2001 में असम के राज्यपाल एसके सिन्हा ने चेतावनी दी थी कि घुसपैठियों को बाहर नहीं निकाला गया तो सिविल वार की स्थिति पैदा हो जाएगी। 2005 में राज्यपाल अजय सिंह ने कहा था कि असम में हर रोज छह हजार बांग्लादेशी घुसपैठ करते हैं।
अक्टूबर के पहले हफ्ते में असम के उदलगुरी और दारांग जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों और बोडो आदिवासियों में हुए खूनी संघर्ष में डेढ़ दर्जन से ज्यादा लोग मारे गए। यह तो अभी शुरूआतभर है, आने वाले समय में असम हिंदू-मुस्लिम दंगों का मुख्य केंद्र बनने जा रहा है। कांग्रेस 1971 के बाद से बांग्लादेशियों की घुसपैठ को बढ़ावा देती रही है, जिसके नतीजे निकलने शुरू हो गए हैं।
बांग्लादेशियों ने बड़ी तादाद में जमीनों पर कब्जे कर लिए हैं, राशन कार्ड बनवा लिए हैं, वोटर लिस्ट में अपना नाम लिखवा लिया है और अब कस्बों-शहरों में जमीनों की खरीद-फरोख्त शुरू कर दी है। इन दंगों के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्रीय गृहराज्यमंत्री शकील अहमद की रहनुमाई में तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल हालात का जायजा लेने के लिए इन दोनों जिलों में भेजा था। प्रतिनिधिमंडल ने कांग्रेस अध्यक्ष को जो रिपोर्ट सौंपी है, वह आने वाले खतरे की घंटी है। प्रतिनिधिमंडल ने अपनी रिपोर्ट में बोडो आदिवासियों और बांग्लादेशी घुसपैठियों में हुए खूनी संघर्ष की जिम्मेदारी घुसपैठ का विरोध करने वाली असम स्टूडेंट यूनियन और संघ परिवार के सिर पर डाली है। रिपोर्ट में कहा गया है कि असम स्टूडेंट यूनियन और संघ परिवार से जुड़े संगठन बोडो आदिवासियों को बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ भड़काते हैं। असम में इस समय कांग्रेस सरकार है, स्पष्ट है कि वहां की कांग्रेस सरकार और केंद्र के गृहमंत्री की राय एक सी ही होगी। कांग्रेस कुल मिलाकर घुसपैठियों को अपने वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करते रहना चाहती है। इसलिए स्वाभाविक है कि केंद्र और राज्य की सरकार असंवैधानिक तौर पर घुसपैठ करने वाले बांग्लादेशियों का पक्ष ले रही है।
बांग्लादेशियों की घुसपैठ ठीक उसी तरह वहां की गुप्तचर एजेंसी की रणनीति का हिस्सा है जिस तरह पश्चिम में पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आतंकवाद फैला रही है। बांग्लादेश निर्माण के बाद से ही भारत में दोनों तरफ से हमला हो रहा है। पाकिस्तान ने आतंकवादियों की घुसपैठ करवाकर कश्मीर को हिंदू मुक्त क्षेत्र बना दिया है। बांग्लादेश अपने गरीब-गुरबों की घुसपैठ करवाकर असम का धार्मिक-जातीय संतुलन बदलने में सफल हो गया है। अब असम के आधे जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की तादाद मूल निवासियों से ज्यादा हो चुकी है। इसकी सारी जिम्मेदारी इंदिरा गांधी-राजीव गांधी और सोनिया गांधी की रहनुमाई वाली इंडियन नेशनल कांग्रेस पर जाती है। असम के लोगों ने बांग्लादेश की इस साजिश को सत्तर का दशक खत्म होते-होते ही भांप लिया था। तब असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) नाम से एक संगठन बनाया गया, जिसने घुसपैठियों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। कांग्रेस ने 1964 के फार्नर्स एक्ट के तहत घुसपैठियों को बाहर निकालने के बजाए उन्हें रोजी-रोटी के लिए भारत आने वाले शरणार्थियों का दर्जा देने की कोशिश शुरू कर दी। नतीजतन वहां की कांग्रेस सरकार के खिलाफ जन आंदोलन खड़ा हुआ और आखिरकार आसू के साथ समझौते के तहत घुसपैठियों को निकाल बाहर करने के लिए नया कानून बनाने पर सहमति हुई। असम समझौते के बाद आसू में सक्रिय छात्र नेताओं ने असमगण परिषद का गठन करके राज्य के शासन पर तो कब्जा कर लिया, लेकिन केंद्र सरकार ने अवैध घुसपैठ (खोज ट्रिब्यूनल) एक्ट 1983 बनाया, जिसे आईएमडीटी कहा गया। इस नए कानून में घुसपैठिए की शिकायत करने वाले को अदालत में साबित करना होता था कि जिसकी वह शिकायत कर रहा है वह बांग्लादेशी है। जबकि 1964 के फार्नर्स एक्ट की धारा-9 में यह ठीक इसके उलट है। फार्नर्स एक्ट के मुताबिक गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को यह साबित करना होता है कि वह भारत का मूल नागरिक है। आईएमडीटी एक्ट घुसपैठियों को निकालने की बजाए उनका रक्षा कवच बन गया। इंदिरा गांधी ने यह एक्ट इस ढंग से बनवाया था कि घुसपैठियों का निकाला जाना नामुमकिन हो जाए। आसू के पुराने नेता सर्वनंदा सोनोवाल ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिस पर लंबी सुनवाई के बाद 12 जुलाई 2005 को फैसला आया। सुप्रीम कोर्ट ने कानून को फार्नर्स एक्ट के खिलाफ करार देते हुए रद्द कर दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए नियम प्रक्रिया तय करे, लेकिन केंद्र सरकार ने पिछले तीन सालों में कोई नियम नहीं बनाया। इन तीन सालों में एक भी घुसपैठिया बाहर नहीं निकाला गया।
1947 में देश का बंटवारा मुस्लिम लीग की इस मांग पर हुआ था, कि मुसलमानों को अलग देश चाहिए। अब भारतीय इलाकों में घुसपैठ करके बांग्लादेशी यहां की सरकार चुन रहे हैं। जबकि दूसरी तरफ बांग्लादेश में उर्दू भाषी मुसलमानों को आज तक वोट का हक नहीं मिला, हालांकि आजादी के समय भी उनके दादा-परदादा वहां के निवासी थे। उर्दू भाषी मुसलमानों को वहां बिहारी कहकर अछूत माना जाता है। उनकी सामाजिक-आर्थिक हालत बद से बदतर हो गई है। बांग्लाभाषी मुसलमान उन्हें पाकिस्तान समर्थक मानकर हेय दृष्टि से देखते हैं। तीस साल के मुकदमे के बाद इस साल बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने उर्दू भाषी मुसलमानों को वोट का हक दिया है, उम्मीद की जानी चाहिए कि मूल बांग्लादेशी उर्दूभाषी मुसलमानों को इस बार दिसंबर में होने वाले संसदीय चुनाव में वोट देने देंगे। जबकि असम और भारत के दूसरे इलाकों में स्थिति एकदम उलट है, क्योंकि कांग्रेस अपने लगातार घटते जनाधार की भरपाई घुसपैठियों के वोटों से कर रही है। अदालतों और संवैधानिक पदों पर बैठे नेताओं की ओर से बार-बार चेतावनी दिए जाने के बावजूद भारत का लोकतंत्र मजाक बनता जा रहा है। उत्तर प्रदेश के मौजूदा राज्यपाल टीवी राजेश्वर 1996 में खुफिया एजेंसी आईबी के प्रमुख थे। उन्होंने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठियों पर रोक नहीं लगाई गई तो एक और इस्लामिक देश बन जाएगा। दो साल बाद जब अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने जनरल एसके सिन्हा को जब असम का राज्यपाल बनाकर भेजा। एसके सिन्हा ने छानबीन करने के बाद 2001 में केंद्र सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर घुसपैठियों पर सख्त कार्रवाई करके उन्हें बाहर नहीं निकाला गया, तो असम में सिविल वार की स्थिति पैदा हो जाएगी। अभी केंद्र में यूपीए सरकार के समय ही 2005 में असम के तत्कालीन राज्यपाल लेफ्टिनेंट कर्नल अजय सिंह ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि हर रोज छह हजार बांग्लादेशी घुसपैठ कर रहे हैं।
अफसोस यह है कि मौजूदा केंद्र सरकार और राज्य सरकार बांग्लादेशियों की घुसपैठ को गंभीर मुद्दा नहीं मानती। इसकी मूल वजह बांग्लादेशी गरीब-गुरबों को सामाजिक-आर्थिक आधार पर आश्रय देना नहीं, अलबत्ता उन्हें वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करना है। बांग्लादेशियों को अपना वोट बैंक बनाने की होड़ कांग्रेस के अलावा लालू यादव, मुलायम सिंह और रामविलास पासवान में भी लगी हुई है। इसलिए वे सभी घुसपैठियों को बाहर निकालने की खुली मुखालफत कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने तो हाल ही में पिछले महीने तक भारत आए सभी घुसपैठियों को नागरिकता देने की वकालत कर दी थी। केंद्र के मंत्री का यह बयान न्यायिक फैसले के उलट और संविधान विरोधी भी है, लेकिन प्रधानमंत्री तक अपने मंत्री के बयान पर चुप्पी साध गए। गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में अपनी टिप्पणीं में कहा था कि बांग्लादेशियों के कारण असम की मूल आबादी को खतरा पैदा हो जाएगा। हाईकोर्ट की यह टिप्पणीं सिर्फ असम पर नहीं, पूरे देश पर लागू होती है, दिल्ली में भी ऐसे कई इलाके बन चुके हैं जहां बांग्लादेशी वोटर स्थानीय लोगों पर हावी हो रहे हैं।
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