राहुल गांधी चाहते हैं कि मीडिया , चुनाव आयोग और न्यायपालिका उन की मदद करें ताकि वे चुनाव जीत कर उन की मदद कर सकें | सत्तर साल तक मीडिया का हाल इस देश ने देखा है , वह एक तरफा जन संघ और आरएसएस के खिलाफ जहर उगलता रहा | कांग्रेस को मीडिया की मदद का सब से बड़ा उदाहरण तो 1980 में मिला था , जब जनादेश से बनी सरकार को मीडिया के ही चंद लोगों ने दोहरी सदस्यता का बवाल खड़ा कर के गिरवा दिया था |
अजय सेतिया
राहुल गांधी फिर चर्चा में हैं | विदेशियों से बात करते समय मोदी सरकार और भाजपा की आलोचना करना शायद कांग्रेस के एजेंडे में शामिल हो चुका है | इस की शुरुआत 2016 में मणिशंकर अय्यर ने पाकिस्तान में जा कर की थी , जब उन्होंने मोदी को हटाने के लिए पाकिस्तान की मदद माँगी थी | इसी तरह की कोई गोपनीय डील राहुल गांधी ने चीन के साथ की थी , जब उन्होंने चीन सरकार के साथ कांग्रेस पार्टी के (अब तक गोपनीय) समझौते पर दस्तखत किए थे और बाद में डोकलाम विवाद के समय चीन के राजदूत से रात के अँधेरे में मिले थे | 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त कपिल सिब्बल ने लन्दन में सैयद शुजा नाम के एक साइबर एक्सपर्ट से प्रेस कांफ्रेंस करवा कर उस से कहलवाया कि भारत की ईवीएम मशीनों को हैक कर के चुनावों को जीता जाता है | शुजा ने यह भी दावा किया था कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने ईवीएम में धाँधली करवाई थी | चुनाव आयोग ने शुजा की बातों को बकवास बता कर खारिज किया था |
लगातार चुनाव हार रहे राहुल गांधी को अभी भी लगता है कि देश की जनता तो उन के साथ है , ईवीएम में ही गडबडी हो रही है | इस लिए वह कोई मौक़ा नहीं चूकते जब ईवीएम पर सवाल न उठाएं | शुक्रवार को अमेरिका के जानेमाने शिक्षण संस्थान हार्वर्ड कैनेडी स्कूल' के छात्रों के साथ ऑनलाइन संवाद में भी उन्होंने ईवीएम का सवाल उठा दिया | कार्यक्रम की मेजबानी अमेरिका के पूर्व राजनयिक निकोलस बर्न्स कर रहे थे , जो वहां प्रोफेसर हैं | असल में सभी ने सभी अखबारों में पढ़ा और टीवी चैनलों में सुना- देखा कि असम के एक चुनाव बूथ पर चुनाव करवाने वाले कर्मचारी भाजपा के उम्मीन्द्वार की कार में वोटिंग मशीन लाए थे | खबर मिलते ही चुनाव आयोग ने तुरंत कार्रवाई करते हुए चार कर्मचारियों को सस्पैंड कर दिया और उस बूथ पर दुबारा चुनाव करवाने के निर्देश दिए | हालांकि कर्मचारियों का कहना है कि सरकारी गाडी खराब होने के कारण उन्होंने लिफ्ट ली थी , उन्हें यह भी नहीं पता था कि कार का मालिक भाजपा का उम्मीन्द्वार है | खबर दो दिन तक अखबारों में लीड बनी रही , लेकिन राहुल गांधी ने विदेशी छात्रों से संवाद में कहा कि भारत में मीडिया भी स्वतंत्र नहीं है क्योंकि टीवी चैनलों और अखबारों ने इस खबर को दिखाया ही नहीं | राहुल गांधी ने भारत के लोकतंत्र पर सवाल उठाते हुए अमेरिका से हस्तक्षेप की मांग भी की |
इस एक घटना के माध्यम से राहुल गांधी ने भारत के लोकतंत्र पर सवाल उठाया , चुनाव आयोग पर सवाल उठाया , और मीडिया पर सवाल उठाया | जबकि राहुल गांधी पूरी तरह झूठ बोल रहे थे क्योंकि उन के तीनों आरोप ही गलत थे , लेकिन उन का अमेरिका के हस्तक्षेप की मांग करना तो घोर आपत्तिजनक है | राहुल गांधी ने इसी बातचीत में मोदी सरकार पर यह आरोप भी लगाया कि मोदी ने सभी स्वायत सरकारी संस्थाओं और न्यायपालिका की निष्पक्षता को भी खत्म कर दिया है | उन से एक सवाल पूछा गया था कि कांग्रेस लगातार हार क्यों रही है और आगे उन की क्या रणनीति है , इस पर उन का जवाब भी उतना ही बेतुका है , वह कहते हैं कि “ कांग्रेस इस लिए हार रही है क्योंकि वो संस्थाएं हमारी रक्षा नहीं कर पा रही हैं जिन्हें हमारी रक्षा करनी है | जिन संस्थाओं को निष्पक्ष राजनीतिक मुकाबले के लिए सहयोग देना है वो अब ऐसा नहीं कर रही हैं |” क्या सरकारी संस्थाओं का काम उन्हें चुनाव जीतने में मदद करना है | असल में इंदिरा गांधी के जमाने से कांग्रेस ने सरकारी संस्थाओं और यहाँ तक कि न्यायपालिका का भी भरपूर इस्तेमाल किया था | अब कांग्रेस लाचार है कि ये सभी संस्थाएं उन्हें चुनाव जीतने में मदद नहीं कर रहीं |
वह चाहते हैं कि मीडिया , चुनाव आयोग और न्यायपालिका उन की मदद करें ताकि वे चुनाव जीत कर उन की मदद कर सकें | सत्तर साल तक मीडिया का हाल इस देश ने देखा है , वह एक तरफा जन संघ और आरएसएस के खिलाफ जहर उगलता रहा | कांग्रेस को मीडिया की मदद का सब से बड़ा उदाहरण तो 1980 में मिला था , जब जनादेश से बनी सरकार को मीडिया के ही चंद लोगों ने दोहरी सदस्यता का बवाल खड़ा कर के गिरवा दिया था | मीडिया की उस भूमिका को इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जाएगा | टी. एन. शेषन से पहले चुनाव आयोग कांग्रेस सरकारों का दुम्छ्ला बना हुआ था | चुनाव की तारीखें केन्द्रीय गृह मंत्रालय से तय होती थीं , चुनाव आयोग तो सिर्फ घोषणा करता था | तारीखें चुनाव आयोग कार्यालय पहुंचने से पहले मीडिया को लीक हो चुकी होती थीं | टी.एन. शेषन से पहले तो कांग्रेस के उम्मीन्द्वार बूथ लूट कर ही चुनाव जीत जाया करते थे | टी. एन .शेषन ने वोटर आई कार्ड बनवा कर बूथ लूटने से निजात दिलवाई और चुनाव आयोग को पहचान दिलाई | मुख्य चुनाव आयुक्त पद से रिटायर्ड एमएस गिल को सांसद बनाना भी एक दूसरे की मदद का सबूत था |
कांग्रेस के जमाने में न्यायपालिका का हाल तो इस से भी बुरा था | जिन सरकारी संस्थाओं के अवमूल्यन की बात कर राहुल गांधी भारत को विदेशों में बदनाम कर रहे हैं , असल में वे सभी सरकारी संस्थाएं कांग्रेस के जमाने में जेबी संस्थाएं बनी हुई थीं और लोकतंत्र कांग्रेस के हाथों की कठपुतली बना हुआ था | न्यायपालिका के अवमूल्यन की कहानी सिर्फ 1975 से शुरू नहीं होती , जवाहर लाल नेहरु के जमाने से न्यायपालिका भी चुनाव आयोग की तरह कांग्रेस की जेबी संस्था बनी हुई थी | इस का एक उदाहरण बेहरुल इस्लाम की राजनीतिक , न्यायिक नियुक्तियों का है , जो राहुल गांधी को बताया जाना चाहिए | राजनीतिक नेता की सरकारी संवैधानिक पद पर नियुक्ति की कहानी सचिन वाझे से शुरू नहीं होती | बेहरुल इस्लाम 1962 में काग्रेस के राज्यसभा सांसद थे ,1968 में इंदिरा गांधी ने उन्हें दुबारा राज्यसभा में मनोनीत किया था , लेकिन 1972 में उन्हें राज्यसभा से इस्तीफा करवा कर गुवाहाटी हाईकोर्ट का जज बना दिया , जहां से वह 1980 में रिटायर हो गए , कुछ महीने बाद जब कांग्रेस फिर सत्ता में आ गई तो 9 महीने से रिटायर्ड बेहरुल इस्लाम को सुप्रीमकोर्ट का न्यायधीश बना दिया गया | फिर सुप्रीमकोर्ट से इस्तीफा करवा कर असम की बारपेटा सीट से टिकट दे दिया , लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ आन्दोलन के कारण चुनाव टल गया तो इंदिरा गांधी ने उन्हें फिर राज्यसभा में मनोनीत कर दिया |
कांग्रेस के नेता खासकर नेहरु इंदिरा परिवार का कोई सदस्य सरकारी संस्थाओं की स्वायत्तता की दुहाई देता अच्छा नहीं लगता , दुर्भाग्य से नई पीढी को कांग्रेस के पुराने किस्से पता नहीं , लेकिन यह तो कोई नहीं भूला होगा कि इंदिरा गांधी ने कैसे 1973 में न्यायमूर्ति जेएम शेलात , केएस हेगड़े और ए.एन ग्रोवर की वरिष्ठता की अनदेखी कर के अपनी मर्जी के ए.एन.रे को मुख्य न्यायधीश बना दिया था , इंदिरा गांधी की इस तानाशाही के खिलाफ तीनों न्यायधीशों ने इस्तीफा दे दिया था | जब यह मामला संसद में उठा तो सत्ता के मद में चूर कांग्रेस ने कहा था कि यह सरकार तय करेगी कि किसे मुख्य न्यायधीश रखे , किसे नहीं और हम उसी को बिठाएंगे जो हमारी विचारधारा के नजदीक होगा | आपातकाल में इसी एएन रे की पीठ ने मौलिक अधिकारों को समाप्त करने का फैसला किया था | और आज राहुल गांधी विदेशी ताकतों के सामने सरकारी अदारों की स्वायत्तता की बात करते हैं | मोदी के कार्यकाल में न तो वरिष्ठता का उलंघन कर के किसी को मुख्य न्यायधीश बनाया गया है , न ही वरीयता भंग कर के किसी को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया है |
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