माना कि किसानों के हित में हैं बिल

Publsihed: 19.Sep.2020, 15:40

अजय सेतिया / मेरे लेख "कांट्रेक्ट फार्मिंग कृषि आधारित उद्योगों की बर्बादी " पर अनेक लोगों ने प्रतिक्रिया दी है, जिन में किसान भी है और व्यापारी भी , पत्रकार भी हैं । प्रतिक्रिया में ज्यादातर लोगों ने कृषि क्षेत्र से जुड़े तीनों बिलों का समर्थन करते हुए इन्हें किसान के हित में बताया है । इस पोस्ट में मैं उन सब की राय रख रहा हूं । अंत में अपने अनुतरित सवालों को फिर से सामने रखूंगा ।

ज्यादातर की प्रतिक्रिया है कि APMC का हटाया जाना किसानों के हित में है , अपने पहले लेख " कृषि से जुड़े अध्यादेशों से किसे फायदा" में मैंने भी इसका समर्थन किया था , लेकिन मेरी शर्त सिर्फ इतनी थी कि नई व्यवस्था MSP को समाप्त करने की दिशा में उठाया गया कदम साबित न हो । सरकार ने स्पष्ट किया है कि मंडियों में MSP जारी रहेगी , अगर किसान को मंडियों से बाहर MSP से ज्यादा कीमत मिलेगी, तभी वह मंडी से बाहर जाएगा । अब किसानों के सामने अपना उत्पाद बेचने के विकल्प होंगे , उन पर अपने क्षेत्र की मंडी में ही व्यापारियों के मनमाने दाम पर फसल बेचने की मजबूरी नहीं रहेगी ।

किसान नेता और सामाजिक कार्यकर्ता *रामवीर अहिरवाल * लिखते हैं , एक दो साल बीतने दो,,जब किसानो को मजा आएगा तब सब ठीक होने लगेगा.....जब राजस्थान और UP के किसान HARYANA में अपनी फसल बेरोकटोक बेचेंगे, जो अभी तक बंद है और पुलिस को पैसे देकर ही बॉर्डर पार हो पाती हैं,,तब ये सब खुश हो जाएंगे.....70 से 80% खरीद पहले भी बिचौलिये ही खरीद रहे थे और वो सिर्फ प्रदेश के ही....अब कोई किसी राज्य में जाकर खरीद सकता है. पहले बिना बिकी फसल रह जाती थी और किसान को मजबूरी में वो बेचनी पाती थी, अब ऐसा नहीं होगा, खरीददार बढ़ जाएंगे...

कांग्रेस APMC हटाने का विरोध कर रही है , लेकिन 2013 में कांग्रेस शासित 11 मुख्यमंत्रियों ने राहुल गांधी की अध्यक्षता में बैठक कर फल और सब्जियों को APMCसे मुक्त करने का एलान किया था । संभवतः वह व्यवस्था उन 11 राज्यों में लागू होगी । कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संजय झा ने खुलासा किया है कि कांग्रेस ने अपने 2019 के घोषणा पत्र में APMC को पूरी तरह खत्म करने का वायदा भी किया था।

एक अन्य बिल 1950 का था , जिसमें जमाखोरी पर रोक थी । यह तब की बात है , जब अनाज की कमी थी और व्यापारी जमाखोरी कर के बाजार में कमी दिखा कर कीमतें बढ़ा कर बेजा मुनाफाखोरी करते थे । अब तो कई जगह पर किसानों की फसल बिना बिके रह जाती है, इसलिए अब खरीदारी पर किसी थी पाबंदी नहीं होनी चाहिए । अपने पहले लेख में मैने इस अध्यादेश का भी समर्थन किया था ।

लेकिन जिस अध्यादेश और बिल पर सब से ज्यादा विवाद है , वह है कांट्रेक्ट फार्मिंग का । तिलक अग्रवाल ने लिखा है कि क्या दो चार कारपोरेट मिलकर सारे देश के किसानों की जमीन खा जाएंगे। नहीं। हर चीज के दो पहलू होते हैं एक अच्छा और एक बुरा। अच्छा को दूर कर दिया जाता है और बुरे को हवा बना दिया था यही जीएसटी में भी हुआ था ।

*राजस्थान* के किसान और सामाजिक कार्यकर्ता *रामवीरअहिरवाल* ने मुझे सूचित किया है कि यह बड़े किसानों के हित में होगा और छोटे किसान कांट्रेक्ट फार्मिंग के चक्कर में पड़ेंगे ही नहीं , न कि किसी कार्पोरेट घराने को छोटे खेतों में कोई दिलचस्पी होगी । फिर उनका सब से अहम सवाल यह है कि यह कोई compulsion है कि हर किसान contract करे....जिसकी मर्जी है वो करेगा ।

छोटे किसान को भी अब अंधेरे में नहीं रखा जा सकता। छोटा किसान क्या कर सकता है इसके उदाहरण ओडिशा व अन्य राज्यों में भरे पड़े हैं जहाँ गरीब लोगों ने multinational mining companies को जूते मारकर भगा दिया...अनिल अंबानी, अनिल अग्रवाल व जिंदल इसके उदाहरण है...और हल्दीराम वाले को 50 फुट की दुकान वाले ने अपनी दुकान नहीं दी कलकत्ता में , haldiram का अरबपति आज jail में उम्रकैद काट रहा है.....इसलिए fiction नहीं reality पर सोचिए...

*उत्तराखंड* से अनिल बिंजौला जी ने करीब करीब यही बात लिखी हैं , जिन की कंपनी किसानों के साथ पहले कांट्रेक्ट फार्मिंग कर रही है । उनका मानना है कि किसान तो खुश हैं । वह लिखते हैं बिल से क्या फर्क़ पड़ता है, आप मत दीजिए अपने खेत contract पर, आप मत बेचें कहीं भी अपनी ही मंडी में बेचे.. इस बिल से किसानों को फायदा ही होगा, केवल एक बात का डर जो है वो है कि कहीं पैसे बैंक में ना आने लगे और कर्जमाफी का तकिया कलाम कहीं फूस ना हो जाए.. ये डर ज्यादा लोगों को हो सकता है |

*राजस्थान* से रामवीर अहिरवाल कहते हैं कि कांट्रेक्ट फार्मिंग गेंहू, चावल और अन्य फसलों में ये व्यवस्था लागू होना अत्यन्त कठिन है... वे बिल्कुल नहीं करेंगे क्योंकि हमारे यहां जो छोटी जोत के किसान हैं वो भूमि पर पूरी तरह से निर्भर..... ये व्यवस्था commercial crops के मामलों में हो सकती है,,,बल्कि already हो चुकी है । himachal में सेब की खेती में.....अडानी ग्रुप सालो से ये कर रहा है...किसान खुश हैं ।

*उत्तरप्रदेश* गाजीपुर से ब्रह्मशंकर सिंह लिखते हैं कोई भी कांट्रैक्ट दोनों पक्षों की सहमति से बनता है। और कॉन्ट्रैक्ट रद्द होने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती हैं। फिर किसानों की उपज को बेचने के लिए मंडी में जाकर के आढ़तियों और दलालों की गुलामी करना मजबूरी नहीं रहेगी। सभी आरती और दलाल टाइप के लोग इस बिल के सख्त खिलाफ है क्योंकि उनका धंधा मारा जाएगा। यही लोग ने जो किसान को 1200 या 1300 रुपए कुंटल गेहूं का देते हैं और फिर उसे ₹4000 कुंटल तक दाम वसूल लेते हैं उपभोक्ताओं से। हालांकि किसी भी कानून के दुरुपयोग की गुंजाइश रहती है इसलिए इस कानून में अगर कोई छेद हो तो उसे बंद कर देना चाहिए लेकिन स्वामित्व किसी का अपहरण करना भारतीय कानूनों के हिसाब से आसान नहीं है ।

*हिमाचल* से सुभाष वात्स्यायन लिखते हैं कि मीडिया सीएए जैसा ही बेवजह का शोर मचा रहा है । किसान विधेयक कोई बंधक कानून है या ऐमरजैंसी की घोषणा है। किसानों की आय बढ़ाने के लिये नए नए रास्ते सरकार दे रही है। सब के पास एक जैसी जमीन नहीं है, फसल कम ज्यादा है, शीघ्र या लेट है तो जिसे जो पास की अनाज मंडी, ई-मंडी, विचौलिया या प्रोसेसर मिले उस रास्ते को चुनें। मक़सद है किसान को उचित आय हो, समय पर फसल बिके, खेती पर औजार, खाद की कमी न हो। 80% किसान जमीन का टैस्ट नहीं करवाते, 50% फसल बीमा नहीं करवाते, उनके नेता और मीडिया किसानों को इसका लाभ क्यों नहीं बताते। पकने से पहले उचित ग्राहक, मंडी में किसान जाए, यह ज़रूरी है, मुसीबत, खराब मौसम के समय शीघ्र राहत मिले, फसल खराब न हो। इसके अतिरिक्त किसान को नज़दीकी भंडारण सुविधा भी मिले, चाहे वह सरकारी हो या प्राइवेट ।

*दिल्लीप्रदेश* भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नंद किशोर गर्ग ने मेरी पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि तीनों कानूनों से अगर किसी को नुक्सान होगा तो वह मंडी के व्यापारियों को होगा , जिनकी मनोपली है । किसानों का तो फायदा ही होगा।थोड़े दिन यह जो एक कंफ्यूजन है , वह जल्द ठीक होगा ।यह निर्णय तो मनमोहन सिंह जी भी लेना चाह रहे थे हर समझदार व्यक्ति लेना चाहता है । हां , जो भ्रांतियां हैं , उन के बारे में सरकार को घोषणा करनी चाहिए कि दो साल में समीक्षा करेंगे , जो कमियां होगी उसको सब से विचार-विमर्श के बाद ठीक किया जाएगा । इस के साथ ही यह भी कहा जाए कि किसानों की फसल MSP से कम नहीं बिकने दी जाएगी। हमारे लिए अन्नदाता किसान व्यापारी उपभोगता इन सबके अंदर समन्वय रखना आवश्यक है भाव ज्यादा बढ़े बिना किसान भी खुशहाल हो तो देश खुशहाल होगा , क्योंकि किसान के ही बेटे सीमाओं की रक्षा करते हैं किसान के ही बेटे पुलिस में अधिकतम हैं इसलिए जो वामपंथी हैं इन तीनों के अंदर संघर्ष करा कर देश को कमजोर करने की लगातार कोशिश करते हैं ।

आप सब के तर्क और मत अपनी जगह । मेरी आशंका दूसरी है , जिस का जिक्र मैंने अपने लेख में किया था । वह यह है कि कृषि जमीन उद्धोगपतियों और बड़ी कम्पनियों के हाथ में जाते ही देश के छोटे मैकेनिक दुकानदार , व्यापारी ,फ़ूड प्रोसेसिंग इकाइया , जैसे सहकारिता डेयरियां , खाद बीज की दुकान , मांस मछली कीं दुकानें , नावे, पोल्ट्री फार्म , छोटे भेड़ बकरी पालक और उनसे संबंधित सारी एग्रो इकोनॉमी ध्वस्त हो जाएगी | खेती की उत्पादक व मार्केटिंग कम्पनियां एक ही होंगी और देश की इस परम्परागत कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत और आधुनिक बनाने के लिए पिछले 70 वर्षों के प्रयास व्यर्थ हो जाएंगे , क्योंकि कृषि और किसान से जुड़े अन्य उद्धोग धंधे और दूकानदारी बर्बाद हो जाएगी | जैसे अभी किसान फर्टिलाइजर बीज व कीटनाशकों, ट्रेक्टर डीजल के लिए देश की बड़ी कम्पनियों पर निर्भर है ,उसी तरह देश की कपास, ऊन , दालें , मसाले , खाध तेल, लकड़ी, चमड़े ,मांस-मुर्गी , अंडे , मछली, अनाज आटे मैदे सब्जियां फलो के व्यापार पर बहु राष्ट्रीय कम्पनियों का कब्जा हो जाएगा | जिन कुटीर उद्योगों का मैने जिक्र किया वे पहले अमेरिका और यूरोप में भी हुआ करते थे , अब नहीं है । अमेरिका बर्दाश्त कर गया, लेकिन हमारे यहां आबादी कई गुना है, और बेरोजगारी बेहिसाब है ।कुटीर उद्योग बंद हो गए तो सारी अर्थ व्यवस्था तहश नहश हो जाएगी।लीज के नाम पर बड़े किसान को भी मोटी रकम मिलेगी तो वह झांसे में आ जाएगा , और मोटी रकम को वह कुछ समय मे ही अपनी सामाजिक खर्चो में बर्बाद कर देगा । इस लिए बेहतर होता कि भाजपा में पहले घन विचार विमर्श होता | 

 

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