हरीश रावत के राज मे दूसरी कड़ी मे भ्रष्ट और कुख्यात मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी के पास जिम्मा तो था स्वस्थ्य विभाग का लेकिन सुरेन्द्र सिंह नेगी का भी दमन साफ़ नहीं रहा अपने विभाग मे घोटाले और घपलो के लिए सुरेन्द्र सिंह नेगी ने सात बड़े घोटाले किये . सुरेन्द्र सिंह नेगी लोगो के स्वस्थ्य का जिम्मा देखने के बजाए सरकारी धन को लुटाने मे लागे रहे . सबसे बड़ी नाकामी मुख्यमंत्री स्वस्थ्य बिमा योजना रही जो की उत्तराखंड के आम जन मानस के लिए फायदेमंद हो सकता था लेकिन सुरेन्द्र सिंह नेगी के पांच साल मे स्वस्थ्य सेवाए दम तोड़ती हुई नजर आई लेकिन अब उन पर आरोप है कि उन्होंने घोटाले कर उत्तराखंड राजस्वा को भारी नुकसान पहुचाया है . हरीश रावत तो पहले ही साफ़ कर चुके थे की मे आँख बंद कर लूगा जितना मर्जी कामा लेना . वही सुरेन्द्र सिंह नेगी भी करते रहे जब सिर पर किसी आका का हाथ हो तो डर कहा .. हम यु भी कहे कि- साया भर कोतवाल ये कहावत भी सटीक बैठती हुई नजर आती है अपने घोटालो और घपलो को लेकर सुरेन्द्र सिंह नेगी हमेशा चर्चाओ मे रहे और हरीश रावत राज मे हरीश के मंत्रियो ने जनता की सेवा करने के बजाए सरकारी धन को खूब हड़पा लेकिन यहाँ बात भी छुपी नहीं है की यहाँ सारे घोटाले आखिर किस के सह पर हुए …लेकिन सच ये है की सारे घोटाले हरीश रावत के कार्यकाल मे ही हुए …हरीश रावत ने पर्दा डाले रखा घोटाले बज मंत्रियो पर कारवाई न कर हरीश रावत ने साफ़ सन्देश दे दिया था की कुछ तुम लूट लो कुछ मैं लूट लू वाली स्थिति पैदा कर दी थी… लेकिन सरकारी खजाने को जिस तरह से लुटा गया उसकी भरपाई आखिर कैसे होगी ? ये सवाल अब खड़ा हो चुका है कि हरीश रावत ने अपने मंत्रियो से ये जानने की कोशिश क्यों नहीं की… कि मंत्रियो के घोटाले छुपाने वाले हरीश रावत आखिर को क्या ये सवाल पुछेने का नैतिक आधिकार नहीं था ? सुरेन्द्र सिंह नेगी के इन सात बड़े घोटालो को लेकर आवाज उठाने लागी है कि.. स्वास्थ्य को देखने के बजाए घोटालो मे ही व्यस्त रहे . हरीश रावत के मंत्रियो ने जम कर घोटाले किये और इन्ही घोटालो मे मंत्री लोग करोड़ेपति हो गए और सरकारी खजाना खली …… उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में कुलसचिव की कुर्सी पर बैठे मृत्युंजय मिश्रा पर राजभवन के कड़े रूख के कारण गाज गिरनी तय हो गई थी । हालांकि मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा मुख्य सचिव की सिफारिश पर मिश्रा को कुलसचिव की कुर्सी से बेदखल करने की मंजूरी के बाद भी विभागीय मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी और प्रमुख सचिव ओमप्रकाश उसे बचाने की कोशिश कर रहे थे । मुख्यमंत्री द्वारा मिश्रा को हटाने वाली फाइल को मंजूरी दिए जाने के बाद मिश्रा ने मंत्री के दरबार में मथा टेककर बचाव की गुहार लगाई ,जिस पर मंत्री ने मुख्यमंत्री से मिश्रा वाले मामले को चुनाव तक किसी तरह टालने के लिए दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन सीएम हरीश रावत ने मिश्रा प्रकरण को लेकर हो रही बदनामी का हवाला देते हुए मंत्री की जुबान बंद कर दी। अब आशंका ये भी जताई जा रही है कि मंत्री-प्रमुख सचिव की जोड़ी मिश्रा को हाईकोर्ट में इस मामले को चुनौती देकर अपना बचाव का वक्त दे सकती है । मिश्रा प्रकरण में भरपूर कुख्याति हासिल करने के बावजूद मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी का मिश्रा से मोह नहीं छूट पा रहा है। अब मिश्रा को मलाईदार पोस्ट पर भी बैठा दिया गया है ।
सुरेंद्र सिंह नेगी के कार्यकाल के घोटाले
स्वास्थ्य विभाग में सामने आए घपलों की फेहरिस्त
एक : पिछले साल संविदा पर एएनएम की भर्ती में घपला सामने आया। इसमें तत्कालीन सीएमओ डा. गुरपाल सिंह और प्रशासनिक अधिकारी सुशील जोशी को निलंबित किया जा चुका है। दोनों पर कोतवाली में मुकदमा भी दर्ज है।
दो : सीएमओ दफ्तर में बेरोजगार युवकों से चतुर्थ श्रेणी में भर्ती के नाम पर मोटी रकम वसूलने का मामला सामने आ चुका है।
तीन : और उपकरण खरीद के लिए मिले 2.90 करोड़ रुपये के आवंटन में अनियमितता।
चार : मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना (एमएसबीवाई) के कार्ड बनाने में भी गड़बड़ी हुई । मोटी तनख्वाह पाने वाले कई डाक्टरों, इंजीनियरों और पुलिस वालों समेत योजना के कई अपात्रों के कार्ड भी बना दिए गए
पांच : वर्ष 2010-13 तक संविदा पर नियम विरुद्ध स्टाफ नर्स और एएनम (आक्जीलरी नर्सिंग मिडवाइफरी) की भर्तियों के घपले का आठ जून को खुलासा हुआ। इसमें पैसों के लेनदेन के आरोप भी हैं ।
छह : दून अस्पताल में मरीजों को डाक्टर लगातार महंगी ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं। कार्रवाई न होने से स्वास्थ्य मंत्री और प्रमुख सचिव के निर्देशों का भी पालन नहीं हो रहा है। मंत्री के छापे में ब्रांडेड दवाएं लिखी पकड़ी गई, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सर्जन डा. अंशिका अरोड़ा से अस्पताल प्रशासन ने 125 रुपये की रिकवरी के आदेश दिए हैं ।
सात : अगले महीने सीएमओ दफ्तर से होने वाले करोड़ों रुपये के टेंडर की प्रक्रिया पर भी सवाल उठ रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि चहेते को टेंडर दिलाने के लिए बार-बार शर्तें बदली जा रही हैं। साडी घोटाला, आशाओं को ड्रेस के तौर पर बाटी गई साड़ियों में भी बड़ा घोटाला हुआ
आखिर देखना अब ये है कि घोटालो पर मुख्यमंत्री ने तो कारवाई तो नहीं कि है… लेकिन जनता क्या इन घोटालो को देख कर अब 2017 मे अपना वोट करेगी ?..ये अभी भविष्य के गर्व मे है …
(साभार: एस न्यूज )
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