त्रिभूवन / भारतीय ईवीएम न तो जापान से आयात की गई हैं और न ही किसी योरोपीय देश से। ये भारतीय चुनाव आयोग ने भारत इलेक्ट्रोनिक्स लि. बंगलूर और इलेक्ट्रोनिक्स कार्पोरेशन ऑफ इंडिया हैदराबाद जैसी पब्लिक सेक्टर कंपनियाें के सहयोग से तैयार की थीं।
इसे विकसित करने में सुजाता रंगराजन का भी खूब योगदान रहा है। वे एक प्रसिद्ध एमआइटियन थीं। उन्होंने भारत इलेक्ट्रोनिक्स लि. बैंगलोर साथ खूब किया था और वे ईवीएम विकसित करने वाली टीम का अहम हिस्सा थीं।
यह 1970 और 1980 के बीच का वह दशक था, जब पूरे देश में बूथ कैप्चरिंग का बोलबाला था और बाहुबली मतपेटियां लेकर भाग रहे थे। ईवीएम ऐसे समय में एक बेहतरीन विकल्प बनकर उभरी थीं, जब दलितों, कमज़ोर वर्गों के लोगों को वोट नहीं डालने दिया जाता था या वे वोट डाल देते थे तो ताकतवर जातिबली लोग या तो मतपेटियों में तेज़ाब, स्याही या पानी डाल देते थे या फिर उन्हें ले भागते थे।
यह वह समय था जब बूथ छापने की ख़बरें मीडिया में सुर्खियों में रहा करती थीं। कैमेरे की आंख से देखने वाले साथियों के पास ऐसी तस्वीरों के ढेर हैं, जो भारतीय लोकतंत्र की एक बहुत डरावनी यादों को दिखाते हैं।
उस दौर में जब भारतीय जनमानस गुस्से और निराशा से भरा हुआ था और आपराधिक तत्व विधानसभाअाें और लोकसभा में दस्तक दे रहे थे, एमबी हनीफा ने 1980 में पहली वोटिंग मशीन ईजाद की।
यह वोटिंग मशीन इंटिग्रेटिड सर्किट पर आधारित थी। यह वह भारतीय लोकतंत्र का एक ऐतिहासिक दिन था जब 1982 में केरल के उत्तर पैरावुर विधानसभा क्षेत्र के उप चुनाव में 50 मतदान केंद्रों पर एक साथ ईवीएम इस्तेमाल हुई। इन ईवीएम को तैयार करने में आईआईटी मुंबई के युवा वैज्ञानिकों ने काफी मेहनत की थी।
ईवीएम का प्रयोग पूरे देश को चमत्कारिक लगा था और लोगों ने जगह-जगह मांग की कि उनके यहां चुनाव ईवीएम से ही हों। लेकिन ईवीएम को चुनाव आयोग अभी तक अपना नहीं पाया था। चुनाव आयोग ने इन्हें बड़े पैमाने पर प्रयोग में लेने का फैसला 1989 में उस समय किया जब केंद्र से कांग्रेस विदा हो रही थी और गैरकांग्रेस दल तेजी से उभर रहे थे। वह खंडित जनादेशों का दौर था और जीत-हार में मामूली फर्क हुआ करता था। ऐसे में ईवीएम ने देश को विवादों से बचाने में बहुत मदद की।
लेकिन एक बात और जो सबसे अहम है आज के इको-फ्रेंडली युग में। हमारे देश के हर एक चुनाव में जो बैलेट पेपर लगते थे, उनका वजन दस हजार टन से ज्यादा हुआ करता था। एक अनुमान के अनुसार इतना कागज तब तैयार होता है जब हम एक साथ दो लाख पेड़ काट दें। यानी हम ईवीएम का इस्तेमाल करके दो लाख पेड़ ज़रूर बचाते हैं। हैरानी इस बात की है कि ईवीएम का विरोध वे लोग कर रहे हैं, जो अपने आपको सेक्युलरिज्म और वैज्ञानिकता की बातें करते हैं, लेकिन ईवीएम का समर्थन ऐसी शक्तियां कर रही हैं, जो घोषित रूप से पिछड़ा, कट्टर और धर्मांधतावादी बाना पहन चुकी हैं। प्रश्न ये है कि सही दिशा में कौन जा रहा है? ऐसा लग रहा है कि दोनों तरह के लोग इस युग को आगे ले जाने का नारा तो लगा रहे हैं, लेकिन सच में उनका मुंह जिस तरफ है, दुर्भाग्य से उनके पांव ठीक पीछे की तरफ हैं।
एड़ी और नाक अगर एक सीध में आ जाएं तो मुझे पता नहीं, इसका इलाज ऑर्थाे, करेगा कि न्यूरो या फिर जेनेटिसिस्ट। आप चाहें तो रियूमेटोलाॅजिस्ट के पास जाएं या फिर किसी पैरिनेटोलॉजिस्ट से सलाह मशविरा करें, लेकिन करें अवश्य।
लेकिन इलाज तो ज़रूरी है।
( T R I B H U V A N )
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