नई दिल्ली: बीजेपी के सहयोगी दल मंत्रिमंडल में फेरबदल में अपनी अनदेखी से मायूस हैं. मोदी मंत्रिमंडल के पूरे कामकाज पर सहयोगी शिवसेना ने तीखा हमला किया. मुख्यपत्र सामना में लिखा गया, "मोदी सरकार ने तीन साल पूरे कर लिए लेकिन मंत्रिमंडल में प्रयोग अब भी जारी हैं. लोग अब भी अच्छे दिनों के चमत्कार की राह देख रहे हैं. बिहार, असम, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, जैसे राज्यों में बाढ़ की तबाही है और सरकारी अस्पतालों में मौतें ख़त्म नहीं हो रहीं. किस मंत्रालय ने कौन सी समस्या हल कर दी?"
ये उम्मीद जदयू को भी थी कि उसे फेरबदल में जगह मिलेगी. रविवार को जेडीयू महासचिव ने ये उम्मीद जता भी दी थी जब उन्होंने एक चेनेल से कहा था, "नीतिश सरकार में बीजेपी की सम्मानजनक हिस्सेदारी के बाद बिहार के लोगों को उम्मीद थी कि जेडी-यू के प्रतिनिधि भी मोदी सरकार में शामिल होंगे, लेकिन ये विस्तार सिर्फ बीजेपी तक ही सीमित रहा".
हालांकि सोमवार को नीतीश कुमार ने खट्टे अंगूर कौन खाए के अंदाज़ में इसे ग़लत बताया. नीतिश ने पटना में कहा, "इसकी (मोदी सरकार में शामिल होने की) कोई बात ही नहीं थी. ये अपने आप से बात चली जिसका कोई आधार ही नहीं है".
इस फेरबदल की वजह से कम से कम अपने सबसे पुराने और सबसे नए दो सहयोगियों के साथ बीजेपी के रिश्ते बदल गए हैं- ये दिख रहा है. अब प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष की चुनौती इन दलों को समझाबुझा कर अपने साथ बनाए रखने की होगी.
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इन सबके बीच साफ़-सफ़ाई भी जारी है और कर्मकांड भी. सोमवार को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री बनाए गए अश्विनी चौबे ने निर्माण भवन में स्वास्थ्य मंत्रालय में अपने नए दफ्तर में पहुंचते ही सबसे पहले भगवान की ही नहीं, कुर्सी-टेबल दफ़्तर सबकी पूजा की.
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