ब्रजेश राजपूत,भोपाल ! अच्छा सुनो , अब बस करो। ये पालिटिकल सेशन खत्म और स्पीरिचुअल सेशन शुरू। अब आप सब दो मिनिट कपाल भाति और अनुलोम विलोम करो। और ये कहकर बाबा ने अपना भगवा उत्तरीय कंधे पर डाला, सामने रखे माइक के टेबल को दूर किया और कुर्सी पर ही आलथी पालथी मारकर षुरू हो गये। लंबी लंबी गहरी सांस लेने।
हू,,, हू,,,।
तो ये थे देश के सबसे चर्चित योग गुरू बाबा रामदेव। जो आये तो थे शिवराज सरकार की नर्मदा सेवा यात्रा में शामिल होने मगर सरकार के प्रचार विभाग ने पत्रकार वार्ता बुला ली तो अब पसीना पोंछते हुये पत्रकारों के तमाम तरह के सवालों का वो हंसते ओर फंसते हुये जबाव दे रहे थे। योग कराते कराते उनका व्याख्यान जारी था ये आसन करो तो वो बीमारी नहीं होगी और ये आसन करोगे तो इससे बचे रहोगे। आखिर में उन्होंने पत्रकारों की चिंता कर ही ली मुझे मालुम है आप पत्रकारों को तनखा कम मिलती है इसलिये योग करो और बीमारी से बचो। यही बाबा की यूएसपी है उन जैसा संचार का महारथी इन दिनों देश में गिने चुने ही हैं। पत्रकारों के बीच में पत्रकारों के हितैषी तो नेताओं के बीच में देशभक्ति और स्वदेशी का जयघोप करने वाले तो कुश्ती के मैदान में पहलवान बनकर ओलंपिक मैडलिस्ट आंदे्रई स्टेंडनिक को चित करने वाले तो कपिल शर्मा के शो में कपिल को शीर्षासन कराने वाले तो फिल्मी सितारों के टाक शो में रणवीर सिंह को कंधे पर उठाकर चारों खाने घुमाने वाले और हर घडी किसी ना किसी टीवी चैनल पर पतंजलि के उत्पाद का प्रचार करने वाले माडल बने बाबा की जबरदस्त टीआरपी और फेन फालोइंग हैं। यही वजह है कि हम टीवी वाले उन पर हमेशा निगाह रखते हैं।
मुझे याद आ रहा है एक जून 2011 का वो वाकया जब हम उज्जैन में थे सुबह सुबह बाबा योग करा रहे थे और यहां वो अपनी स्वाभियान यात्रा खत्म कर थोडी देर बाद ही दिल्ली रवाना होने वाले थे। जहां पर चार केंद्रीय मंत्री जिनमें वर्तमान राप्टपति प्रणव मुखर्जी भी थे उनका इंतजार कर रहे थे। बाबा के लिये उज्जैन की दताना हवाई पटटी पर स्पेशल विमान खडा था साथ में थे पत्रकार वेदप्रताप वैदिक। हम योग गुरू बाबा की ये राजनीतिक उंची उडान देखकर हैरान थे। बाबा तब काले धन की आड में यूपीए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुये थे। बाबा दिल्ली पहुंचे बैठक हुयीं। मगर बाबा का हठयोग जारी रहा और वो अपने हजारों समर्थकों के साथ रामलीला मैदान में चार जून से अनशन पर बैठ गये। उसके बाद आयी वो रात जो बाबा के विरोधी भूलने को तैयार नहीं है दिल्ली पुलिस के लाठीचार्ज पर वो अपना चोला बदलकर छिप कर भाग निकले और हरिद्वार में अवतरित हुये। उसके बाद से बाबा ने यूपीए सरकार को ठिकाने लगाने की सारी कोशिशें की और मोदी समर्थक बन बैठे। बाबा की ये भूमिका परिवर्तन बहुत लोगों को पसंद नहीं आया। अब आलम ये है कि तकरीबन बाबा की अब पत्रकार वार्ता में उनसे विदेशों से आने वाले काले धन के वायदे की बात पूछी जाती है और बाबा किसी तरह गोल मोल जबाव देकर बच निकलते हैं। भोपाल में भी यही हुआ जब बाबा से पूछा गया कि क्या वो मोदी से नाराज हैं या हताश हैं जो उन्होंने वायदा पूरा नहीं किया तो बाबा बोल गये पीएम का पद बहुत बडा और ताकतवर पद होता है वो कुछ भी कर सकता मैं अभी मोदी जी से हताश नहीं हूं तीन साल हो गये हैं बाकी के दो साल में वो कालाधन वापस ला सकते हैं ऐसी मैं उम्मीद कर रहा हूं मगर वो ये भी बोल गये भई मोदी से लडाई मत कराओ।
दरअसल बाबा की किस्मत भी गजब है। पैदा हुये हरियाणा के छोटे से गांव में रामकृप्ण यादव बनकर। गुरूकुलों में पढाई की योग सीखा और भारत को योग सिखाते सिखाते दुनिया को योग सिखाने लगे। योग कराते कराते कब वो अायुर्वेदाचार्य बन गये पता ही नहीं चला। आयुर्वेद का ज्ञान ही बांटते तो भी ठीक था मगर उनके अंदर का आर्यसमाजी क्रांतिकारी जागा और वो स्वदेशी की बातें करते करते काले धन की खिलाफत करने के लिये स्वाभिमान मंच के नाम से मैदान में उतर आये। और तत्कालीन सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल लिया।
बाबा यहीं नहीं रूके आयुर्वेद के नाम पर पतंजलि का कारखाना खोला और आज उनके पांच सौ से ज्यादा उत्पाद देश में पांच हजार से ज्यादा आउटलेटस में बिकते हैं। उनके मित्र बालकृष्ण की अगुआई में चलने वाली ये कंपनी पांच हजार करोड की कंपनी हो गयी है जिसने एक साल में ही एक सो दस प्रतिशत कमाई में उछाल पायी है। बाबा ने आयुर्वेद स्वदेशी और भगवा का ऐसा मिश्रण बनाया कि देश की पांच बडी एफएमसीजी कंपनी कालगेट, डाबर, आईटीसी, गोदरेज और हिन्दुस्तान लीवर कंपनियां आज पतंजलि के सामने शीर्षासन कर रही है। अब आप ५१ साल के ऐसे जीवट वाले बाबा को क्या कहेंगे जो रूकना ही नहीं जानता बाबा, व्यापारी, नेता या फिर कुछ और !
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