मुद्दा अब कश्मीर की आज़ादी का नहीं , इस्लाम का शासन लागू करने का हो गया है | रास्ते में आने वाले कश्मीरी मुसलमानों को भी मारा जा रहा ,भले ही वह सेना का अधिकारी लेफ्टिनेंट उमर फयाज हो या डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित हो | पीडीपी- भाजपा सरकार फेल हो गई है ,कश्मीर फिर राष्ट्रपति राज की ओर बढ़ रहा है |
अजय सेतिया /अब किसी को यह मानने में संकोच नहीं होना चाहिए कि जम्मू कश्मीर के पांच जिले मुस्लिम कट्टरपंथ का शिकार हो चुके हैं | हालांकि यह कहने की जरूरत नहीं कि कश्मीर भारत के हाथ से निकल चुका है, जैसा कि पी.चिदम्बरम और मणिशंकर अय्यर ने कहा है | इन हालातों की बुनियाद तो 1984 से 1989 के बीच में रखी गई थी , जब जगमोहन जम्मू कश्मीर के राज्यपाल और राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे | इन्हीं पांच सालों में जम्मू कश्मीर में आतंकवाद पनपा और फला फूला | इसी समय में राजीव गांधी ने जम्मू कश्मीर में निकृष्ट किस्म की राजनीति के कई प्रयोग किए , फारूक अब्दुल्ला को अपदस्थ कर के जीएम शाह को मुख्मंत्री बनाया गया और बाद में फारूक अब्दुल्ला से समझौता कर के उन्हें दुबारा सत्ता सौंप दी गई | इसी अस्थिरता ने आतंकवादियों को पाँव जमाने का मौक़ा मिला | इतना क्या कम था कि 1987 में फर्जी चुनाव करवा कर फारूक अब्दुल्ला को जम्मू कश्मीर पट थोंपा गया | वीपी सिंह के राज में गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया का अपहरण होने के बाद फारूक अब्दुला के विरोध को दरकिनार कर जगमोहन को दुबारा जम्मू कश्मीर का राज्यपाल नियुक्त किया | 19 जनवरी 1990 को जिस दिन जगमोहन के पद ग्रहण किया उस रात को मस्जिदों के लाउड स्पीकरों से हिन्दुओं को घाटी से निकल जाने के आदेश दिए जाने शुरू हो गए | अर्ध्सेनिक बलों ने उसी रात हथियारों की बरामदगी के लिए श्रीनगर में छापेमारी शुरू कर के सैंकड़ों लोग गिरफ्तार कर लिए |
विरोध जताने के लिए मुसलमानों ने प्रदर्शन किया तो अर्धसैनिक बलों ने उन पर ग्वाकदल पुल पर फायरिंग कर दी, जिस में 50 प्रदर्शनकारी मारे गए | केंद्र सरकार को कमजोर करने के लिए फारूक अब्दुल्ला ने इस्तीफा दे दिया , इस के साथ ही राज्यपाल शासन और स्पेशल पावर एक्ट लागू करना पडा | जो महबूबा मुफ्ती स्पेशल एक्ट का विरोध करती हैं, वह उन्हीं के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की दें है | कश्मीरियों का मानना है कि 50 प्रदर्शनकारियों के मारे जाने की घटना ने कश्मीर में भारत का केस बिगाड़ दिया | | यही वह नाजुक समय था , जब पाक प्रायोजित आतंकवाद से मुकाबला करने के लिए कश्मीरी मुसलमानों को विशवास में लेने के प्रयास किए जाने चाहिए थे | कश्मीरी पंडितों और मुअजिज कश्मीरी मुसलमानों की बैठकें करवा कर हिन्दू मुस्लिम एकता को बनाए रखने की अपीलें जारी करवाई जानी चाहिए थी | लेकिन कश्मीरी मुसलमानों के घरों में छापेमारी ग्वाकदल की घटना ने हालात बिगाड़ दिए | राज्यपाल जगमोहन की तब की भूमिका को लेकर लोगों की अलग अलग धारणाएं हैं , कश्मीरी पंडितों का कहना है कि उन्होंने हिन्दुओं को सुरक्षित निकाल कर अच्छा काम किया | जबकि कुछ लोगों का कहना है कि जगमोहन ने कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा प्रदान करने की बजाए उन्हें वहां से निकाल कर संविधान विरोधी और कश्मीर को मुस्लिम कट्टरपंथियों के हवाले करने में मदद की |
27 साल बाद अब स्थिति पूरी तरह बिगड़ चुकी है | कश्मीर के दो बड़े राजनीतिक दल नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी समय समय पर अपने राजनीतिक हितों के लिए आतंकवादियों का समर्थन करते हैं | कश्मीरी मुसलमानों को भड़काने के लिए दोनों ही दलों ने समय समय पर भारतीय सेना के खिलाफ बयानबाजी की है | इन दोनों दलों ने कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानने वाली हुर्रियत कांफ्रेंस और आतंकवादियों को समर्थन दे कर 80 फीसदी कश्मीरी मुसलमानों को भारत के खिलाफ कर दिया है | जिस से पाकिस्तान का काम बहुत आसान हो गया है | अब घाटी के मुसलमान पाकिस्तान से आने वाले आतंकवादियों को अपना मसीहा समझते हैं और मुठभेड़ों के समय उनका बचाव करने के लिए सेना पर पत्थराव करते हैं | अब न तो कश्मीर की स्वायत्तता की लड़ाई है, न कश्मीर में जनमत संग्रह की लड़ाई है, न कश्मीर की आज़ादी की लड़ाई है , अब तो कश्मीर को भारत के सेक्यूलर संविधान से मुक्ति दिला कर शरियत के आधार पर राज्य स्थापित करने की लड़ाई लड़ी जा रही है | उन के रास्ते में आने वाले कश्मीरी मुसलमानों को भी मारा जा रहा ,भले ही वह सेना का अधिकारी लेफ्टिनेंट उमर फयाज हो, या राज्य पुलिस में डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित हो |
भाजपा ने पीडीपी से सरकार बनाते समय साझा कार्यक्रम में सभी स्टेक होल्डर्स से बातचीत का रास्ता खुला छोड़ा हुआ है | भाजपा का साफ़ मत है कि राज्य सरकार चाहे तो राज्य में शान्ति बहाली के लिए हुर्रियत या जिस से चाहे बात करे | लेकिन सवाल यह है कि क्या कोई ऐसा रास्ता निकल सकता है कि घाटी के पाच जिलों के पाकिस्तान से प्रभावित मुस्लिम नेताओं से उन के आक्रोश का कारण पूछ कर समाधान निकाला जा सके | हाल ही के भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच में पाकिस्तान की जीत के बाद जिस तरह घाटी के पांच जिलों में जश्न मनाया गया, उस ने इन सम्भावनाओं को पूरी तरह नकार दिया है | घाटी के इन पांच जिलों में सेक्यूलरिज्म की पुनर्स्थापना असंभव हो गई है | पीडीपी की मुख्यमंत्री बार बार बातचीत करने की बात तो कहती हैं , लेकिन उन्होंने शासन के साझा घोषणापत्र में रखे गए बातचीत के विकल्प पर खुद इस्तेमाल नहीं किया , क्योंकि हुर्रियत कान्फ्रेंस और अन्य अलगाववादी संगठन किसी तरह की बातचीत करना ही नहीं चाहते | पीडीपी-भाजपा सरकार देशभक्त कश्मीरी मुसलमानों की सुरक्षा में विफल हो गई है |
मौजूदा मोदी सरकार शुरू से ही मानती कि हुर्रियत नेताओं से बात करने का कोई लाभ नहीं है | मोदी सरकार का तर्क है कि इंद्र कुमार गुजराल ,नरसिंह राव और अटल बिहारी वाजपेयी ने हुर्रियत नेताओं से बातचीत शुरू कर के कश्मीर समस्या को सुलझाने की बहुत कोशिश की थी | मनमोहन सिंह के दस साल कश्मीर के हालात संभालने के लिए बहुत महत्वपूर्ण थे , लेकिन पाकिस्तान ने पहले अटल बिहारी वाजपेयी और बाद में मनमोहन सिंह को 15 साल बातों में उलझाए रखा | सीधी बातचीत भी हो रही थी और अनेक गैर राजनीतिज्ञों को ट्रेक-टू बातचीत में भी लगाया गया था | इस के बावजूद बातचीत कभी समाधान की तरफ नहीं मुडी क्योंकि पाकिस्तान और कट्टरपंथियों के दबाव में हुर्रियत नेता कश्मीरियत की बात छोड़ कर धीरे धीरे इस्लाम की ओर मुड़ चुके है | इस लिए 25 साल बाद पहली बार केंद्र सरकार ने हुर्रियत नेताओं से बातचीत के दरवाजे पूरी तरह बंद कर के उन के आर्थिक स्रोतों पर हमला बोला है | पाकिस्तान को भी स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि अगर वह हुर्रियत या किसी अन्य को बीच में लाएगा, तो कोई बातचीत नहीं होगी | दो बार तो भारत-पाक बातचीत सिर्फ इस लिए नहीं हुई क्योंकि बातचीत शुरू होने से ठीक पहले पाकिस्तान उच्चायोग में हुर्रियत नेताओं को बुला लिया गया था | तीन साल का इन्तजार करने के बाद मोदी सरकार ने कश्मीर में सेना को खुली छूट दे दी है, जो आने वाले समय में और बढ़ेगी | अगर इस में पीडीपी बाधा बनी, तो भाजपा साझा सरकार की बलि देने से भी हिचकिचाहट नहीं करेगी | धीरे धीरे कश्मीर उसी तरफ बढ़ रहा है, यानि राष्ट्रपति राज की तरफ |
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