सांसदों की खरीद-फरोख्त के मामले में जांच समिति का काम करीब-करीब पूरा हो गया है। कार्यकाल बढ़ाया नहीं गया, तो इस हफ्ते रिपोर्ट सौंप दी जाएगी। लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी भी यह मानकर चल रहे हैं कि रिपोर्ट इस हफ्ते आ जाएगी। इसलिए उन्होंने चार सितंबर को संसद की गिरती साख पर गोलमेज कांफ्रेंस बुलाने का फैसला किया है। सोमनाथ चटर्जी को एक कड़े स्पीकर के तौर पर याद किया जाएगा।
खासकर लोकसभा के दस सांसदों को सदन में सवाल पूछने की एवज में रिश्वत लेते हुए कैमरे पर देखने के बाद उनकी सख्त भूमिका याद की जाएगी। वह अगर कड़ा रुख नहीं अपनाते तो एक हफ्ते के भीतर संसदीय जांच समिति की रिपोर्ट नहीं आती। संसद की नियम पुस्तिका में कहीं भी संसद को सांसदों की बर्खास्तगी का हक नहीं दिया हुआ। इसके बावजूद सोमनाथ चटर्जी ने संसद की मर्यादा को नियम-कायदे से ऊपर रखते हुए उन सभी सांसदों की बर्खास्तगी का फैसला करवाया। उन्हें पता था कि इस फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकती है और संसद का न्याय पालिका से टकराव हो सकता है, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की।
सांसदों को खरीदा जाना कोई मुश्किल काम नहीं। नरसिंह राव ने भी अपने खिलाफ रखे गए अविश्वास प्रस्ताव के समय विपक्ष के सांसद खरीदकर अपनी सरकार बचाई थी। इस बार जब वामपंथियों के समर्थन वापसी के बाद मनमोहन सरकार अल्पमत में आ गई थी, तो मंत्री खुलेआम कह रहे थे कि सांसदों का जुगाड़ कर लिया गया है। अखबारों में खबरें छप रही थी कि यूपीए कर्नाटक, गुजरात, मध्यप्रदेश के भाजपाई सांसदों को अपने पाले में लाने की कोशिशें कर रही है। कांग्रेस के नेता खुलेआम कह रहे थे कि कुछ सांसदों को पाला बदलने और कुछ को मतविभाजन के समय गैर हाजिर रहने या एबस्टेन करने के लिए राजी किया जा रहा है। स्पष्ट था कि सांसदों की खरीद-फरोख्त के बिना सरकार नहीं बचेगी। ठीक उसी समय लोकसभा से बर्खास्त सांसद प्रदीप गांधी ने स्पीकर सोमनाथ चटर्जी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखी। मनमोहन सिंह को लिखी चिट्ठी में गांधी ने कहा था- ''आप भारतीय लोकतंत्र के प्रहरी हैं। आपने अपने कार्यकाल में अनेक बार संसद के अंदर और बाहर राजनैतिक शुचिता और नैतिकता की बात कही है। आपने न्यायपालिका पर भी गंभीर आरोप लगाए हैं। तेईस दिसंबर 2005 को हम लोकसभा के दस सांसदों के आचरण पर भी आपने तीखी टिप्पणीं की थी। सदन के नेता प्रणव मुखर्जी ने हमारे खिलाफ प्रस्ताव रखकर हमारी सदस्यता समाप्त कर दी। देश और विश्व को बताया गया कि हमारा लोकतंत्र कितना मजबूत है, जिसमें हम बनावटी स्टिंग ऑपरेशन पर सदस्यों की सदस्यता ले लेते हैं। आज जब आपकी सरकार अल्पमत में आ चुकी है। आपको नैतिकता के नाते पद छोड़ देना चाहिए, लेकिन आज आपका आचरण अतीत के आचरण के विपरीत जा रहा है। .........आज आपके हाथों (सांसद खरीदे जा रहे हैं) इससे पूर्व आपके दल के प्रधानमंत्री नरसिंह राव के समय सरकार बचाने के लिए सांसद खरीदे गए।'' इस चिट्ठी में उस फर्जी स्टिंग ऑपरेशन की बात है, जो मीडिया ने सांसदों को फुसलाने के लिए फर्जी पहचान से किया था। अब जब मनमोहन सिंह के विश्वासमत के समय सांसदों की खरीद-फरोख्त होनी तय थी तो भाजपा ने सीएनएन-आईबीएन चैनल को अपने साथ लेकर वैसा ही स्टिंग ऑपरेशन किया। यह बात अलग है कि बाद में चैनल उसी दिन बाईस जुलाई को ढाई-तीन बजे स्टिंग ऑपरेशन दिखाने के वादे से मुकर गया, हालांकि रणनीति उसी समय स्टिंग ऑपरेशन दिखाने की बनाई गई थी, जिस समय सांसद सदन पटल पर एक करोड़ रुपए के नोटों के बंडल पटकते। जबकि चैनल के हैड राजदीप सरदेसाई ने उस समय चैनल पर आकर कहा कि जर्नलिज्म की महान परंपराओं का निर्वाहन करते हुए वह स्टिंग ऑपरेशन नहीं दिखा रहे हैं।
इससे पहले सांसदों के खिलाफ जितने भी स्टिंग ऑपरेशन हुए, उन्हें किसी चैनल ने जारी करने से नहीं रोका था। एक स्टिंग ऑपरेशन के कारण तो संसद ने ग्यारह सांसदों को बर्खास्त भी किया, एक अन्य स्टिंग ऑपरेशन पर हाईकोर्ट देश के दो वरिष्ठ वकीलों को दोषी करार देकर सजा दे चुकी है। वकीलों के खिलाफ किया गया वह स्टिंग ऑपरेशन अदालत में चल रही कार्यवाही से जुड़ा हुआ था, एनडी टीवी चैनल ने इस स्टिंग ऑपरेशन को अदालत की अवमानना का मामला मानते हुए प्रसारण करने से नहीं रोका। जबकि राजदीप सरदेसाई ने अपने चैनल पर ऐलान किया कि यह संसद की मानहानि का मामला बनता है, उन्होंने स्टिंग ऑपरेशन की सीडी स्पीकर को सौंपने की बात भी कही। बाद में चैनल ने दुहाई दी कि स्पीकर ने उन्हें सीडी नहीं दिखाने की सलाह दी थी। पहली बार स्टिंग ऑपरेशन को सर्वोच्च सम्मान देते हुए दस सांसदों की सदस्यता खत्म करने की पहल करने वाले स्पीकर सोमनाथ चटर्जी ऐसा क्यों करते। स्पीकर ने साफ कर दिया कि स्टिंग ऑपरेशन दिखाना या नहीं दिखाना चैनल का विशेषाधिकार है। स्टिंग ऑपरेशन नहीं दिखाने के कई बहाने लगाए गए। पहला बहाना था कि स्टिंग ऑपरेशन अधूरा था, दूसरा बहाना था कि सीडी की क्वालिटी ठीक नहीं है। देश और दुनिया के दबाव में चैनल ने जब ग्यारह जुलाई को स्टिंग ऑपरेशन दिखाया, तो न सिर्फ यह पता चला कि सीडी बेहतरीन क्वालिटी की थी, बल्कि यह भी पता चला कि खरीद-फरोख्त के मुख्य आरोपी सपा महासचिव अमर सिंह को सीडी पहले ही दिखाकर उनकी प्रतिक्रिया को जोड़ दिया गया था, जबकि इस तरह के स्टिंग ऑपरेशनों के प्रसारणों के साथ-साथ प्रतिक्रिया लेने की परंपरा रही है। न सिर्फ यह, अलबत्ता स्टिंग ऑपरेशन दिखाते समय अमर सिंह और अहमद पटेल का जमकर बचाव भी किया गया। सीडी का वह अंश प्रसारित नहीं किया गया, जिसमें सारा ऑपरेशन करने के बाद चैनल के रिपोर्टर सिध्दार्थ गौतम ने अर्गल के घर एक करोड़ रुपए के नोट सामने रखकर तीनों सांसदों का इंटरव्यू करने के बाद कहा था कि उसने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा स्टिंग ऑपरेशन सफलतापूर्वक किया है।
स्टिंग ऑपरेशन की संसदीय जांच के दौरान कई रहस्यों से पर्दा उठा है। जांच को दिशाहीन बनाने के लिए कई नई सीडियां फिर तैयार करके जांच समिति को सौंपी गई थी। जांच समिति की रिपोर्ट आना अभी बाकी है, जांच का मुख्य पहलू यह था कि संजीव सक्सेना किसका आदमी है। यह साबित करने के लिए खुद चैनल के पास दो सबूत मौजूद थे। पहला सबूत चैनल के रिपोर्टर को संजीव सक्सेना के मोबाइल से बीस जुलाई को आया एसएमएस है, जिसमें अमर सिंह की प्रेस कांफ्रेंस की जानकारी दी गई थी। दूसरा सबूत उस जिप्सी का नंबर है, जिस पर संजीव सक्सेना अपने एक सहायक के साथ अर्गल के घर आया था। चैनल के रिपोर्टर सिध्दार्थ गौतम ने जीप का यह नंबर स्टिंग ऑपरेशन में सहायता कर रहे लालकृष्ण आडवाणी के सहायक सुधींद्र कुलकर्णी और अरुण जेटली को दिया था। सरकारी रिकार्ड के मुताबिक वह जिप्सी अमर सिंह की पत्नी की कंपनी पंकज आर्ट एंड क्रेडिट के नाम पर है। संजीव सक्सेना के अमर सिंह का सचिव होने के और भी कई सबूत जांच समिति को सौंपे गए हैं, लेकिन संजीव सक्सेना ने जांच समिति के सामने आकर कहा कि एक करोड़ रुपया उसे सुहेल हिंदुस्तानी ने दिया था, जो भाजपा की ओर से स्टिंग ऑपरेशन के लिए चैनल को सहयोग कर रहा था। संजीव सक्सेना का यह बयान दो आधार पर गलत साबित होता है। पहला आधार यह है कि सुहेल हिंदुस्तानी खुद उस समय अशोक अर्गल के घर पर मौजूद था, जब वह एक करोड़ रुपया लेकर आया था। अगर सुहेल हिंदुस्तानी ने ही पैसा दिया था तो वह उसी की मौजूदगी में किस 'सिंह' से बार-बार फोन मिलाकर तीनों सांसदों की बात करवा रहा था। दूसरा आधार यह है कि पच्चीस जुलाई को अरुण जेटली और अर्गल के घर घुसने की नाटकीय सीडी किसके कहने पर और क्यों बनवाई गई थी। संभवत: संसदीय जांच समिति इस तरह के मामलों की तह में जाकर जांच नहीं कर सकती। इस तरह के मामलों में पुलिस रिमांड लेकर आरोपी से गहन पूछताछ करनी पड़ती है। राजग सरकार में बंगारू लक्ष्मण और जार्ज फर्नाडीस के खिलाफ सबूत जुटाने के लिए फर्जी सौदागर बनकर स्टिंग ऑपरेशन किया गया था। तब कांग्रेस को ऐतराज था कि सरकार ने एफआईआर दर्ज नहीं करवाई। इसलिए अपनी सरकार बनने पर सबसे पहला काम मामला सीबीआई को सौंपकर एफआईआर दर्ज करवाने का किया गया। जबकि अपने शासन के दौरान हुए किसी भी स्टिंग ऑपरेशन की एफआईआर सरकार ने दर्ज नहीं कराई। स्टिंग ऑपरेशन का यह मामला इतना पेचीदा है कि सात या ग्यारह सांसद बैठकर बीस-पच्चीस तो क्या सौ दिनों में तह तक नहीं पहुंच सकते।
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