श्रद्धा चतुर्वेदी की रिपोर्ट ( उन की फेसबुक वाल से ) | आज मैं हरियाणा रेवाड़ी की उन लड़कियों के लिए बहुत खुश हूं, जिन्होंने अपने शिक्षा के अधिकार को लड़कर जीता है। यह बच्चियां पिछले आठ दिनों से हड़ताल पर थी। इन बच्चियों का कहना था कि जब ये स्कूल पढ़ने जाती हैं, तो कुछ मनचले इन्हें रोज परेशान किया करते हैं। कई बार शिकायत करने पर भी इनकी इस समस्या को प्रशासन द्वारा नजरअंदाज किया गया। आखिर तंग आकर इन्होंने अनशन करने का फैसला लिया। इनकी मांग थी कि स्कूल को दुरुस्त किया जाए और अपग्रेड करके 10 वीं से 12 वीं तक किया जाए।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि रेवाड़ी वही जगह है जहां से पीएम मोदी ने 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' की मुहिम शुरु की थी। यह योजना कितनी सफल हुयी है, इसको बताने की जरुरत अब मैं नही समझती हूं। क्योंकि रेवाडी का यह घटना खुद-ब-खुद इसके आंकड़े पेश कर रही है, वो भी तब जब राज्य में भी भाजपा की ही सरकार है।
सवाल यह है कि क्या वाकई सरकार नारी अधिकारों को लेकर जो बातें करती आई है उस पर अमल करती है? जब भूखे-पेट छोटी बच्चियों की आवाज 8 दिन बाद सुनायी दे तो इस पर क्या कहा जाये...
मैं इन लडकियों के जज्बे को सलाम करती हूं जिन्होंने अपनी इस जंग को अपने तरीके से जीतकर दिखाया है। और समाज को यह संदेश दिया है कि जब नारी अपने हक के लिये लड़ती है तो उसे पाकर ही रहती है। इन बच्चियों ने देश की बीमार पड़ी शिक्षा व्यवस्था के भी कई राज खोलें हैं।
रेवाडी केवल अकेली ऐसी जगह नहीं है। जहां पर यह सब हुआ है। याद करिए उत्तर प्रदेश, जहाँ पर न जाने कितनी लड़कियों ने मनचलों से तंग आकर स्कूल जाना छोड़ दिया। शायद इन्ही वजहों से वहां की नई सरकार को छेड़खानी रोकने के लिए बेहद सख्त और विवादित कदम उठाने पड़े।
इसके अलावा भी आय दिन अखबार के पन्नों में हमें इस प्रकार की घटनाएं पढ़ने को मिलती ही रहती हैं। जब खुद की सुरक्षा और शिक्षा के लिए नारे लगाना व भूखा रहना पड़ता है।
"क्या ये मेरा देश है, जहां मेरे पढ़ने की आजादी नेता तय करते हैं। मेरे भविष्य के बस्ते को मनचले फाड़ते हैं। स्कूल के रास्ते ठेके खोले जाते हैं, मेरी मांगो पर राजनीति की जाती है।
क्या यही मेरा कल है, क्या मेरे सपनों का कोई मोल नहीं होता।"
यह लाइने समाज के हर वर्ग की लड़की की वो कहानी है, जिसके सपनों के पन्नो को चूल्हे की आग में रोज जलाया जाता है।
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