प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उम्मीद थी कि अमेरिका से एटमी करार के मुद्दे पर सोनिया गांधी आखिर तक उनका साथ देंगी। इसलिए उन्होंने दस अगस्त को कोलकाता के टेलीग्राफ अखबार को इंटरव्यू देकर वामपंथियों को खुली चुनौती दे दी थी। सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह का दो महीने तक पूरा साथ दिया। पहले छह अक्टूबर को प्रधानमंत्री की इफ्तार पार्टी में और अगले दिन हरियाणा की एक रैली में एटमी करार का विरोध करने वाले कम्युनिस्टों को खुद चुनौती दी। लेकिन जब यूपीए के घटक दलों के तीन बड़े नेता करुणानिधि, शरद पवार और लालू प्रसाद यादव एटमी करार के मुद्दे पर चुनाव के खिलाफ खड़े हो गए, तो सोनिया गांधी हिम्मत हार गई। सोनिया गांधी ने आखिर इन्हीं तीनों नेताओं की बदौलत कांग्रेस को सत्ता के दरवाजे तक पहुंचाने में सफलता हासिल की थी। लालू यादव ने सोनिया गांधी से कहा कि वह अभी बिहार में नीतीश कुमार को हराने की हालत में नहीं हैं। शरद पवार ने महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी का पलड़ा भारी होने की बात कही। करुणानिधि ने सोनिया और मनमोहन सिंह दोनों से कहा कि जल्द चुनाव लादकर वे तमिलनाडु में उनके लिए मुसीबत खड़ी न करें। इन तीनों के तेवरों को देख अर्जुन सिंह, प्रणव मुखर्जी और शिवराज पाटिल ने भी सोनिया को चुनाव से आगाह कर दिया। जमीनी हालात जानकर सोनिया ने भी रुख बदलना बेहतर समझा और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यूपीए में एकदम अकेले पड़ गए।
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