अजय सेतिया / प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विट कर के लिखा है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भाजपा की जीत सुसाशन और विकास की जीत है | वह शाम छह बजे जीत का जश्न मनाने और संसदीय बोर्ड की बैठक में हिसा लेने भाजपा मुख्यालय पहुंचे | लेकिन उस से भी पहले सवाल यह खडा होता है कि क्या गुजरात में यह भाजपा की जीत है | नवज्योति के जिन पाठकों ने 14 दिसम्बर का मेरा कालम पढ़ा होगा , उन्हें याद होगा ,मैंने लिखा था-"कांग्रेस 80 सीटें जीत गईं | तो वह भी मोदी की हार और राहुल की जीत होगी | " यह मैंने सोच समझ कर लिखा था क्योंकि मेरा आकलन कांग्रेस को 80 के आसपास सीटें मिलने का था , हालांकि भाजपा का कोई नेता मुझ से सहमत नहीं था | मैं इसे इसलिए मोदी की हार और राहुल गांधी की जीत कहता हूँ , क्योंकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने गुजरात विधानसभा का चुनाव इज्जत का सवाल बना कर लडा था | दोनों ने जमीनी फीडबैक ले कर जीएसटी को वक्त पर सुधरवाया | जिस का नतीजा यह निकला कि जिस सूरत को "वाटर लू" बताया जा रहा था, वहां की 16 में से 15 सीटें और अहमदाबाद की 21 में से 15 सीटें भाजपा जीत गई | अंदाज लगा सकते हैं कि जीएसटी को वक्त रहते ठीक न किया होता , तो क्या भाजपा गुजरात में चुनाव जीत सकती थी | अब भाजपा चाहे तो सौराष्ट्र में हार से सबक सीख सकती है , किसानी वाले इस इलाके ने 2019 का बड़ा संकेत दिया है , खतरे की घंटी बजा दी है | जिस तरह जीएसटी दुरुस्त किया गया , अब उसी तरह किसानों की हालत सुधारने के लिए काम करना होगा |
गुजरात के चुनावों से एक बात साफ़ हो गई है कि करीब करीब सभी विपक्षी दलों ने राहुल गांधी का नेतृत्व स्वीकार कर लिया है | अंगरेजी के जिन न्यूज चैनलों ने नरेंद्र मोदी के पक्ष में अभियान चलाया हुआ है, कांग्रेस ने उन चैनलों का बहिष्कार किया हुआ है | इन सभी चैनलों पर समाजवादी पार्टी, राजद और वामपंथी दलों के प्रवक्ताओं ने कांग्रेस के प्रवक्ताओं की तरह ही राहुल गांधी की पैरवी की | इस लिए अब यह स्पष्ट है सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री मानने के सवाल पर विपक्ष में जैसा असमंजस रहा वह राहुल गांधी के नाम पर बिलकुल नहीं होगा | राहुल गांधी गुजरात का चुनाव जीतने के लिए नहीं लड़ रहे थे, वह 2019 के लिए अपना नेतृत्व स्थापित करने के लिए लड़ रहे थे | सोनिया गांधी पर सिर्फ विदेशी होने का ही नहीं , अलबत्ता ईसाई होने का लेबल भी लगा हुआ है , इसलिए राहुल गांधी ने गुजरात के चुनाव का इस्तेमाल खुद से ईसाई या पारसी होने का लेबल हटाने के लिए किया | राहुल गांधी जब सोमनाथ मंदिर गए थे तो नरेंद्र मोदी ने उन के हिन्दू होने पर सवाल नहीं उठाया था , बल्कि सोमनाथ मंदिर बनवाने में नेहरू के विरोध का मुद्दा उठाया था | लेकिन राहुल गांधी ने खुद को शिव भक्त और कांग्रेस ने उन्हें जनेऊधारी ब्राह्मण साबित करने में सारा जोर लगा दिया | सब कुछ पहले से तय रणनीति के तहत हो रहा था | यह बात अलग है कि आने वाले समय में भाजपा की रणनीति राहुल गांधी को गैर हिन्दू साबित करने की रहेगी , क्योंकि राहुल गांधी के नेतृत्व वाली नई कांग्रेस अपनी गलतियों को सुधार कर नई कांग्रेस बनाने में जुटेगी , जो खुद को हिन्दुओं के करीब साबित करना चाहेगी | एक जमाने में जैसे हिन्दू विरोधी पैरवी करने वाले दिग्विजय सिंह, कपिल सिब्बल ,मणिशंकर अय्यर, अभिषेक मनु सिंघवी को तरजीह दी जाती थी , उसी तरह अब कांग्रेस में हिन्दू नेताओं को उभारा जाएगा , जो हिन्दू हितों की बात करेंगे |
शायद कांग्रेस में भी लोग इतनी बारीकी से नहीं जानते कि राहुल गांधी को परिष्कृत करने की जिम्मेदारी सिम पित्रोदा ने सम्भाली है | उन्हें 2019 के लिए तैयार किया जा रहा है , गुजरात में इस की रिहर्सल हुई है | 2014 के लोकसभा चुनाव ने यह तय कर दिया था कि अल्पसंख्यकवाद की राजनीति के सहारे कांग्रेस कभी सत्ता में नहीं आ सकती , इस लिए कांग्रेस पर लगा अल्पसंख्यकवाद का ठप्पा हटाने की रणनीति बनाई गई थी | इस के लिए गुजरात की हिन्दू परम्पराओं और धार्मिक संस्कृति से भली भांति परिचित पडौसी राज्य राजस्थान मूल के अशोक गहलोत को कांग्रेस का महासचिव बना कर गुजरात का प्रभारी बनाया गया था | लेकिन कांग्रेस ने अपने चुनाव अभियान के तहत इस बात का भी ध्यान रखा कि अल्पसंख्यक भी कांग्रेस के साथ बने रहें | इसीलिए चुनाव की सारी रणनीति गैर गुजराती कांग्रेसी नेताओं के हाथ में थी | चुनावों के आखिर में अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बनाने का पोस्टर भी इसी रणनीति का हिस्सा था | कांग्रेस ने जातिवाद को उभारने का भी सफल प्रयोग किया | कांग्रेस के बड़े नेताओं का हार जाना, इस के बावजूद कांग्रेस की सीटें बढना और नए उभरे जातिवादी नेताओं जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर का जीतना इस का सबूत है | कांग्रेस ने इस तरह का जाल बुना था कि सवा फीसदी वोट बढ़ने के बावजूद भाजपा की 15 सीटें घट गई |
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