मनीष ठाकुर / गुजरात की जनता को अपमानित करने वाले अब यूपी की जनता को साम्प्रदायिक कहेंगे? वो साजिश रचते रहे , नफरत फैलाते रहे ,खुद को पत्रकार कहने वाले। वे इस नफरत फैलाने की कीमत वसूलते थे। आम जन उनकी फर्जी ख़बरों को सत्य मानती रही। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा,भारत की सबसे बड़ी अदालत द्वारा बनाई एसआईटी ने 2013 तक साफ कर दिया कि ज्ञानवीरों की साजिश में दम नहीं है। घटिया स्तर तक जाकर ,दंगा के दौरान, गर्भ से बच्चे निकालकर मारने की एनजीओ और एनडीटीवी व् मीडिया गिरोह की साजिश की कहानी बेपर्दा होने के बाद भी पत्रकारिता का बलात्कार जारी रहा।
सुप्रीम कोर्ट की एसआईटी रिपोर्ट पर आधारित अदालत के फैसले के बाद भी गुजरात की जनता को लगातार ज्ञानवीर अपमानित करते रहे कि वो दंगाई को जिताते है।
ज्ञानवीर कहते रहे भारत , गुजरात नहीं कि मोदी जैसे लोग मान्य हों। लेकिन वह आजाद भारत के वैसे नेता बन गए जिसकी मिसाल नही। ज्ञानवीरों के नफरत और साजिश से वो और मजबूत होते रहे। वो दूसरे क्षेत्रीय नेता की तरह छोटी सोच वाले नहीं थे ,उनके सोच का दायरा वहां से शुरू होता है जहाँ से ज्ञानवीरों की सोच का दायरा ख़त्म।
बनारस को गले लगा कर वह साबित कर गए कि वह दूसरे नेता की तरह राज्य की सीमा से बंधे नहीं हैं। वो प्रचंड बहुमत से प्रधानमंत्री बन गए ,ज्ञानवीर नमक की कीमत अदा करने के नशे में उन्हें अपमानित करते रहे। जिसे नशेड़ी ,गुजरात का कहते थे ,उस अदना सा नेता ने जनता को अपने प्यार में सराबोर कैसे कर दिया कोई जान नहीं पाया।
मुझे लगता है मोदी और शाह को फलदार पेड़ की कहानी के संदेश से हट कर और सख्त होना चाहिए। इसलिए ताकि मोदी लहर में जीत गए ईद्दे पिड्डे औकात में रहे। मोदी को साजिश करने वाले अपने दुश्मनों को भी माफ़ नहीं करना चाहिए। स्वभावतः वे करते भी नहीं हैं।इतिहास गवाह है ऐसी विनम्रता घातक रही है।
आजाद भारत ने पूरे देश को साथ लेकर चलने वाला नेता की कल्पना करना छोड़ दिया था। कोई क्षत्रप अपनी जाति और मुसलमानों के थोक वोट के सौदागर होने की सीमा को तोड़ ही नही पाया । इसलिए क्योंकि यह प्रयोग सफल था और इसके लिये कुछ करने की जरुरत नहीं थी। बस अपने चिन्हित वोटर समुदाय को कानून व्यबस्था में ढील देनी थी और अपने लिए, लूट के राह पर चलना था।
वक्त बदला है। प्रतिक बदला है। सोच बदलना है। आप राजनितिक पंडित होने के अहंकार में रहते है पर अंडर करंट का पता ही नही चलता। या आप भ्रम में जीते रहते हैं, भ्रम फैलाते रहते हैं ! ज्ञान देने और साजिश के धंधे को जारी रखिये। इस बदलाव की ताकत के लिए आपके खेल की अहमियत है। इसी बहाने दिखे तो , कि मीडिया सत्ता के खिलाफ होने के अपने धर्म का पालन कर रही है।
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