# 1996 में लोकसभा के मध्यावधि चुनाव टालने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रमोद महाजन के माध्यम से देवगौडा को संदेश भिजवाया था कि अगर वह चाहे तो भाजपा उन का समर्थन करने को तैयार है ।
# गोबिन्दचार्य ने ब्रिटिश प्रतिनिधिमंडल से कहा था कि उदारवादी अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा का चुनावी चेहरा होंगे । हालांकि अंग्रेजी में कहे गए “फेस” शब्द का अनुवाद मुखौटा किया गया , जिस से वाजपेयी चिढ गए और गोबिंदाचार्य को राजनीति से सन्यास लेना पडा |
अजय सेतिया
2004 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी को आखिरी बार चुनावी मंचो पर सुना गया था । उस के बाद जब शंकराचार्य जयंत सरस्वती को गिरफ्तार किया गया था , तब दिल्ली के संसद मार्ग थाने के बाहर धरने पर बैठे हुए उन्हे आखिरी बार सार्वजनिक तौर पर देखा और सुना गया । 25 दिसम्बर 2005 को अपने जन्मदिन पर अटल बिहारी वाजपेयी की ओर से सक्रिय राजनीति से सन्यास की घोषणा के बाद न तो उन्हे देखा गया, न सुना गया । उसी 25 दिसम्बर को अपने जन्मदिन पर शायद आखिरी बार वह मुबारकबाद देने आई समर्थको की भीड से मिले थे । इस के बाद के जन्मदिनो पर बहुत सीमित लोगों को ही उन्हे देखने का अवसर दिया गया । वह भी करीब एक दशक पहले करीब करीब बंद कर दिया गया था । मुझे 2008 में एक बार उन्हे देखने का तब अवसर मिला था, जब मेरे काफी आग्रह करने पर पूर्व उप-राष्ट्रपति श्री भैरो सिंह शेखावत अपने साथ ले गए थे ।
जिन्हे देश की जनता 1952 से हर चुनाव में सुनने की आदि हो गई थी , वह 2009 के लोकसभा चुनावो में गायब थे । लोगो का आकलन है कि अगर वाजपेयी स्वस्थ होते और 2009 में वह सार्वजनिक रूप से सामने आते तो देश 2004 में उन्हे हराने की गलती सुधार लेता । 2009 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्हे आघात (स्ट्रोक) लगा था और इसके बाद उन्हें बोलने में समस्या होने लगी थी । तब से लेकर देश अटल बिहारी वाजपेयी के शानदार भाषणो को देश यूट्यूब पर ही सुन रहा है । जिसे सुनने वालो की तादाद अब करोडो में पहुंच चुकी है ।
वैसे तो वाजपेयी को आघात 2009 में आया था लेकिन उससे पहले ही उन्हें डिमेंशिया नाम की बीमारी होने के चर्चे शुरू हो गए थे। डिमेंशिया किसी खास बीमारी का नाम नहीं है बल्कि यह ऐसे लक्षणों को कहते हैं जब इंसान की यादास्त कमजोर हो जाती है और वह अपने रोजमर्रा के काम भी ठीक से नहीं कर पाता । इस बीमारी से पीड़ित होने के बाद लगातार सार्वजनिक जीवन जीने वाले अटल बिहारी एक तरह से अकेले पड़ गए । उन से मिलने वालों की संख्या सीमित कर दी गई थी , जिन लोगों को मिलने की इजाजत थी , उन में लाल कृष्ण आडवाणी के अलावा राजनाथ सिंह , मुरली मनोहर जोशी , सुषमा स्वराज , सर संघ चालक मोहन भागवत जैसे नाम ही थे । भाजपा के मुख्य्मंत्रियो को भी आसानी से नहीं मिलने दिया जाता था । एक बार मनमोहन सिंह उन्हे जन्म दिन की बधाई देने गए थे , लेकिन लाल कृष्ण आडवाणी ने जब मनमोहन सरकार से आग्रह किया कि वाजपेयी को भारत रत्न का सम्मान दिया जाए, तो मनमोहन सरकार ने उन की यह मांग ठुकरा दी थी । 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद वाजपेयी को भारत रत्न का सर्वोच्च सम्मान देने का फैसला हुआ , 2015 में जब तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन के घर जा कर उन्हे भारत रत्न से सुशोभित किया, तब उन की आखिरी तस्वीर सामने आई थी, जिस में वह व्हील चेयर पर बैठे थे और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी उन्हे सम्मानित कर रहे थे , वह तस्वीर भी ऐसे जारी की गई थी, जिस में अटल जी का चेहरा नहीं दिखाया गया था ।
पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने जो कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया हुआ है उस की शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी बहुत पहले ही कर चुके थे । उन्हे भारत के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री होने का गौरव प्राप्त है । वैसे तो उन से पहले मोरार जी देसाई ,चरण सिंह , वी.पी.सिन्ह ,चद्र्शेखर , एच .डी .देवगौडा और इंद्र कुमार गुजराल भी देश की गैर कांग्रेसी सरकारो के प्रधानमंत्री रह चुके थे, लेकिन वे सभी पहले कांग्रेस में रहे थे , जब कि अटल बिहारी वाजपेयी का कांग्रेस से दूर दूर तक कोई सम्बंध नहीं था । वह कांग्रेस की घोर विरोधी सामाजिक एंव सांस्कृतिक संस्था राष्ट्रीय स्वय: सेवक संघ के प्रचारक रहे थे । पहली बार उन्हे 16 मई 1996 को राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने सरकार बनाने का न्योता दिया, जब उन का दल भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव में सब से बडे दल के रूप में उभरा था, लेकिन भाजपा विरोधी सभी दल एकजुट हो गए , जिस कारण उन के बहुमत साबित करने की कोई गुंजाईश ही नहीं बची थी । सदन में जब उन के विशवास मत पर बहस चल रही थी , तब विरोधी भी उन की तारीफ कर रहे थे । तब विपक्ष के कई नेताओ ने अपने भाषण में कहा था कि आप आदमी अच्छे हैं, पर गलत दल में हैं । अपने जवाबी भाषण में इस पर चुटकी लेते हुए वाजपेयी ने कहा कि इस अच्छे आदमी के साथ अब क्या सलूक करने का इरादा है । उन के एक जून 1996 के सदन में दिए गए भाषण ने उन के फिर से प्रधानमंत्री बनने की पटकथा लिख दी थी । उन का यह भाषण आज भी वीडियो पर बार बार सुना जाता है । अपने औजसवी भाषण के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने सदन का सामना करने की बजाए इस्तीफा देने की घोषणा कर दी थी ।
सभी दलो ने मिल कर वाजपेयी की सरकार तो गिरा दी थी , लेकिन वे अपनी मिली जुली सरकार 19 महीने ही चला पाए , उस में भी एच.डी. देवगौडा और इंद्र कुमार गुजराल दो प्रधानमंत्री रहे । अटल बिहारी वाजपेयी दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर लोकतांत्रिक संस्थाओ की मजबूती में विश्वास रखते थे । इस लिए जब राजीव गांधी की हत्या में कथित तौर पर द्रमुक और खासकर द्रमुक नेता करुनानिधी का नाम आने पर कांग्रेस अध्यक्ष सीता राम केसरी ने राष्ट्र्पति को समर्थन वापसी की चिठ्ठी लिख दी थी और लोकसभा में विश्वास मत पर बहस चल रही थी , बहुत कम लोगो को इस बात की जानकारी है कि तब लोकसभा के मध्यावधि चुनाव टालने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रमोद महाजन के माध्यम से देवगौडा को संदेश भिजवाया था कि अगर वह चाहे तो भाजपा उन का समर्थन करने को तैयार है । अगर ऐसा हो जाता तो राजनारायण ने 1979 में जनता पार्टी को तोड कर और मोरार जी सरकार को गिरा कर जो गलती की थी, उस का सुधार हो जाता , क्योंकि देवगौडा सरकार में वे सभी दल शामिल थे, जो मोरारजी सरकार का भी हिस्सा थे । लेकिन दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर जनता पार्टी तोडने वाले जनता दल के घटक सहमत नहीं हुए और देवगौडा ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया । कांग्रेस ने देवगौडा की सरकार गिराने के बाद फिर से तीसरे मोर्चे को समर्थन की पेशकश की जिस पर इंद्र कुमार गुजराल के नेतृत्व में दुबारा सरकार गठित हुई लेकिन वह भी ज्यादा नहीं चली और अंतत: फरवरी मार्च 1998 बिहारी वाजपेयी तेरह दलो के समर्थन से फिर प्रधानमंत्री बन गए । अटल बिहारी ने 19 मार्च 1998 को दूसरी बार भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली |
कारगिल युद्ध
वाजपेयी ने देश के विकास को तीव्र गति देने के लिए कई ठोस कदम उठाए, लेकिन इस के साथ साथ वह पाकिस्तान से भी रिश्ते बेहतर करना चाहते थे | 19 फ़रवरी 1999 को वाजपेयी ने सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर बस सेवा शुरू की । इस सेवा का उद्घाटन करते हुए प्रथम यात्री के रूप में वाजपेयी जी ने पाकिस्तान की यात्रा कर के नवाज शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नयी शुरुआत की । लेकिन कुछ ही समय बाद पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज़ मुशर्रफ की शह पर पाकिस्तानी सेना व उग्रवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। अटल सरकार ने पाकिस्तान की सीमा का उल्लंघन न करने की अंतर्राष्ट्रीय सलाह का सम्मान करते हुए धैर्यपूर्वक किंतु ठोस कार्यवाही करके भारतीय क्षेत्र को मुक्त कराया। इस युद्ध में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण भारतीय सेना को जान माल का काफी नुकसान हुआ और पाकिस्तान के साथ शुरु किए गए संबंध सुधार एक बार फिर शून्य हो गए । लेकिन कारगिल विजय ने वाजपेयी के अटल इरादो की धाक जम गई थी |
एक वोट से गिरी सरकार
इस बीच 1999 में देश को फिर मध्यवधि चुनाव झेलने पडे , जब अन्ना द्र्मुक प्रमुख जयललिता ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से सांठ गाँठ कर के समर्थन वापस ले लिया था और वाजपेयी की सरकार कांग्रेस के मुख्यमंत्री गिरधर गोमांग के एक वोट से गिर गई थी । कभी जनसंघ में रहे सुब्रहमणय्म स्वामी को यह हमेशा मलाल रहा कि वह मोरारजी सरकार में मंत्री नहीं बन पाए थे । इस का जिम्मेदार वह अटल बिहारी वाजपेयी को मानते थे, क्योंकि उन्होने जनसंघ कोटे से मोरारजी को उन का नाम नहीं दिया था ।
जब जनता पार्टी टूट गई और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पूर्व जन संघियो की भारतीय जनता पार्टी बन रही थी , तो वाजपेयी से व्यक्तिगत खुन्नस के कारण वह भाजपा में नहीं गए थे । तब से ही वाजपेयी से खुन्नस खाए बैठे सुब्रहमणय्म स्वामी ने अन्ना द्र्मुक प्रमुख जयललिता और सोनिया गांधी की मुलाकात कर वाजपेयी सरकार को संकट में डाल दिया था । तब वाजपेयी की सरकार उडीसा के मुख्यमंत्री गिरधर गमांग के एक वोट से गिरी थी, वह मुख्य्मंत्री बन गए थे , लेकिन तब तक उन्होने लोकसभा से इस्तीफा नहीं दिया था । 1999 में वाजपेयी की सरकार गिराने वाले सुब्रहमण्य्म स्वामी और गिरधर गमांग दोनो ही अब भाजपा में हैं ।1999 का चुनाव जीतने के बाद वाजपेयी 22 मई 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे ।
विमान अपहरण
वाजपेयी सरकार को कोई कम संकटों से नहीं गुजरना पडा | एक संकट निपटता था तो दूसरा मुहं बाएँ खडा होता था | वाजपेयी के जन्मदिन 25 दिस्मबर से ठीक एक दिन पहले 24 दिसम्बर 1999 को नेपाल के हवाई अड्डे से भारतीय विमान का अपहरण कर लिया गया | हालांकि विमान में ज़्यादातर यात्री भारतीय ही थे लेकिन इनके अलावा ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, इटली, जापान, स्पेन और अमरीका के नागरिक भी इस फ़्लाइट से सफ़र कर रहे थे | विपक्षी दलों ने कुछ न्यूज चेनलों से मिल कर साजिश करके सरकार पर दबाव बनाया कि वह कैसे भी विमान यात्रियों को मुक्त करवाए | जो यात्री विमान में थे, उन के परिजनों को न्यूज चेनलों के रिपोर्टर प्रधानमंत्री के घर तक ले गए और वहां नारेबाजी करवाई | एनडीए सरकार को यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चत करने के लिए तीन चरमपंथियों को कंधार ले जाकर रिहा करना पड़ा |
तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के विदेश मंत्री जसवंत सिंह ख़ुद तीन चरमपंथियों अपने साथ कंधार ले गए थे | छोड़े गए चरमपंथियों में जैश-ए -मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर, अहमद ज़रगर और शेख अहमद उमर सईद शामिल थे | यह वाजपेयी सरकार की सब से बड़ी विफलता थी, जिसे विपक्षी दल कांग्रेस ने उन्हें कमजोर प्रधानमंत्री साबित करने के लिए भुनाया |
पाक से रिश्ते सुधारने का फिर प्रयास
कारगिल झेलने और विमान अपहरण के बावजूद वाजपेयी ने पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए 2001 में दूसरी बार पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ को आगरा शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया । हालांकि इसका भी नतीज़ा ज़्यादा सकारात्मक नहीं निकल पाया । इसके बाद तीसरी बार मई 2003 में वाजपेयी ने फ़िर कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ बातचीत की पेशकश रखी और उसके बाद से भारत-पाकिस्तान रिश्ते काफ़ी बेहतर हुए । 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले इस्लामाबाद में हुए सार्क सम्मेलन में वाजपेयी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री परवेज मुशर्रफ के साथ वह इतिहासिक समझौता करवाने में कामय्याब हो गए थे , जिस में पाकिस्तान ने वायदा किया था कि वह आतंकवादियो को भारत के खिलाफ पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल नहीं करने देगा । वाजपेयी के रहते हुए चीन से भी संबंध बेहतर बनाने की कोशिश हुई और वे चीन यात्रा पर गए।
परमाणु सम्पन्न राष्ट्र
भारत को परमाणु सम्पन्न राष्ट्र घोशित करने का श्रेय अटल सरकार को जाता है , जिन्होने प्रधानमंत्री बनने के दो महीनोन के भीतर ही 11 और 13 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट करके भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया । इस कदम से उन्होंने भारत को निर्विवाद रूप से विश्व मानचित्र पर एक सुदृढ वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया था । यह सब इतनी गोपनीयता से किया गया कि अति विकसित जासूसी उपग्रहों व तकनीकी से संपन्न पश्चिमी देशों को इसकी भनक तक नहीं लगी। यही नहीं इसके बाद पश्चिमी देशों ने जब भारत पर अनेक आर्थिक प्रतिबंध लगाए लेकिन वाजपेयी सरकार ने सबका दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए आर्थिक विकास की ऊचाईयों को छुआ।
स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना
अटल बिहारी वाजपेयी का कार्य्काल विकास के रास्ते खोल्ने और तीव्र गति से विकास की शुरुआत कर्ने के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा । उन के कार्यकाल में भारत भर के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना (गोल्डन क्वाड्रिलेट्रल प्रोजैक्ट) की शुरुआत की गई। इस योजना से दिल्ली कलकत्ता , मुमबई और चेन्नई को राजमार्ग से जोड़ा गया। ऐसा माना जाता है कि अटल जी के शासनकाल में भारत में जितनी सड़कों का निर्माण हुआ इतना उस से पहले सिर्फ शेरशाह सूरी के समय में ही हुआ था।
गुजरात के दंगे और राजधर्म
लेकिन उनके इसी कार्यकाल के दौरान गुजरात में मुसलमानों के ख़िलाफ़ दंगे हुए जिसमें अनेक लोग मारे गए । जिस पर वाजपेयी ने गुजरात जाकर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राजधर्म का पालन करने की सलाह दी । वाजपेयी मोदी को मुख्य्मंत्री पद से हताना चाह्ते थे, लेकिन लाल कृष्ण आदवाणी ने मोदी का साथ दिया, जिस कार्ण वह मोदी को हटा नहीं सके । इस पर वाजपेयी की कड़ी आलोचना भी हुई । इस का असर 2004 के लोकसभा चुनावो पर भी पडा और वाजपेयी सरकार हार गई । 2003 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश की जीत से उअत्साहित भाजपा ने लोकसभा का कार्य्काल खत्म होने से पहले ही अप्रेल 2004 की भरी गर्मी में शायनिंग इंडिया के रठ पर सवार हो कर लोकसभा के चुनाव करवा लिए और हार गई । इस चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। ऐसी स्थिति में वामपंथी दलों के समर्थन से काँग्रेस ने भारत की केन्द्रीय सरकार पर कायम होने में सफलता प्राप्त की और भा०ज०पा० विपक्ष में बैठने को मजबूर हुई।
जन्म और संघ से सामाजिक जीवन की शुरुआत
उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के बकटेशवर निवासी पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश रियासत में अध्यापक थे। वहीं शिन्दे की छावनी में 25 दिसम्बर 1924 को ब्रह्ममुहूर्त में उनकी सहधर्मिणी कृष्णा वाजपेयी की कोख से अटल जी का जन्म हुआ था । 1942 में स्वाधीनता के आंदोलन के दौरान वे कुछ समय के लिए जेल में रहे | कानपुर के डी०ए०वी० कालेज से राजनीति शास्त्र में एम०ए० करने के बाद उन्होंने अपने पिताजी के साथ-साथ कानपुर में ही एल०एल०बी० की पढ़ाई भी शुरु की लेकिन उसे बीच में ही छोड कर संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए । प्रचारक की भूमिका के दौरान ही उन्हे संघ विचारधारा का पांचजन्य निकालने की जिम्मेदारी दी गई । बाद में जब डा. श्यामा प्र्शाद के नेतृत्व में
संघ विचारधारा पर आधारित राजनीतिक दल जनसंघ बनाने का निर्णय हुआ तो अटल बिहारी वाजपेयी को डॉ॰ श्यामा प्र्शाद मुखर्जी और पण्डित दीन दयाल उपाध्याय की सहयोग करने के लिए जन संघ में भेज दिया गया । दीन दयाल उपाध्याय की हत्या के बाद वाजपेयी 1968 से 1973 तक जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने जनसंघ की टिकट पर पहली बार 1955 में लोकसभा का उपचुनाव चुनाव लड़ा, लेकिन सफलता नहीं मिली, जबकि 1957 के आम चुनावो में बलरामपुर (उत्तर प्रदेश) से जीत कर लोकसभा में पहुँचे । तब से लेकर 1977 में जनसंघ के जनता पार्टी में विलय तक वह लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे । इस बीच 1975 में आपातकाल के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी भी जेल में थे, एक वर्ष पूरे होने पर उन्होंने एक कविता लिखी थी |
झुलसाता जेठ मास
शरद चांदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
सींखचों में सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया
पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया
आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव से पहले ही सभी विपक्षी राजनीतिक दलों ने विलय कर के जनता पार्टी बनाई और हलधर किसान के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा और जीता | अटल बिहारी वाजपेयी 1977 से 1979 तक मोरारजी देसाई की पहली गैर कांग्रेसी सरकार में विदेश मन्त्री रहे और विदेशों में भारत की छवि को सुधारा , सन्युक्त राष्ट्र की आम सभा में हिंदी में पहला भाषण करने का श्रेय वाजपेयी जी को ही जाता है । राष्ट्रीय स्वय: सेवक संघ और जनता पार्टी की दोहरी सदस्यता के विवाद पर जब जनता पार्टी टूटी तो 1980 में संघ पृष्ठभूमि के सभी नेताओ ने 6 अप्रेल 1980 को वाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया । संघ के साथ वाजपेयी के कई बार मतभेद भी उभर कर सामने आते रहे । 1992 में जब बाबरी ढांचा टूटा था तो वाजपेयी ने लोक्सभा में दिए बयान में इस घटना को दुखद करार दिया था , जब कि वह खुद रामजन्म भूमि को ले कर अनेक औजसवी भाषण देते रहे थे । राजीव गांधी की हत्या के बाद बनी नरसिन्ह राव सरकार के समय पाकिस्तान और कश्मीर के मुद्दे पर भारत का पक्ष रखने के लिए वाजपेयी जी को सन्युक्त राष्ट्र की मानवाधिकार समिति में भेजा गया था । यह अपने आप में अनौखी घटना थी , क्योंकि वह विपक्ष के नेता थे । विभिन्न दलो के नेताओ के साथ वाजपेयी जी के सम्बंध दलगत राजनीति से ऊपर थे । जहाँ 1984 में राजीव गांधी ने वाजपेयी , आडवाणी , चंद्र शेखर आदि सभी को हरवाने की रणनीति बनाई थी , वही वाजपेयी हमेशा ध्यान रखते थे चंद्र शेखर जैसे नेता हर हालत में लोकसभा में पहुंचने चाहिए ।
रामजन्मभूमि आन्दोलन
वाजपेयी की लोकप्रियता इतनी ज्यादा थी कि 1984 में दो सीटें जीतने के बावजूद पार्टी एक दशक के भीतर केंद्र में सरकार बनाने की रणनीति बना ली थी । इस के लिए भाजपा ने रामजन्मभूमि को मुद्दा बनाया और लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकाली । लेकिन भाजपा के संगठन मंत्री गोबिंदाचार्य से जब ब्रिटिश प्रतिनिधि मंडल ने पूछा कि हिंदुत्व की छवि के चलते भाजपा सत्ता तक कैसे पहुंच सकती है, तो उन्होने बेझिझक कहा था कि उदारवादी अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा का चुनावी चेहरा होंगे । हालांकि अंग्रेजी में कहे गए “फेस” शब्द का अनुवाद मुखौटा किया गया , जिस से वाजपेयी चिढ गए और गोबिंदाचार्य को राजनीति से सन्यास लेना पडा । लेकिन गोबिंदाचार्य के कहे अनुसार ही भाजपा वाजपेयी को आगे कर के अपने गठन के 16 साल के अल्प काल में केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब हो गई थी ।
वाजपेयी सरकार के अन्य प्रमुख कार्य
* एक सौ साल से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाया।
* संरचनात्मक ढाँचे के लिये कार्यदल, सॉफ्टवेयर विकास के लिये सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, विद्युतीकरण में गति लाने के लिये केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग आदि का गठन किया।
* राष्ट्रीय राजमार्गों एवं हवाई अड्डों का विकास; नई टेलीकॉम नीति तथा कोकण रेलवे की शुरुआत करके बुनियादी संरचनात्मक ढाँचे को मजबूत करने वाले कदम उठाये।
* राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाह समिति, व्यापार एवं उद्योग समिति भी गठित कीं।
* आवश्यक उपभोक्ता सामग्रियों की कीमतें नियन्त्रित करने के लिये मुख्यमन्त्रियों का सम्मेलन बुलाया।
* उड़ीसा के सर्वाधिक गरीब क्षेत्र के लिये सात सूत्रीय गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किया।
* आवास निर्माण को प्रोत्साहन देने के लिए अर्बन सीलिंग एक्ट समाप्त किया।
* ग्रामीण रोजगार सृजन एवं विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के लिये बीमा योजना शुरू की।
कवि अटल बिहारी वाजपेयी
वाजपेयी हिन्दी कवि, पत्रकार व प्रखर वक्ता भी थे । राजनीति में आने से पहले वह पांचजन्य , राष्ट्र धर्म और वीर अर्जुन के सम्पादक पद रहे थे । मेरी इक्कावन कविताए अटल बिहारी वाजपेयी जी का प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है। वाजपेयी जी को काव्य रचनाशीलता एवं रसास्वाद के गुण विरासत में मिले हैं। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत के अपने समय के जाने-माने कवि थे। वह ब्रज भाषा और खड़ी बोली में काव्य रचना करते थे। पारिवारिक वातावरण साहित्यिक एवं काव्यमय होने के कारण उनकी रगों में काव्य रक्त-रस अनवरत घूमता रहा है। उनकी सर्व प्रथम कविता ताजमहल थी । प्रेम प्रसून न चढ़ाकर "एक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल, हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मजाक" की तरह उनका भी ध्यान ताजमहल के कारीगरों के शोषण पर ही गया । वास्तव में कोई भी कवि हृदय कभी कविता से वंचित नहीं रह सकता। राजनीति के साथ-साथ समष्टि एवं राष्ट्र के प्रति उनकी वैयक्तिक संवेदनशीलता आद्योपान्त प्रकट होती ही रही है। उनके संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियाँ, राष्ट्रव्यापी आन्दोलन, जेल-जीवन आदि अनेक आयामों के प्रभाव एवं अनुभूति ने काव्य में सदैव ही अभिव्यक्ति पायी। विख्यात गज़ल गायक जगजीत सिह ने अटल जी की चुनिंदा कविताओं को संगीतबद्ध करके एक एल्बम भी निकाला था।
वाजपेयी जी की प्रमुख रचनाए
- मृत्यु या हत्या
- अमर बलिदान (लोक सभा में अटल जी के वक्तव्यों का संग्रह)
- कैदी कविराय की कुण्डलियाँ
- संसद में तीन दशक
- अमर आग है
- कुछ लेख: कुछ भाषण
- सेक्युलर वाद
- राजनीति की रपटीली राहें
- बिन्दु बिन्दु विचार, इत्यादि।
- मेरी इक्कावन कविताए
- 1992: पद्म विभूषण
- 1993: डी. लिट ( कानपुर वि.वि की ओर से )
- 1994: लोकमान्य तिलक पुरस्कार
- 1994: श्रेष्ठ सासंद पुरस्कार
- 1994: भारत रत्न पंदित गोबिंद वल्लभ पंत पुरस्कार
- 2014: सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित।
- 2015: डी लिट ( मध्य प्रदेश के भोज वि.वि. की ओर से )
- 2015: 'फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वार अवॉर्ड', ( बांग्लादेश सरकार की ओर से )
- 2015: भारत रत्न से सम्मानित
जीवन के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- आजीवन अविवाहित रहे।
- वे एक ओजस्वी एवं पटु वक्ता (ओरेटर) एवं सिद्ध हिन्दी कवि भी हैं।
- परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की संभावित नाराजगी से विचलित हुए बिना उन्होंने अग्नि-दो और परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिये साहसी कदम भी उठाये।
- प्रधानमंत्री बनने के कुछ दिनोन बाद ही राजस्थान के पोखरण में भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण कर के भारत को परमाणु समपन्न राष्ट्र घोशित कर दिया जिसकी अमेरिका की गुप्तचर एजेंसी सी०आई०ए० को भनक तक नहीं लगने दी।
- अटल सबसे लम्बे समय तक सांसद रहे हैं और जवाहरलाल नेहरू व इंदिरा गांधी के बाद सबसे लम्बे समय तक गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी। वह पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने गठबन्धन सरकार को न केवल स्थायित्व दिया अपितु सफलता पूर्वक संचालित भी किया।
- अटल ही पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था।
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।
सत्य का संघर्ष सत्ता से,
न्याय लड़ता निरंकुशता से,
अँधेरे ने दी चुनौती है,
किरण अन्तिम अस्त होती है।
दीप निष्ठा का लिए निष्कम्प
वज्र टूटे या उठे भूकम्प,
यह बराबर का नहीं है युद्ध,
हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध,
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज,
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज।
किन्तु फिर भी जूझने का प्रण,
पुन: अंगद ने बढ़ाया चरण,
प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार,
समर्पण की माँग अस्वीकार।
दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते;
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।
( 1975 में आपातकाल के दिनों जेल में लिखित रचना)
आपकी प्रतिक्रिया