अजय सेतिया / हमारी सेना का एक कर्नल पिछले नौ सालों से जेल काट रहा था | सुप्रीमकोर्ट ने सोमवार को लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित प्रसाद श्रीकांत को जमानत दी | इसी सुप्रीमकोर्ट ने 2015 में मकोका हटाते हुए कहा था कि उस के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं है , इस लिए जमानत पर विचार किया जाना चाहिए | उसे क्यों फंसाया गया ? यह कोई नहीं जानता | यूपीए सरकार के दिनों की यह घटना है | उसे बिना चार्जशीट जेल में रखने के लिए उस पर मकोका लगा दिया गया था | 2015 में एनआईए एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) मकोका को जारी रखने का कोई ठोस प्रमाण सुप्रीम कोर्ट के सामने नहीं रख सकी थी | इस लिए सुप्रीमकोर्ट ने मकोका हटा दिया था , इस के बावजूद उसे जमानत मिलने में दो साल से ज्यादा लग गए क्योंकि सुप्रीमकोर्ट के कहने के बावजूद एनआईए इस बात पर अडी हुई थी कि उस के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं | सबूत की छोड़िए, उनके खिलाफ चार्जशीट तक दाखिल नहीं कर पाई थी | पिछले महीने चार्जशीट दाखिल की थी, अब जमानत देते हुए सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि पहले दाखिल एटीएस की चार्जशीट और अनआईए की चार्जशीट में जमीन आसमान का फर्क है | अदालत ने जमानत की दूसरी वजह 9 साल तक बिना चार्जशीट के जेल में रखना बताया , जबकि जिस अपराध के नाम पर गिरफ्तार किया था, उसकी सजा ही सात साल होती |
इसकी क्या वजह हो सकती है कि पहले चार्जशीट पेश करने से बचने के लिए मकोका लगाया गया और बाद में भी सरकार और जांच एजेंसियां कुछ बताने की बजाय चुप्पी साधे हुए हैं । क्या इसके पीछे कोई बड़ा षड्यंत्र है ? कुछ दस्तावेज इसकी ओर संकेत भी कर रहे हैं | खैर, उस बात की चर्चा करने से पहले यह जानना उचित रहेगा कि लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को आखिर फंसाया क्यों गया ? सेना ने अपनी छानबीन में कर्नल पुरोहित को बेकसूर पाया है, इस लिए सेना ने आज तक उसे निलंबित नहीं किया , अलबत्ता पूरा वेतन भी दिया जा रहा है | यह रहस्य की बात है कि पहले यूपीए सरकार और बाद में एनडीए सरकार ने भी सेना से यह जानने की कोशिश नहीं की कि ले.कर्नल पुरोहित को किस आधार पर वेतन दिया जा रहा है ? अगर एनडीए सरकार ने यह जानना जरुरी नहीं समझा, तो पिछले तीन साल में एनडीए सरकार ने भी कर्नल पुरोहित के साथ न्याय क्यों नहीं किया था | जब कि कर्नल पुरोहित ने नरेंद्र मोदी को उन के प्रधानमंत्री बनाने के कुछ घंटों के भीतर 31 मई 2014 को विस्तृत चिठ्ठी लिख कर सारे घटनाक्रम का ब्योरा दिया था |
सीएसडीएस की वरिष्ठ शोधार्थी मधु किश्वर ने उस मुद्दे पर अच्छी खासी छानबीन की थी | उन्होंने अपनी जांच में लिखा था कि ले.कर्नल पुरोहित के सीने में कई राज हैं | उनमें कुछ राज़ ऐसे हैं जो देश के कई कद्दावर नेताओं को बेनकाब कर सकते हैं और उन नेताओं की घटिया राजनीति की पोल खोल सकते हैं | ये सारी जानकारी ले.कर्नल पुरोहित ने अपने कामकाज के दौरान हासिल की है | दरअसल, पुरोहित सेना के खुफिया विभाग में एक मिशन के तहत काम कर रहे थे | उस दौरान देश में सक्रिय कई धार्मिक संगठनों में उन्होंने अपनी पैठ बना ली थी | वहां से मिलने वाली सूचना वे लगातार सरकार को भेज रहे थे | ‘इसी दौरान उन्हें पता चला कि जाली नोटों के व्यापार में देश के कुछ बड़े नेता भी शामिल हैं | यदि यह बात सार्वजनिक हो जाती तो कई नेताओं का राजनीतिक जीवन बर्बाद हो जाता, क्योंकि मामला सीधा देशद्रोह का बनता | इससे बचने का एक ही रास्ता था कि ले.कर्नल पुरोहित को रास्ते से हटाया जाए | ‘रॉ’ के पूर्व अधिकारी आरएसएन. सिंह की बात पर गौर किया जाए तो पूरी तस्वीर साफ हो जाती है। उन्होंने अपने एक लेख में लिखा था कि देश में मौजूद सांप्रदायिक ताने-बाने को कमजोर करने और धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण करने के लिए एक व्यूह रचना की गई | ऐसा करने के पीछे एक ही वजह थी- ‘वोट बैंक की राजनीति |’ उसी के तहत ‘जेहादी आतंक’ की तर्ज पर ‘हिन्दू आतंक’ का तानाबाना बुना गया’|
ले.कर्नल पुरोहित की गिरफ्तारी के जरिए हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी को साबित करने की साजिश रची गई | कर्नल पुरोहित के जरिए इसे सहजता से सिद्ध किया जा सकता था, क्योंकि अपने मिशन के दौरान उनका संपर्क हिन्दू संगठनों से भी था | इसी रणनीति के तहत उन्हें चुना गया | इस तरह हिन्दू आतंक की मौजूदगी भी साबित हो गई और देशद्रोही नेताओं का भविष्य भी सुरक्षित रह गया | लेकिन, पूरे खेल में जिस तरह का घिनौना षड्यंत्र रचा गया, वह खासा चौंकाने वाला है | चकित करने वाली बात तो यूपीए सरकार की भूमिका भी है, क्योंकि उसी की देख-रेख में पूरी साजिश रची गई | इसके प्रमाण मौजूद हैं | पहला प्रमाण ले.कर्नल श्रीकांत पुरोहित की चिठ्ठी है | ले.कर्नल पुरोहित प्रसाद श्रीकांत ने 31 मई, 2014 को प्रधानमंत्री के नाम चिट्ठी लिखी थी | 18 पेज की उस चिट्ठी में पूरी घटना का सिलसिलेवार जिक्र है | चिट्ठी में लिखा है कि एटीएस ने उन्हें मालेगांव बम विस्फोट में एक षड्यंत्र के तहत फंसाया है | जब बम विस्फोट हुआ, तब वे पंचमढ़ी (मध्य प्रदेश) में अरबी भाषा सीखने के लिए सेना के प्रशिक्षण स्कूल आए थे | इसी दौरान 24 अक्टूबर, 2008 को कर्नल आरके. श्रीवास्तव को सेना ने पंचमढ़ी भेजा | सेना ने श्रीवास्तव को आदेश दिया कि वह ले.कर्नल पुरोहित को मुंबई लेकर जाएं ताकि महाराष्ट्र एटीएस उनसे बम विस्फोट के बारे में पूछताछ कर सके | कर्नल श्रीवास्तव से कहा गया था कि ले.कर्नल पुरोहित को मुंबई ले जाने से पहले दिल्ली स्थित सेना मुख्यालय लाया जाए | यही वजह थी कि ले.कर्नल पुरोहित को दिल्ली जाने का मूवमेंट ऑर्डर मिला | यह आदेश मिलते ही उनसे मोबाइल फोन जमा करने के लिए कहा गया | यह सुनकर पुरोहित चकित हुए, लेकिन कर्नल श्रीवास्तव का आदेश था | सेना की मर्यादा को देखते हुए वे नकार नहीं सकते थे | फोन जमा करने के बाद पुरोहित कर्नल श्रीवास्तव के साथ नई दिल्ली मुख्यालय के लिए रवाना हुए, क्योंकि उनके पास मूवमेंट ऑर्डर नई दिल्ली जाने का था |
यहां मूवमेंट आर्डर को अच्छी तरह समझना जरूरी है, क्योंकि यह एक अहम दस्तावेज है | इसे तब जारी किया जाता है, जब सेना का कोई अधिकारी अस्थाई रूप से अपने ड्यूटी स्टेशन से बाहर रहता है | सेना में मूवमेंट ऑर्डर का उल्लंघन अपराध है | यह अपराध कर्नल श्रीवास्तव ने किया, क्योंकि वे ले.कर्नल पुरोहित को पहले दिल्ली लेकर नहीं आए, जैसा कि आदेश था। कर्नल श्रीवास्तव आश्चर्यजनक तरीके से ले. कर्नल पुरोहित को दिल्ली में सेना मुख्यालय ले जाने की बजाए सीधे मुंबई ले गए और 29 अक्टूबर 2008 को महाराष्ट्र एटीएस के हवाले कर दिया | एटीएस उन्हें खंडाला लेकर गई, जहां उन्हें 4 नवबंर, 2008 तक अवैध तरीके से एक बंगले में हिरासत में रखा गया | 5 नवंबर, 2008 को एटीएस ने उनकी औपचारिक गिरफ्तारी की घोषणा की | इस दौरान यानी 29 अक्टूबर से 5 नवंबर, 2008 तक उनकी गिनती लापता लोगों में हो रही थी, क्योंकि तब पुरोहित के बारे में किसी के पास कोई जानकारी नहीं थी | ले.कर्नल पुरोहित के अनुसार इस दौरान किसी से संपर्क करना उनके लिए संभव नहीं था, क्योंकि उनका गंतव्य बदल दिया गया और इसकी सूचना दिल्ली नहीं भेजी गई। वे चिट्ठी में बताते हैं कि इसके पीछे गहरी साजिश थी। खंडवा में उन्हें खूब प्रताड़ित किया गया। इस बात के लिए दबाव बनाया गया कि वे मालेगांव बम विस्फोट की जिम्मेदारी लें। यदि ऐसा नहीं करेंगे तो उनकी बहन, पत्नी और मां को उनके सामने निर्वस्त्र किया जाएगा। एटीएस ने इसे अंतिम हथकंड़े के रूप में अपनाया। इसके बावजूद पुरोहित नहीं टूटे | वे किसी भी कीमत पर झूठे आरोप को स्वीकारने को तैयार नहीं थे | दस्तावेजों के अनुसार इतने के बाद महाराष्ट्र एटीएस ने गवाह तैयार करने की साजिश रची | इसके लिए कैप्टन नितिन दात्रे जोशी और सुधाकर चतुर्वेदी को निशाना बनाया गया | कैप्टन से बयान बंदूक की नोक पर दिलवाया गया और सुधाकर के घर साक्ष्य रखवाए गए | दोनों बातें सामने आ चुकी हैं |
कैप्टन नितिन दात्रे जोशी उन गवाहों में एक हैं, जिनकी गवाही के आधार पर ले.कर्नल पुरोहित को आरोपी बनाया गया | बाद में वे अपने बयान से पलट गए | उन्होंने एटीएस पर आरोप लगाया कि ले.कर्नल पुरोहित को फंसाने के लिए उनसे जबरन बयान दिलवाया गया था | इस बाबत 5 सितंबर, 2009 को कैप्टन जोशी ने एमएसएचआरसी में शिकायत भेजी | उसमें जो दावा किया गया है, वह पुरोहित की बेगुनाही और महाराष्ट्र एटीएस की साजिश को उजागर करती है | बात 12 नवंबर, 2008 की है | नितिन दात्रे जोशी को काला चौकी पुलिस स्टेशन पर लाया गया। यह मुंबई एटीएस का कार्यालय है। जब जोशी वहां पहुंचे तो एटीएस अधिकारी दिलीप श्रीराव मौजूद थे | उन्होंने जोशी से कहा कि तुम ऐसा बयान दो, जिससे कर्नल पुरोहित को मालेगांव बम विस्फोट का आरोपी बनाया जा सके | यदि तुमने ऐसा नहीं किया तो मानकर चलो कि तुम्हें 15 साल तक जेल में सड़ना पड़ेगा | एटीएस जोशी को वहां लेकर गई, जहां ले.कर्नल पुरोहित को रखा गया था | यह सब देखने-सुनने के बाद कैप्टन जोशी सहम गए। उन्होंने एटीएस की बात मान ली | इसके बाद एटीएस अधिकारी मोहन कुलकर्णी ने कैप्टन जोशी का बयान खुद बोलकर लिखवाया। वह बयान इस प्रकार है- ‘ले.कर्नल पुरोहित ने उन्हें 2006 में कुछ हथियार अपने घर में रखने के लिए दिया। जोशी ने पुरोहित के घर में आरडीएक्स देखा। ले.कर्नल पुरोहित ने कैप्टन जोशी को बताया कि समझौता एक्सप्रेस में बम विस्फोट के लिए आरडीएक्स उन्होंने ही भेजा था |’ कैप्टन जोशी के बयान को दिलीप श्रीराव ने एटीएस के मुखिया हेमंत करकरे की सलाह पर अंतिम रूप दिया | एमएसएचआरसी की भेजी गई शिकायत में कैप्टन जोशी आगे लिखते हैं, ‘उन्हें कोर्ट के सामने पेश किए जाने से पहले एटीएस अधिकारी मोहन कुलकर्णी ने उन्हें धमकाया | साथ ही गोली से भरी पिस्तौल दिखाई और कहा कि यदि तुमने कोर्ट में अपना बयान बदला तो तुम्हारे सिर में एक गोली उतार दी जाएगी |’ डर के इस माहौल में कैप्टन जोशी ने कोर्ट में वही कहा जो एटीएस चाहती थी |
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