूसरे दौर की जंग शुरू करनी होगी।
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