संसदीय प्रणाली पर चोट करने का स्टिंग ऑपरेशन

Publsihed: 25.Nov.2006, 20:40

देश बड़ी बेसब्री से ग्यारह सांसदों की बर्खास्तगी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहा है। तेरह जनवरी को चीफ जस्टिस वाई के सभ्रवाल रिटायर हो जाएंगे। उससे पहले फैसला आना स्वाभाविक है। लेकिन माना यह जाना चाहिए कि 15 दिसम्बर को सुप्रीम कोर्ट की छुट्टियों से पहले फैसला आना चाहिए। वैसे अगर फैसला शीत सत्र से पहले या शीत सत्र के दौरान आ जाता, तो अच्छा रहता। पिछले एक साल से लोकसभा के दस सांसदों ने सदन का मुंह नहीं देखा। सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी सांसदों के क्षेत्रों में चुनाव करवाने पर भी रोक लगा दी थी। मेरा शुरू से यह मत रहा है कि संसद को संविधान के किसी प्रावधान में सांसदों को बर्खास्त करने का हक नहीं दिया।

मेरा यह भी मानना रहा है कि संसद सर्वोच्च नहीं है, अलबता संविधान सर्वोच्च है, इसलिए संसद को संविधान के तहत मिले अधिकारों के तहत काम करना चाहिए। लेकिन लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी ने उस समय सांसदों को बर्खास्त करवाने के लिए एक्टीविस्ट की भूमिका निभाई। पिछले दिनों एक संसदीय प्रतिनिधि मंडल कुछ देशों के दौर पर गया था। इस प्रतिनिधिमंडल में लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी के साथ प्रियरंजन दासमुंशी और विजय कुमार मल्होत्रा भी थे। जिस देश में भी यह प्रतिनिधि मंडल गया, मल्होत्रा ने वहां एक सवाल जरूर उठाया कि वहां की संसद को अपने सांसदों को बर्खास्त करने का हक है या नहीं। हर जगह से करीब करीब यह जवाब मिला कि भ्रष्टाचार या अन्य मामलों में फैसला अदालतों में होता हैं, संसद अदालत नहीं बनती। विजय कुमार मल्होत्रा यह सवाल जानबूझकर उठा रहे थे और हर जवाब के बाद प्रियरंजन दासमुंशी और सोमनाथ चटर्जी के सिर झुक जाते थे। दासमुंशी भले ही जल्दबाजी में की गई गलती का एहसास कर रहे हो, लेकिन मेरा पक्का मानना है कि सोमनाथ चटर्जी को यह एहसास कतई नहीं, अलबता मेरा यह भी मानना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि संसद को सांसदों को बर्खास्त करने का हक नहीं था, तो सोमनाथ चटर्जी इस फैसले का विरोध करेंगे। सोमनाथ चटर्जी इससे पहले झारखंड के राज्यपाल सिबते रजी की ओर से बहुमत न होने के बावजूद शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने और उन्हें बहुमत साबित करने के लिए महीने भर का समय देने पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार का विरोध कर चुके हैं। लेकिन इससे भी अहम सवाल यह कि क्या स्टिंग ऑपरेशनों को इसी तरह होने देना चाहिए और स्टिंग ऑपरेशनों के मुद्दे पर कोई कानून कायदा नहीं बनाया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने ग्यारह सांसदों की बर्खास्तगी पर सुनवाई करते समय एक अहम टिप्पणी की है। यह टिप्पणी गौर करने लायक है। इस टिप्पणी में उन्होंने कहा है कि अगर कोई स्टिंग ऑपरेशन मुनाफा कमाने के लिए किया जा रहा हो, तो उसे जर्नलिज्म के नाम पर छूट नहीं दी जा सकती। पाठकों को याद होगा कि अनिरूद्ध बहल ने बंसल कमेटी के सामने यह कबूल किया था कि उसने आज तक को अपना स्टिंग ऑपरेशन 57 लाख रूपए में बेचा था, यानी वह स्टिंग ऑपरेशन मुनाफे के लिए था। अगर हर स्टिंग ऑपरेशन को टीवी पर दिखाए जाने को ही सही मान लिया जाए और आरोपी को जिरह करने और अपनी बेगुनाही साबित करने का मौका नहीं दिया जाना है, तो सवाल पैदा होगा कि गृह राज्य मंत्री गोवित को तो उसी समय बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए था, जिसे जी टीवी ने माफिया डॉन के साथ बातचीत करता हुआ सुनाया था। लेकिन गोवित के मामले में न तो सरकार उतनी सक्रिय दिखी, न लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी। लेकिन 57 लाख रूपए का मुनाफा कमाने के बाद अनिरूद्ध बहल के हौंसले ज्यादा बुलंद हो चुके हैं और अब नक्सलवादियों और वामपंथियों का संसदीय प्रणाली तहस नहस करने का मकसद पूरा करने की कोशिशें तेज हो गई हैं। संसदीय प्रणाली को ध्वस्त करने के लिए बड़ा आसान सा तरीका है कि सांसदों की छवि धूमल कर दी जाए। लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी इस तरह के किसी स्टिंग ऑपरेशन में शामिल है या नहीं, लेकिन यह सच है कि वह हमेशा भ्रष्टाचार को बेनकाब करने के लिए स्टिंग ऑपरेशनों के पक्ष में रहे हैं। भ्रष्टाचार को बेनकाब करने के लिए हर कोई स्टिंग ऑपरेशन का समर्थन ही करेगा, लेकिन इसकी आड़ में संसदीय प्रणाली को निशाना बनाया जा रहा हो, तो देश को उससे सावधान रहने की जरूरत है। संसद में सवाल पूछने के मुद्दे पर ऑपरेशन करने वाली सुहासिनी अब इस ऑपरेशन में जुट चुकी हैं। सूचना के अधिकार के तहत लोकसभा सचिवालय ने 180 सांसदों की जायदाद का बयोरा कोबरा डॉट काम को सौंप दिया है। अब इन 180 सांसदों की ओर से लोकसभा में दिए गए जायदाद के बयोरे, चुनाव आयोग को चुनाव लड़ने से पहले दिए गए बयोरे और उन सांसदों के क्षेत्रों में उनकी जायदाद, उनकी रिश्तेदारों की जायदाद के स्टिंग ऑपरेशन शुरू हो चुके हैं। हालांकि स्थिति फिर वही होगी कि स्टिंग ऑपरेशन के दावे कितने सच्चे हैं, उसकी जांच कौन करेगा, न्यायपालिका या स्पीकर की बनाई हुई बंसल कमेटी। जांच अदालत में हो या किसी बंसल कमेटी की ओर से, लेकिन करीब डेढ़ सौ सांसदों की छवि बिगाड़ने का मतलब संसदीय प्रणाली से जनता का मोह भंग करना है, जिसमें यह स्टिंग ऑपरेशन आसानी से कामयाब हो जाएगा। भारत की संसदीय प्रणाली और लोकतंत्र को दांव पर लगाने के लिए सिर्फ स्टिंग ऑपरेशन नहीं किए जा रहे, अलबता बड़ी धीमी गति से, लेकिन सोची समझी योजना के तहत माओवादी नक्सलियों के जरिए भारत में घुस रहे हैं। मौजूदा व्यवस्था को ध्वस्त करके जिस तरह नेपाल में चीन के माओवादियों ने अपना मकसद हासिल किया है, बिलकुल वैसे ही भारत में तैयारी हो रही है और इस तैयारी में भारत के वामपंथी भी बराबर के हिस्सेदार हैं। पहले भी किसी स्टिंग ऑपरेशन में वामपंथियों और उनके सहयोगियों को शामिल नहीं किया गया और अब भी नहीं किया जाएगा। राजनेताओं ने सता का दुरूपयोग करके आपार संपति जोड़ी हैं, इनमें कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के सांसद शामिल हैं और इन दोनों दलों के सांसदों को बेनकाब करके संसदीय प्रणाली पर चोट करने की रणनीति बन चुकी है।

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