एल.एन.शीतल/ पीएम नरेन्द्र मोदी के नोट-बन्दी हमले से विपक्षी सियासतदानों को तो दस्त लगे हुए हैं ही, लेकिन उनसे ज़्यादा हवा ख़राब उन सत्ताधीश भाजपाइयों की है, जिन्होंने ‘माल’ बटोरा तो अन्धाधुन्ध रफ़्तार से, लेकिन उसे क़ायदे से हज़म करने का शऊर जिनमें नहीं था. इन बेशऊर पेटू भाजपाइयों की संख्या उन राज्यों में सबसे ज़्यादा है, जहाँ भाजपा सत्तासीन है, या फिर सत्ता में भागीदार है. इन राज्यों में कांग्रेसी तो एक लम्बे अरसे से बेदखल हैं. उन ‘बेचारों’ का ‘माल’ तो बेकारी काटते-काटते काफ़ी हद तक वैसे ही ठिकाने लग चुका है. और फिर, कांग्रेसियों को ‘इनकमिंग’ और ‘आउटगोइंग’ को बैलेंस करने में महारत हासिल है.
ऐसे ही एक राज्य के प्रदेशाध्यक्ष रह चुके और अब अमित शाह की टीम में शामिल एक ‘सज्जन’ तो इस क़दर विचलित हो उठे कि उनके ‘श्रीमुख’ से ‘अपने ख़ुद के’ प्रधानमन्त्री के लिए उनकी जाति से जुड़ी तमाम गालियाँ और उनके ‘स्वर्गवास’ तक की कामनाएँ निकलने लगीं. यही हाल ख़ुद को ईमानदारी की सनद बाँटने में बेतरह मशगूल रहने वाले एक सीएम साहब का भी है. ये तो दो नमूने हैं. इन जैसे और न जाने कितने हैं.
यही क्यों, मोदी से तो ख़ुद उनके बहुत से मन्त्री तक ‘परेशान’ हैं. एक बानगी देखिए. एक कैबिनेट मन्त्री के पीएस ने मन्त्री के बंगले पर पाँच करोड़ की ‘दक्षिणा’ के साथ एक ‘सज्जन’ को तलब किया. जैसे ही पीएस महोदय ने ‘दक्षिणा’ का ‘चार्ज’ लिया कि सीबीआई की टीम ने आ दबोचा. पीएस ने यह सच उगलने में ज़्यादा देर नहीं लगायी कि वह तो यह ‘पुनीत कार्य’ मन्त्री जी के लिए कर रहे थे. पी एस को तो तुरन्त हटा दिया गया और मन्त्री से वह मलाईदार विभाग छीनते हुए, इस चेतावनी के साथ हल्का विभाग थमा दिया गया कि अगर उन्होंने आइन्दा ऐसी हरकत की तो उन्हें पैदल कर दिया जायेगा, फिर भले ही वह कितने भी बड़े फ़न्ने खां क्यों न हों.
दरअसल, सीबीआई टीम पीएमओ के इशारे पर ही आ धमकी थी. पी एस को गिरफ़्तार इस लिए नहीं किया गया कि वह गिरफ़्तारी सरकार के गले में हड्डी बन फँस जाती. मित्रो! लब-ए-लुआब यह कि परेशां ‘वे’ भी है, औ’ परेशां ‘ये’ भी हैं!
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