शुरू में ऐसा लगता था कि बुश प्रशासन के समय अफगानिस्तान और इराक युध्द ही चुनावी मुद्दा बनेगा। अब जबकि चुनाव का दूसरा दौर शुरू हो गया है, तो अर्थव्यवस्था प्रमुख मुद्दा बनकर उभर आया है। अब देखना यह है कि अमेरिकी वोटर बेहतर अर्थव्यवस्था के लिए जोहन मैककेन पर भरोसा करेगी या बराक ओबामा पर।
अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव अब दूसरे दौर में पहुंच गया है। पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार बराक ओबामा के मुकाबले जोहन मैककेन मौजूदा राष्ट्रपति जार्ज बुश की रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार घोषित हो चुके हैं।
बराक ओबामा को बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन ने उम्मीदवारी के लिए आखिरी दम तक कड़ी टक्कर दी जबकि जोहन मैककेन का पलड़ा शुरू से ही भारी दिख रहा था, हालांकि उम्मीदवारी घोषित होने में बराक ओबामा से ज्यादा समय लगा। चुनावों की शुरूआत में ऐसा लग रहा था कि डेमोक्रेटिक पार्टी का पलड़ा भारी है। इसी वजह से राष्ट्रपति बुश भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से हुए एटमी करार को अपने ही कार्यकाल में सिरे चढ़ाने की जद्दोजहद करते दिखाई दिए। इसकी एक वजह यह भी है कि राष्ट्रपति बुश के कार्यकाल में अफगानिस्तान और इराक की दो लड़ाईयों के कारण अमेरिका की अर्थव्यवस्था खराब हो चुकी है। भारत के साथ हुए एटमी करार से अमेरिका की अर्थव्यवस्था में व्यापक सुधार की गुंजाइश बनेगी। राष्ट्रपति बुश अपनी पार्टी के उम्मीदवार के लिए सहायक वातावरण के साथ-साथ मजबूत अर्थव्यवस्था की नींव रखकर जाना चाहते हैं, ताकि इतिहास उन्हें उनकी गलतियों के लिए माफ कर सके। अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव शुरू हुआ था तो वातावरण रिपब्लिकन पार्टी के खिलाफ था, इसकी बड़ी वजह मौजूदा राष्ट्रपति बुश की ओर से अपनाई गई हमलावर नीति को माना जा रहा था। अब नवंबर तक चलने वाले चुनाव के दूसरे दौर में हालात काफी हद तक बदल चुके हैं। भले ही पांच सितंबर को जोहन मैककेन के रिपब्लिकन पार्टी का उम्मीदवार घोषित करने के लिए हुए सम्मेलन में युध्द विरोधी एक कार्यकर्ता ने बाधा डालने की कोशिश की और सम्मेलन स्थल के बाहर युध्द विरोधी प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े, लेकिन अब हालात रिपब्लिकन पार्टी के उतने खिलाफ नहीं हैं।
दोनों ही प्रमुख पार्टियों के उम्मीदवार मध्यम वर्ग से उठकर इस मुकाम तक पहुंचे हैं। अश्वेत बराक ओबामा के परिजन अभी भी निम्न या निम्न मध्यम वर्ग जीवन व्यतीत कर रहे हैं जबकि जोहन मैककेन के पिता और दादा दोनों ही अमेरिकी नौसेना में पदस्थ रहे हैं। वियतनाम के साथ अमेरिकी युध्द के समय जोहन मैककेन को युध्द बंदी बना लिया गया था और वह पांच साल से ज्यादा समय तक वियतनाम की जेल में रहे थे। उनके हाथ और पांव युध्द में क्षतिग्रस्त हो गए थे, जिनके ठीक होने में कई साल लगे। जोहन मैककेन की तीन पीढ़ियां फौज में रही हैं और तीनों पीढ़ियों ने अमेरिका के लिए जंग लड़ी हैं, इसलिए वह फौजी के जीवन और युध्द के प्रभाव को बेहतर जानते हैं। पांच सितंबर को अपनी उम्मीदवारी को कबूल करते समय दिए गए अपने प्रभावशाली भाषण में जोहन मैककेन उस समय काफी भावुक हो गए, जब उन्होंने अपने जेल के दिनों की याद ताजा की। उन्होंने बताया कि जब वह बहुत छोटे थे तो एक दिन उनके पिता घर पर खाना खा रहे थे, जब उन्हें मैदान-ए-जंग में जाने का फरमान आ गया था। फिर इसके बाद चार साल तक उन्होंने अपने पिता की शक्ल नहीं देखी थी। जोहन मैककेन ने अपने भाषण में कहा कि वह युध्द की विभीषिका को अच्छी तरह जानते हैं और इसलिए वह शांति के लिए काम करेंगे। लेकिन उनके भाषण में यह बात गौर करने लायक है क्योंकि उन्हें विरासत में अफगानिस्तान और इराक का युध्द मिलेगा। उन्हें तय करना होगा कि वह अमेरिकी फौजों को वापस बुलाएंगे या रिपब्लिकन पार्टी के मौजूदा राष्ट्रपति जार्ज बुश की नीतियों को जारी रखेंगे। इस मुद्दे पर वह काफी उलझे हुए दिखाई दिए, जहां एक तरफ उन्होंने युध्द के सामाजिक प्रभाव का जिक्र किया, वहां दूसरी तरफ उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी बराक ओबामा की ओर से फौजें वापस बुलाने के ऐलान पर भी तीखी प्रतिक्रिया जताई। जार्ज बुश की नीतियों को जारी रखना जोहन मैककेन के लिए भारी पड़ सकता है।
एक बहादुर युध्दबंदी के नाते जोहन मैककेन अमेरिका में सम्मान के नजर से देखे जाते हैं। उन्हें आम जनता राष्ट्रीय हीरो के तौर पर सम्मान देती है। यह बात उनकी उम्मीदवारी घोषित करने वाले सम्मेलन में भी दिखाई दी, जब बार-बार उन्हें राष्ट्रीय हीरो बताने वाले नारे लगाए गए और प्ले कार्ड दिखाए गए। एक फौजी के नाते उनकी भूमिका के कारण वह डेमोक्रेट्स पार्टी के एक तबके में भी काफी लोकप्रिय हैं। अपनी इसी लोकप्रियता को कायम रखने और डेमोक्रेट्स वोटरों को भी अपने पाले में लाने की गरज से जोहन मैककेन ने राष्ट्रपति चुने जाने के बाद अपने प्रशासन में डेमोके्रट्स और तटस्थ लोगों को भी शामिल करने का ऐलान किया है। अमेरिका में एक तबका ऐसा भी है, जिसका जुड़ाव दोनों पार्टियों से नहीं, ऐसे तटस्थ तबके पर भी बराक ओबामा के मुकाबले जोहन मैककेन की लोकप्रियता ज्यादा है। जोहन मैककेन को अपनी व्यक्तिगत लोकप्रियता के अलावा उपराष्ट्रपति पद की महिला उम्मीदवार होने का भी फायदा मिल सकता है। अंदेशा तो यह भी है कि चुनावी जंग आने वाले महीनों में कहीं रंग भेद का रूप न ले ले, अगर ऐसा होता है तो बराक ओबामा को नुकसान हो सकता है।
बहत्तर साल के जोहन मैककेन ने इस उम्र में भी खुद को जुझारू की तरह पेश करते हुए चुनाव प्रचार की मुहिम शुरू की है। उन्हें इस बात का अंदाज है कि बुश शासन के दौरान देश की अर्थव्यवस्था डगमगा रही है। जहां एक तरफ बराक ओबामा ने कर प्रणाली में सुधार करके अर्थव्यवस्था को सुधारने की बात कही है, वहां जोहन मैककेन ने कहा है कि वह सरकारी खर्चों पर नकेल डालेंगे। उनका मानना है कि सरकारी खर्चे मौजूदा अर्थव्यवस्था के मुताबिक बहुत ज्यादा हो चुके हैं। इसलिए उन्होंने अपने भाषण में उन लोगों पर कसकर वार किया जो करते-धरते कुछ नहीं, लेकिन खर्च सबसे ज्यादा करते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ ऐसे लोग हैं जो खुद को देश से बड़ा मानते हैं लेकिन उन्हें अब समझ लेना चाहिए कि वक्त बदल गया है और अब देश को ही सबसे पहले मानना होगा। जहां एक तरफ बराक ओबामा नए कर लगाकर अर्थव्यवस्था को सुधारने की बात कर रहे हैं, वहां जोहन मैककेन ने सरकारी खर्चो के साथ-साथ करों में कटौती का चुनावी पांसा भी फेंका है। अस्सी के दशक में रिपब्लिकन राष्ट्रपति रीगन ने यही आर्थिक नीति अपनाकर अर्थव्यवस्था को सुधारा था। दो साल पहले अमेरिकी कांग्रेस के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी की सीटें घट गई थी, तब से रिपब्लिकन पार्टी में यह धारणा बनी है कि उसकी हार रीगन की अर्थव्यवस्था में बदलाव के कारण हुई। इसलिए जोहन मैककेन ने रीगन की अर्थव्यवस्था को अपनाने का चुनावी वादा कर दिया है। हालांकि अमेरिकी राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रिपब्लिकन पार्टी अमेरिकी कांग्रेस में अपनी आर्थिक नीतियों के कारण नहीं, अलबत्ता इराक पर युध्द के कारण हारी थी। रिपब्लिकन पार्टी इस थ्योरी को मानने को तैयार नहीं है, हालांकि पिछले आठ सालों में जोहन मैककेन मौजूदा राष्ट्रपति जार्ज बुश की नीतियों के खिलाफ रहे हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 2006 के चुनाव में इराक मुद्दा जितना महत्वपूर्ण था, उतना अब नहीं है। अब ज्यादातर लोगों का मानना है कि इराक की लड़ाई जीती जा रही है, हालांकि ज्यादातर लोगों का यह भी मानना है कि इराक और अफगानिस्तान से बराक ओबामा बेहतर ढंग से सुलट सकते हैं। लेकिन चुनाव का असली मुद्दा अर्थव्यवस्था बन चुका है। देखना यह होगा कि अमेरिकी वोटर बेहतर अर्थव्यवस्था के लिए जोहन मैककेन पर भरोसा करते हैं या बराक ओबामा पर। अपनी पृष्ठभूमि के कारण बराक ओबामा के मुकाबले जोहन मैककेन का प्रचार अभियान ज्यादा देशभक्ति से ओत-प्रोत दिखाई देगा। इसकी झलक उम्मीदवारी के ऐलान के समय ही मिल गई। जब उन्होंने युध्द के दौरान अपने और अपने परिवार के जख्मों को याद करके अपने समर्थकों को भावुकता में भाव विभोर करने के बाद एक सैनिक कमांडर की तरह कहा- 'मेरे साथ मिलकर लड़ो, हर सही बात के लिए लड़ो, जो बात देश के लिए ठीक है, उसके लिए लड़ो। सिध्दांतों के लिए लड़ो।'
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