बेनजीर भुट्टो के पति आसिफ अली जरदारी ने जब युसुफ रजा गिलानी को प्रधानमंत्री पद के लिए पीपीपी के उम्मीदवार के तौर पर चुना था तो पाकिस्तान में उन्हें मिस्टर सोनिया गांधी कहा गया। सोनिया गांधी के बारे में भारत और बाहर यह धारणा बनी हुई है कि उन्होंने प्रधानमंत्री पद की कुर्सी ठुकरा कर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया था। आज यह मुद्दा नहीं है कि उस समय के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और सोनिया गांधी के बीच क्या बात हुई थी।
राष्ट्रपति पद से हटने के बाद जब प्रणव दा ने एक इंटरव्यू में उनसे इस बाबत खुलासा करने को कहा था तो उन्होंने इनकार कर दिया था। जबकि आसिफ अली जरदारी इसलिए प्रधानमंत्री नहीं बन सके थे क्योंकि वह कानूनी पाबंदियों के कारण चुनाव नहीं लड़ पाए थे। भारत की तरह पाकिस्तान में बिना किसी सदन का सदस्य हुए कोई प्रधानमंत्री नहीं बन सकता। आसिफ अली जरदारी और नवाज शरीफ दोनों ही नेशनल एसेंबली का चुनाव लड़ सकते हैं क्योंकि दोनों कानूनी पाबंदियां खत्म हो चुकी हैं। लेकिन आसिफ अली जरदारी ने नवाज शरीफ के दबाव में परवेज मुशर्रफ को इस्तीफा देने के लिए मजबूर करने के बाद राष्ट्रपति पद पर दावा ठोक दिया है जबकि सोनिया गांधी ने सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को दुबारा मौका देने की बजाए प्रतिभा पाटील को राष्ट्रपति बनवाया है। अब्दुल कलाम को दुबारा मौका नहीं देने के पीछे सोनिया गांधी की प्रधानमंत्री पद के मुद्दे पर उनकी बातचीत का ताल्लुक है या नहीं, यह कहना संभव नहीं। जहां तक जरदारी की बात है तो उन्होंने राष्ट्रपति पद पर दावा ठोककर पाकिस्तान की सोनिया गांधी बनने का मौका गंवा दिया है।
बेनजीर भुट्टो उसी समय प्रधानमंत्री थी, जब भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे, लेकिन बोफोर्स घोटाले की तरह बेनजीर भुट्टो पर भ्रष्टाचर का सीधा कोई आरोप नहीं लगा था। राजीव गांधी पर भी सीधा आरोप नहीं लगा था, अलबत्ता बोफोर्स सौदे के दलाल ओतोवियो क्वात्रोची की सोनिया गांधी से मित्रता के कारण वह मुश्किल में फंसे और बदनाम हुए। दूसरी तरफ बेनजीर भुट्टो के पति आसिफ अली जरदारी पकिस्तान में मिस्टर दस फीसदी के तौर पर जाने जाते थे, क्योंकि हर काम में दस फीसदी कमीशन के लिए बदनाम हो गए थे। आसिफ अली जरदारी पर सिर्फ पाकिस्तान में ही नहीं, अलबत्ता ब्रिटेन में भी भ्रष्टाचार के मुकदमे चले। पाकिस्तान में वह कई साल तक जेल में रहे और ब्रिटेन में भ्रष्टाचार के मुकदमों में अदालत के चक्कर काटते रहे। आखिर अदालत में रोज-रोज की हाजिरी से छुट्टी पाने के लिए उन्होंने अपने वकील के माध्यम से मानसिक रोगी होने का डाक्टरी सर्टिफिकेट भिजवा दिया था। भारत की तरह पाकिस्तानी कानून के मुताबिक भी कोई आर्थिक दिवालिया या दिमागी तौर पर पागल चुनाव नहीं लड़ सकता। लेकिन पाकिस्तान में आज भी जिस की लाठी उसकी भैंस का कानून लागू है इसलिए जरदारी का पर्चा रद्द नहीं किया गया। भारत की तरह पाकिस्तान में एनएसजी जैसी सुरक्षा एजेंसी नहीं है जो पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिवारों को पूरी जिंदगी सुरक्षा मुहैया करवाए। इसलिए जरदारी अब प्रधानमंत्री आवास में चले गए हैं, ताकि राष्ट्रपति बनने तक महफूज रह सकें।
पाकिस्तान में कोई सोच भी नहीं सकता था कि आसिफ अली जरदारी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बन जाएंगे, लेकिन अब हालात ऐसे बन रहे हैं कि वह राष्ट्रपति बन भी सकते हैं। नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम और उससे टूटकर बनी पीएमएल(क्यू) में समझौता न हुआ तो जरदारी को गंभीर चुनौती नहीं मिल सकती। पीएमएल (एन) ने जस्टिस सईदुजमन सिद्दिकी को और पीएमएल (क्यू) ने मुशाहिद हुसैन को उम्मीदवार बनाया है। जो पाकिस्तानी बेनजीर भुट्टो को चाहने के बावजूद उन्हें उनके पति के कारण ठुकरा रहे थे उनके आश्चर्य का अब कोई ठिकाना नहीं है। बेनजीर भुट्टो की मौत के बाद पीपीपी को दिए सहानुभूति वोटों की आसिफ अली जरदारी इस तरह दुरुपयोग करेंगे, यह किसी ने नहीं सोचा होगा। तो क्या मिस्टर दस फीसदी देश के सर्वोच्च बनने जा रहे हैं। जरदारी के पाकिस्तान का राष्ट्रपति बनने के बाद एशिया में भ्रष्टाचार का नया इतिहास लिखा जाएगा। इससे पहले पाकिस्तान के राष्ट्रपति फौजी तानाशाह जरूर रहे हैं, लेकिन किसी की ऐसी भ्रष्ट छवि नहीं रही। दूसरी तरफ पीएमल के दोनों खेमों के उम्मीदवार जरदारी से ज्यादा पढ़े-लिखे और ईमानदार छवि वाले हैं।
जरदारी की अपार सम्पत्ति है, जो उनकी आमदनी के घोषित स्रोतों से कहीं ज्यादा है। भारत में हाल ही में सीबीआई ने रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव का आमदनी से ज्यादा सम्पत्ति का मामला रफा-दफा करने की कोशिश की, तो बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट में गई है। लालू यादव की तरह आसिफ अली जरदारी भी भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में रहे हैं, लेकिन लालू प्रसाद की तरह जरदारी पर भी कभी आरोप साबित नहीं हुए। भारत और पाकिस्तान में कानून और संविधान इतने कमजोर हैं कि भ्रष्ट नेताओं का बाल भी बांका नहीं होता, जिस कारण उन्हें मंत्री, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने से नहीं रोका जा सकता। भारत में कई बार कोशिश हुई है कि आपराधिक मामलों में बरी होने तक चुनाव लड़ने के अधिकार खारिज किए जाने चाहिए, लेकिन कभी सफलता नहीं मिली। इस समय भारत की सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लंबित है, जिसमें भ्रष्टाचार समेत आपराधिक मुकदमों में लंबित लोगों को मंत्री बनाने से रोकने पर सुनवाई हो रही है। जबकि पाकिस्तान में भ्रष्टाचार का मुकदमा झेल रहे नेता पर चुनाव लड़ने की रोक लागू है, इसीलिए जरदारी नेशनल एसेंबली का चुनाव नहीं लड़ पाए थे। अमेरिका के दखल से परवेज मुशर्रफ ने जब बेनजीर भुट्टो को पाकिस्तान में प्रवेश की इजाजत दी थी तो समझौते के तहत जरदारी पर भ्रष्टाचार के मुकदमे खत्म करना भी शामिल था। परवेज मुशर्रफ ने नवंबर 2007 में इमरजेंसी लगाकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस इफ्तिकार चौधरी को बर्खास्त करके नए चीफ जस्टिस से जरदारी के खिलाफ दायर सभी मुकदमे खत्म करवा दिए थे। जरदारी इसी वजह से परवेज मुशर्रफ के खिलाफ महाभियोग शुरू करवाने से कतरा रहे थे और इसीलिए मौजूदा चीफ जस्टिस को हटाकर इफ्तिकार चौधरी को चीफ जस्टिस पद पर बहाल करने से कन्नी काट रहे हैं। जरदारी को डर है कि जस्टिस इफ्तिकार चौधरी उन सारे फैसलों को रद्द कर सकते हैं जो इमरजेंसी में सरकार और अदालत की ओर से लिए गए थे। अगर ऐसा हुआ तो उन पर भ्रष्टाचार के मुकदमे खुल जाएंगे और वह चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाएंगे। जरदारी इसी मौके का फायदा उठाकर राष्ट्रपति बन जाना चाहते हैं, जिसमें उनके सारे भ्रष्टाचार पर हमेशा-हमेशा के लिए पर्दा पड़ जाए। यह सत्ता पर उनके प्रभाव का ही असर है कि उनका पागल होने का प्रमाण पत्र भी उनका पर्चा रद्द करने की वजह नहीं बना। जस्टिस चौधरी बहाल हुए होते तो नवाज शरीफ-आसिफ जरदारी का गठबंधन टूटने के बाद वह सबसे पहला काम चुनाव आयोग के फैसले पर स्टे का करते।
आसिफ अली जरदारी की पाकिस्तान ही नहीं अलबत्ता दुनियाभर में अरबों डालर की बेनामी संपत्ति है। सिर्फ पाकिस्तान में ही करीब पौने दो सौ लोगों की संपत्ति कुर्क की गई है, क्योंकि वह जरदारी की बेनामी संपत्ति पाई गई थी। उनका स्विस बैंक में खाता होने का आरोप है, यह आरोप ठीक उसी समय लगा था जब बोफोर्स घोटाले की रिश्वत स्विस खाते में जमा होने की बात सामने आई थी। स्विस बैंक ने 1997 में जरदारी का 13.7 मिलियन डालर का खाता नवाज शरीफ के कहने पर जब्त किया था। उन पर लगे रिश्वतखोरी के आरोपों में मशहूर है- पोलैंड से ट्रेक्टर खरीददारी में रिश्वत, पाकिस्तान में सोना आयात करने का लाइसेंस देने में रिश्वत का आरोप, पाकिस्तान में सामान लाने के लिए स्विस कंपनियों से रिश्वत, स्टील मिल, डेलीकास्टर खरीद आदि। अब ऐसा लगता है कि परवेज मुशर्रफ ने आसिफ अली जरदारी पर भ्रष्टाचार के मुकदमे वापस लेकर अपने पैरों पर तो कुल्हाड़ी मारी ही, देश पर भी कुल्हाड़ी मारी। जरदारी अगर राष्ट्रपति बनते हैं तो पाकिस्तान के लिए परवेज मुशर्रफ से भी ज्यादा घातक साबित होंगे। देश कुंए से निकल कर खाई में फंसेगा और इसके लिए नवाज शरीफ भी उतने ही जिम्मेदार होंगे, जिन्होंने परवेज मुशर्रफ के खिलाफ जरदारी को इतनी ताकत बख्श दी थी कि वह दोनों को हज्म कर गया। पीएमएल के दोनों खेमे और पीपीपी के वरिष्ठ नेता एतजाज अहसान मिलकर अब भी जरदारी के मंसूबों पर पानी फेर सकते हैं। एतजाज ही वह शख्स थे जिन्होंने जस्टिस इफ्तिकार चौधरी की बर्खास्तगी के खिलाफ जनआंदोलन खड़ा करके परवेज मुशर्रफ को न्यायपालिका की आजादी बहाल करवाई थी। वकीलों के आंदोलन ने पाकिस्तान में लोकतंत्र का रास्ता खोल दिया था, लेकिन लोकतंत्र के साथ कानून का राज नहीं आया। अब फिर एतजाज वैसा ही आंदोलन खड़ा कर सकते हैं क्योंकि जस्टिस इफ्तिकार चौधरी बहाल नहीं हुए हैं। मौजूदा चीफ जस्टिस के जरदारी को भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्त करने को भी आंदोलन का मुद्दा बनाया जा सकता है।
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