किशोर आखिर ‘किशोर’ ही निकले ! आखिर हरीश रावत ने किशोर उपाध्याय को शह-मात के खेल में मात दे ही दी। किशोर को शायद इसका आभास तक न हो, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि हरीश ने अपने मंसूबे तो पूरे किए ही साथ में कई शिकार भी एक साथ कर डाले।
किशोर की कोशिश भले ही ये रही हो कि हरीश रावत चुनाव में अपने परिवार के किसी सदस्य को न उतार पाएं , इसके लिए बकायदा हाईकमान तक से फरमान कराया गया। लेकिन हरीश ने दो सीटों से लड़ने का फैसला लेकर इस रणनीति को धराशायी कर दिया। यह साफ है कि जो दो सीटें उन्होंने चुनी वो बेहद सेफ हैं। हरीश रावत के इस फैसले के सियासी निहितार्थ साफ हैं कि इनमें से किसी एक सीट को छोड़कर वो अपने परिवार को राजनीति की मुख्य धारा में एंट्री दिलाने के कामयाब हो जाएंगे।
हरीश की सियासी दूरदर्शिता का एक और उदाहरण वे सीटें हैं जहां से कांग्रेसी बागी हुए थे। इन सीटों पर उन्होंने नये चेहरों को तरजीह दी है, जिनमें से अधिकांश उनके अनुचर हैं। यह कहना पूरी तरह सही होगा कि जो 63 उम्मीदवार कांग्रेस ने तय किए हैं, उनमें से अधिकांश नाम हरीश रावत से जुड़े हैं। सूची में उनका मात्र भर का है, जो कि सीधे-सीधे किशोर उपाध्याय से जुड़ा है।
किशोर को सहसपुर से उम्मीदवार बनाया जाना अंदरुनी सियासत का हिस्सा है। यही नहीं देहरादून की कैंट सीट पर सूर्यकांत धस्माना व रुद्रप्रयाग में लक्ष्मी राणा के बारे में जिस तरह से जोर शोर से प्रचारित किया जा रहा है कि इनके प्रमुख पैरोकार किशोर उपाध्याय रहे हैं, उससे तो यही जाहिर हो रहा है मानो किशोर उपाध्याय ने बड़े जतन से इन दो विवादों से जड़े उम्मीदवारों को टिकट दिया है। इसका सीधा मतलब ये हुआ है इसका जो अपयश है वो सीधे-सीधे किशोर के खाते में जाता है।
टिकट बंटवारे के बाद हालत ये है कि जिस कांग्रेस भवन में किशोर उपाध्याय-जिंदाबाद के नारे लगते थे ,वहां किशोर उपाध्याय-मुर्दाबाद हो गया । किशोर का सियासी भविष्य धुंधलके में है, और दूसरी तरफ हरीश रावत उतने ही सेफ, उतने ही निष्फिक्र। कुल मिलाकर हरीश रावत ने ऐसी पटकनी दी कि ‘अंडर टेबल’ पालिटिक्स में माहिर कहे जाने वाले किशोर हरीश रावत के सामने ‘किशोर’ साबित हो कर रह गए !
योगेश भट्ट
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