-श्याम सिंह रावत / चीन द्वारा पाकिस्तानी आतंकवाद को प्रश्रय देने के खिलाफ़ आजकल चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की आवाजें सोशल मीडिया में खूब उठ रही हैं। इस सम्बंध में तरह-तरह की बातें हो रही हैं; लेकिन क्या यह सम्भव है कि चीन निर्मित वस्तुओं को छोड़ पाना सहज होगा? इस पर विचार करने की आवश्यकता है।
ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में किसी भी सरकार के लिए एकला चलो संभव नहीं। विश्व व्यापार संगठन की संधि के प्रावधान उसके सदस्य देशों के लिए बाध्यकारी हैं। चूँकि भारत और चीन दोनों ही इस अतर्राष्ट्रीय संस्था के सदस्य हैं, इसलिए भारत सरकार के सामने चीनी वस्तुओं के आयात पर किसी तरह की रोक लगाने के विकल्प बहुत सीमित हैं। हाँ, यदि जनता उन्हें न लेना चाहे या देश के व्यापारी मुनाफे का लालच देशहित में छोड़ दें तो बात अलग है। यह तो है तस्वीर का एक पहलू। लेकिन तस्वीर का दूसरा पक्ष और भी कठिन है क्योंकि चीन केवल पटाखों की लड़ियाँ और बिजली की झालर ही नहीं बनाता।
जरा गौर फर्माइये--
देश में अनेक चीनी कंपनियां सेवा क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं, जैसे दुनिया में पहली ऑप्टिकल फाइबर बनाने वाली कंपनी Fiberhome Technologies भारत की सरकारी कंपनियों GAIl, Railtel, PGCIL और MTNL को भी अपनी सेवाएं प्रदान करती है। इस कंपनी की सेवाओं, टेक्नोलॉजी और प्रॉडक्ट्स के बिना इन सरकारी ही नहीं बल्कि अनेकों प्राइवेट कंपनियों का एक दिन का काम चलाना ही बहुत मुश्किल होगा। ऐसे में इन सरकारी और गैर-सरकारी कंपनियों द्वारा इसकी सेवाओं का बहिष्कार कैसे हो सकेगा यह बड़ा सवाल है।
इसी तरह एक अन्य चीनी कंपनी जिआंग्सू ओवरसीज ग्रुप भारत में चीनी मिनरल्स, मेटल्स, फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री में प्रयुक्त विभिन्न तत्व, पौधे और उनसे संबंधित तकनीक, एग्रो केमिकल्स, रॉ मैटेरियल्स, मेडिकल इक्विपमेंट्स और भारतीय मेडिकल इक्विपमेंट्स के लिए पुर्ज़े और तकनीक, विभिन्न इंडस्ट्रीज के लिए इंजीनियरिंग और तकनीकी ज्ञान भी उपलब्ध कराती है। इसके अलावा चाइना शौगांग इंटरनेशनल ट्रेड एंड इंजीनिरिंग कॉरपोरेशन, CMIEC और CSGC आदि चीनी कंपनियां भारत में स्टील मैन्युफैक्चरिंग और मैटलर्जिकल तथा ऐसे ही अन्य उत्पाद उपलब्ध कराती हैं। इन कंपनियों के और इनकी सहायता से बने अन्य उत्पादों, सेवाओं और सुविधाओं के विकल्प हमारे पास कितने हैं, यह भी न केवल विचारणीय है बल्कि इनके विकल्प पहले तलाशने होंगे।
भारत के लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की संसार में सबसे ऊँची (55.47 मी.) प्रतिमा Statue Of Unity को स्थापित करने के लिए अम्बानी की भारतीय कंपनी लार्सन एड टूब्रो के मार्फ़त चीनी कंपनी टीक्यू आर्ट फाउंड्री/ ज़िआंग्जी तोकुआइन को 3,000 करोड़ रुपये में ठेका दिया गया है। उसी प्रतिमा के लिए देश की जनता ने हजारों टन लोहा दान किया था। भले ही उसे इन कंपनियों ने घटिया लोहा बताकर रिजेक्ट कर दिया था, परन्तु अब चीनी टेक्नोलॉजी से निर्मित और चीनी कलाकारों व अभियंताओं द्वारा असेम्बल होने वाली सरदार पटेल की उस मूर्ति का बहिष्कार कैसे हो पायेगा?
हमें याद रखना होगा कि चीनी कंपनियाँ अपने आप यहाँ नहीं आईं, बल्कि उनके उच्चाधिकारयों को भारत बुलाकर उत्पादन करने, मेक इन इंडिया को सफल बनाने और FDI के द्वारा भारत में इन्वेस्टमेंट लाने के लिए हमारे प्रधानमंत्री ही प्रयासरत रहे हैं। व्यापार हेतु भारत आई चीन की कंपनियों को परमिट, लाइसेंस और ठेके हमारी अपनी ही सरकार ने प्रदान किये और उन्हें गुड़गांव, दिल्ली, नोएडा तथा गुजरात व देश के अन्य बड़े औद्योगिक और व्यापार प्रधान नगरों में कार्यालयों हेतु ज़मीनें, मकान और उनके चीनी कार्मिकों को आवास हमने ही उपलब्ध कराये हैं। इसके अतिरिक्त चीनी कंपनियों-- Lenovo, Huawei, Haier, TCL आदि के महंगे लैपटॉप, कंप्यूटर्स, इलेक्ट्रॉनिक सामान, इलेक्ट्रिकल एप्लायंसेज, पुर्ज़े और दूसरे महंगे आइटम्स हम ही खरीद रहे हैं। क्या आज कोई देशभक्त इन चीनी कपनियों से होने वाले लाभ को छोड़ने या इनके बनाये व इस्तेमाल किए जा रहे उत्पादों को नष्ट करने को तैयार है?
अतः कोरी भावुकता में बहने से पहले समग्रता में चीन को देश के बाजार से निकाल बाहर करने की बात कहने से पहले उसके विकल्प तलाशने होंगे। भले ही छोटे स्तर पर इसकी शुरुआत उपभोक्ता सामग्रियों से की जा सकती है, लेकिन इतने भर से काम नहीं चलने वाला। हाँ, फिलवक्त यदि इतना भर ही हो जाये तो कम न होगा; क्योंकि मंजिल कितनी ही दूर और दुरूह क्यों न हो उसे फतह करने की शुरुआत पहले ही कदम से होती है। चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की पहल क्यों न अपने से ही करें।
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