कई सवाल उठ रहे हैं : जैसे ईसाईयों ने अपनी सभी संस्थाए जेजे एक्ट की धारा 41 के अंतर्गत पंजीकृत क्यों नहीं करवाई , हर बच्चे को संस्था में प्रवेश से पूर्व बाल कल्याण समिति के सामने पेश क्यों नहीं किया गया | कोई भी बच्चा बिना बाल कल्याण समिति की इजाजत किसी को क्यों दिया गया | जेजे एक्ट की धारा 56 के अनुसार किसी ईसाई संस्था को बच्चे गौद देने का अधिकार नहीं है , यह काम धारा 65 के अंतर्गत गठित विशेषकृत दत्तक एजेंसी के माध्यम से ही हो सकता है, फिर ईसाई संस्थाएं खुद ही गौद देने के गैर कानूनी धंधे में क्यों शामिल हैं |
अजय सेतिया
1990 के शुरू की बात है , जब एक बड़े अखबार के चंडीगढ़ स्थित संवाददाता ने ईसाईयों की ओर से चलाए जा रहे बाल आश्रय गृहों के गौरख धंधे पर लेखों की शृंखला शुरू की थी | पहले ही लेख के बाद दिल्ली से उस के सम्पादक का फोन गया कि यह उस ने क्या शुरू कर दिया, उसे पता नहीं कि ईसाई संस्थाएं अनाथ बच्चों की कितनी लग्न , श्रद्धा और मन से सेवा करती हैं | सम्पादक की यह प्रतिक्रिया उस छवि के कारण थी , जो शुरू से ही हमारे मन में बनाई गई है | पिछले सप्ताह मदर टेरेसा की ओर से शुरू किए गए रांची के निर्मल हृदय आश्रम से बच्चों को बेचे जाने की खबर आई तो सहसा किसी को विश्वास नहीं हुआ | इसे हिंदूवादी संगठनों की ओर से चलाई गई फेक न्यूज मान लिया गया | जबकि सच यह था कि सवा लाख रूपए में खरीदने के बाद भी जब बच्चे की असली मां उसे धोखे से ले गई तो खरीददार ने जिला बाल कल्याण समिति से बच्चा दिलाने की गुहार लगाई थी | बाल कल्याण समिति ने उस का बयान दर्ज कर जब पुलिस को सौंप दिया तब जा कर बच्चों की खरीद फरोख्त का भंडाफोड़ हुआ था |
बच्चों की खरीद फरोख्त का काम ईसाई संस्थाएं शुरू से ही कर रही हैं | ऐसा करते हुए उन्होंने कभी कानूनी प्रक्रिया का पालन भी नहीं किया, जिस कारण उन पर सवाल उठते रहे हैं | पहले भारतीय अनाथ बच्चे यूरोप में सिर्फ ईसाई परिवारों को भेजे जाते थे , फिर भारतीय ईसाइयों को दिए जाने लगे | इन में ज्यादातर बच्चे वे होते हैं, जो बिन ब्याही माओं के होते हैं | ईसाई धर्म में गर्भ गिराने को पाप माना जाता है, इसलिए चर्च गर्भ गिराने की इजाजत नहीं देता | जबकि भारतीय क़ानून 12 सप्ताह तक गर्भ गिराने की इजाजत देता है, उस के बाद भी अदालत की इजाजत से गर्भ गिराने की प्रक्रिया पूरी की जा सकती है | मोदी सरकार ने 2015 में जब नए जुवेनाईल जस्टिस एक्ट में धारा 80 जोड़ते हुए बच्चे को अवैध गौद लेने और देने पर तीन साल की कैद और एक लाख रूपए जुर्माने का प्रावधान किया , तो सभी ईसाई संस्थाओं ने इस क़ानून का विरोध किया था | इस के साथ ही क़ानून में धारा 81 जोड़ी गई थी, जिस में बच्चे की खरीद फरोख्त पर भी पांच साल तक कैद की सजा और एक लाख रूपए तक जुर्माने का प्रावधान है | चर्च की तरफ से शशि थरूर ने लोकसभा में इन सभी मुद्दों को उठाते हुए बिल का विरोध किया था , लेकिन बिल जस का तस दोनों सदनों में पास हो गया | राष्ट्रपति से दस्तखत होते ही चर्च ने लिखित में एक बयान जारी कर के एलान किया था कि चर्च से जुडी कोई संस्था अब बच्चों को गौद देने की प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेगी और वह भारत में सेवा का यह कार्य पूर्ण रूप से बंद कर रही है |
इस के बावजूद केरल, बंगाल, उड़ीसा , झारखंड , छतीसगढ़ और पूर्वोत्तर के राज्यों में बिना पंजीकरण करवाए ईसाई संस्थाएं चल रही हैं और बच्चों की बड़े पैमाने पर खरीद फरोख्त हो रही है | रांची में नवजात बच्चे को बेचे जाने का खुलासा होने के बाद जब राज्य भर में ईसाई संस्थाओं की छानबीन शुरू की गई तो ताज़ा रजिस्टर में ही दर्ज 280 बच्चे नदारद पाए गए हैं | पिछले कुछ सालों की छानबीन में तो हजारों बच्चों को बेचे जाने का मामला सामने आने वाला है | यह तो सिर्फ एक राज्य का मामला है, बाकी राज्यों में यह छानबीन शुरू हुई तो ईसाई संस्थाओं से लाखों बच्चो के गायब होने की पोल खुलने की आशंका है | जुवेनाईल जस्टिस एक्ट की धारा 41 के अनुसार क़ानून लागू होने के छह महीने के भीतर सभी संस्थाओं का पंजीकरण हो जाना चाहिए, अन्यथा वे अवैध मानी जाएँगी | इस के बावजूद ईसाई संगठनों ने अपने बाल आश्रय गृह पंजीकृत नहीं करवाए | ईसाई संस्थाएं खुद को भारतीय क़ानून के दायरे में लाने देना नहीं चाहती |
देश के सभी जिलों में पांच पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं की बाल कल्याण समितिया गठित की गई हैं | जुवेनाईल जस्टिस एक्ट के अनुसार कोई भी संस्था बिना जिला बाल कल्याण समिति से लिखित इजाजत लिए न तो कोई बच्चा संस्था में रख सकती है, न किसी को बाहर भेज सकती है | लेकिन ईसाई संस्थाएं इन कानूनों का पालन नहीं कर रही | दिसम्बर 2015 में एलान करने के बावजूद देश की सभी ईसाई बाल संस्थाएं बच्चों को अवैध तौर पर रखने , उन्हें अवैध रूप से गौद देने और बेचने के धंधे में शामिल हैं | यह कैसे मान लिया जाए कि खरीद फरोख्त में चर्च शामिल नहीं है , संस्था से बच्चे गायब हो रहे हैं तो क्या यह चर्च की जिम्मेदारी नहीं है | कई सवाल उठ रहे हैं : जैसे ईसाईयों ने अपनी सभी संस्थाए जेजे एक्ट की धारा 41 के अंतर्गत पंजीकृत क्यों नहीं करवाई, हर बच्चे को संस्था में प्रवेश से पूर्व बाल कल्याण समिति के सामने पेश क्यों नहीं किया गया | कोई भी बच्चा बिना बाल कल्याण समिति की इजाजत किसी को क्यों दिया गया | जेजे एक्ट की धारा 56 के अनुसार किसी ईसाई संस्था को बच्चे गौद देने का अधिकार नहीं है , यह काम धारा 65 के अंतर्गत गठित विशेषकृत दत्तक एजेंसी के माध्यम से ही हो सकता है, फिर ईसाई संस्थाएं खुद ही गौद देने के गैर कानूनी धंधे में क्यों शामिल हैं |
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