रेप ... की धमकियों के बाद #गुरमेहर ने अपना मिशन अधूरा छोड़ दिया ।
वो अपनी पढाई भी अधूरी छोड़ कर पटियाला लौट गई ।
भले ही सब प्रायोजित हो , मगर उतना ही दुखद भी है ।
आखिर क्यों कभी मनोवैज्ञानिकों द्वारा बीमार मानसिकता की देन माना जाने वाला रेप ,कालांतर में हथियार की तरह प्रयोग होने लगा ।
अगर कोई पुरुष आपके विचारों के विपरीत जाता है ,तो उसको जान से मार देना ,और महिला द्वारा आपसे भिन्न विचार रखने पर रेप करने की धमकी ।
ये धमकियाँ किसी भी पक्ष से आ रही हो , उसका प्रायोजक कोई भी हो , फर्क नही पड़ता ।
फ़र्क़ पड़ता है , तो सिर्फ मानसिकता से ।
कल तक तवायफों के कोठे पर हार्मोनिया लेकर बैठने वाले #जावेद_अख्तर जैसे लोग जब #फोगाट बहनों को जाहिल घोषित कर देते है , तो कोई जाकर उनसे सभ्यता का अर्थ नही पूछता ।
हम ने महिलाओं की छवि और उनका व्यक्तित्व सिर्फ उनके स्त्रीयत्व तक ही सीमित कर दिया है । उस दायरे से बाहर पैर निकालते ही हम उन के लिए आपत्तिजनक शब्दो की डिक्शनरी खोल देते है ।
दुःखद ये है कि हमें महिलाओ से कैसे व्यवहार करना चाहिए , ये शशि थरूर जैसे उड़ानछल्ले बताएंगे , जो खुद अपनी पत्नी को स्लो प्वॉइजन देकर मारने के आरोपी है ।
आदिम काल से ही युद्ध में हारने वाले अपनी संपत्ति के साथ अपनी महिलाएं भी गवाते रहे है , विजेताओं के लिए जीते गये छेत्रो की महिलाएं एक बड़ा आकर्षण रही है ।
यहाँ तक कि अकबर जैसे शाषक के हरम में भी हज़ारो महिलाएं रखैल बन कर रहा करती थी ।
सभ्यता के इस दौर में महिला स्वतंत्रता की बात करने वालो से ही महिलाओं को सबसे अधिक खतरा है , लेकिन क्या एक सभ्य समाज का हिस्सा होने के नाते हमारा दायित्व नही की हम इस प्रकार की बातों का पुरजोर विरोध करे ।
गुरमेहर मामले की सच्चाई मुझे पहले से ही पता थी , तो जब गुरमेहर की उसके सरगनाओं के साथ तस्वीरे सामने आने पर मिशन को छोड़ने की स्वीकारोक्ति आई , मुझे कोई आश्चर्य नही हुआ ।
उन लम्पट , नीच वामपंथियों और आपियो की मानसिकता कितनी विकृत हो सकती है ,इसका खुलासा उनके अपने ही समय समय पर करते रहते है ।
कल ही नवभारत टाइम्स ने वामपंथियों द्वारा अपनी कॉमरेड महिला साथियो को दिए गए शर्मनाक निर्देशों को छापा था ।
निश्चय ही ये हमारी संस्कृति का अंग नही है ।महिलाओं को देवी जैसा सम्मान देंने की मैं कोई वकालत नही करता , अगर किसी विरोध प्रदर्शन में वो बराबर की हिस्सेदार है , तो फिर लाठियाँ खाने की जिम्मेदारी भी उनकी बनती है , वो इससे बच नही सकती ।
हाँ मगर इस लठैती में भी ,उनके स्त्रीयत्व को निशाना बनाना गलत होगा ।
महिलाए यदि ये अपेक्षा करती है कि पुरुष उन्हें बहन या बेटी जैसा सम्मान दे , तो प्राथमिक जिम्मेदारी उनकी ही है , उन्हें भी उसी मर्यादित व्यवहार को समाज में स्वीकार करना होगा , जिसे वो अपने पिता या भाई के समक्ष करती है ।
याद रखियेगा बलात्कार सिर्फ एक महिला का नही होता , पूरी सभ्यता का होता है ।
निर्भया कांड के बाद महीनो तक किसी विदेशी महिला टीम ने अपनी खिलाड़ियों को भारत में खेलने तक के लिए नही भेजा था ।
हवा में लहराई गई रेप की धमकियों की गूंज कहाँ तक जाती है , इसका अंदाज लगा पाना इतना भी आसान नही होता है ।
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