मोदी की जनधन खातो को वोटबैंक बनाने की तरकीब

Publsihed: 04.Dec.2016, 18:22

अजय सेतिया / हजार और पांच सौ रुपए के नोट बदलने के निर्णय को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुछ आलोचक तुगलकी फरमान बता कर अमानवीय तक कह रहे हैं. क्योंकि अपनी आलोचना में वे नोटो की कमी के कारण बैंक की लाईनो में खडे कुछ लोगो की मौतो को मुद्दा बना रहे हैं. और नोटबंदी की वजह से मौते होना बता कर प्रधानमंत्री को उस का जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. लेकिन सवाल यह है कि जनता क्या सोच रही है. क्या वह विपक्षी दलो के इस जुमले से सहमत है कि नरेंद्र मोदी अपनी सनक में तुगलक साबित हो रहे हैं या या वह सोचती हैं कि मोदी ही काले धन पर सख्ती दिखा कर रिश्वतखोरो और भ्रष्टाचारियो को सबक सिखा सकता है और उन का जीना हराम कर सकता है. देखना यह है कि इस नोटबंदी का आखिर  फरवरी मार्च में होने वाले उत्तरप्रदेश और बाकी राज्यो के चुनावो पर क्या असर पडेगा.

आर्थिक विशेषज्ञ स्वामीनाथन.एस.अंकलेशरिया अय्यर ने लिखा है कि हम नोटबदी के असर को तीन स्तरो कर बांट कर देख सकते हैं. चाहे कुछ भी हो पहले स्तर में लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक बने रहेंगे. दूसरे स्तर पर जब छह महीने तक देश की आर्थिकी पर असर पडेगा, जीडीपी पर असर होगा, कोई करीब 150000 करोड मार्किट से गायब होंगे और मंदी का दौर चलेगा तो निराश वोटर मोदी के खिलाफ हो जाएगा. तीसरे स्तर पर मोदी गरीब वोटरो का साथ पाने के लिए सुधारात्मक कदम उठाएंगे और नोटबंदी से प्राप्त लाखो करोड रुपए सीधे करीब 25 करोड जनधन खातो में डाल देंगे. इस का ऐलान विधानसभा चुनावो से पहले होगा ताकि उस का चुनावो पर सीधा असर पडे. नरेंद्र मोदी ने तीन दिसम्बर को अपनी मुरादाबाद चुनाव रैली में यह कह कर इस की शुरुआत कर भी दी है कि वह ऐसी तरकीब सोच रहे हैं कि कालाधन वालो ने जो पैसा जनधन खातो में जमा किया गया है, वह खाताधारको का ही हो जाए और जिन्होने वह पैसा उन के खाते में डाला है , वह जेल में जाए. वास्तव में ऐसा कर के मोदी विधानसभा चुनावो में अपने पक्ष में लहर पैदा कर सकते हैं. 

पहला स्तर अब करीब करीब खत्म होने को है, 20 दिन तक संसद नहीं चलने और इन 20 दिनो तक लाईनो में खडा रहने के बावजूद मध्यम वर्ग और गरीब अभी भी मोदी के साथ बना हुआ है. नोटबंदी के बाद विधानसभाओ और लोकसभा की 14 सीटो पर हुए उपचुनावो  के नतीजो से इस का सबूत मिला है. बाद में महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में हुए स्थानीय स्तर के चुनावो में भी जनता ने भाजपा को बडा समर्थन दिया.हालांकि यह चुनावी उपलब्धि इतनी उल्लेखनीय नहीं है लेकिन नरेंद्र मोदी दावा कर सकते हैं कि जनता ने नोटबंदी को समर्थन दिया है. यह दर्शाने के लिए उन्होने तीनो भाजपाई मुख्यमंत्रियो को बाकायदा बधाई भी दी.लोकसभा और विधानसभाओ के उप चुनावो में उन सभी पार्टियो ने अपनी सीटे बचाई रखी हैं, जिन की सीटे खाली हुई थी. कोई ज्यादा आश्चर्यजनक या निराशाजनक नतीजे नहीं आए. लेकिन गुजरात में भाजपा ने पटेलो के आंदोलन के बावजूद कांग्रेस की कम से कम 40 सीटे छीन कर 126 में से 109 सीटे जीत ली. यह एक तरह से गुजरात को कांग्रेस मुक्त करने जैसा है, जब कि कांग्रेस मोदी की गैर हाजिरी में 2018 का विधानसभा चुनाव जीतने का मंसूबा साध रही है . पटेल मोटे तौर पर भाजपा समर्थक रहते हैं, लेकिन हार्दिक पटेल के आरक्षण सम्बंधी आंदोलन के कारण उम्मींद लगाई जा रही थी कि पटेल भाजपा का दामन छोड रहे हैं. 

महाराष्ट्र के 147 नगरपालिका अध्यक्षो में से भाजपा के 51, शिव सेना के 25 , कांग्रेस के 23 और राष्ट्रवादी कांग्रेस के 18 जीते हैं. नगर परिषदो और नगर पंचायतो की 893 सीटे भाजपा, 727 कांग्रेस, 645 राष्ट्रवादी कांग्रेस और 529 शिवसेना ने जीती हैं. मौटे तौर पर भाजपा महाराष्ट्र में मजबूती के साथ खडी दिखाई देती है. यह वह राज्य है , जिसे अभी तक तो भारत की आर्थिक राजधानी माना जाता है और कच्चे-पक्के बिलो का दोनो तरह का बडा धंधा और हर रोज करोडो रुपए की नगदी इधर से उधर होती है. इस लिए न तो यह कहा जा सकता है, कि जनता बेहद नाराज है और न ही यह कहा जा सकता है कि जनता ने नोटबंदी के बाद उन्हे सुपर हीरो मानना शुरु कर दिया है. वोटर न तो मीडिया की इन खबरो से प्रभावित हुआ कि लाईनो में खडी देश की जनता मर रही है , अब जनता का मोदी से मोह भंग हो गया है और न ही वोटर उन के पक्ष में उमड पडा है.

वित्त मंत्रालय ने 4 दिसम्बर को घोषणा की कि अब तक  67,382 करोड़ रुपये का नया कालाधन घोषित हुआ है.जिसे 71,726 लोगो ने घोषित किए हैं. सितम्बर की कालेधन को घोषित करने वाली योजना में 64,275 लोगो से 65,250 करोड़ रुपये मिले बताए गए थे,जो अब 67,382 करोड हो गए हैं.आयकर विभाग ने अहमदाबाद के महेश कुमार चंपकलाल शाह के 13,860 करोड़ रुपये और मुंबई के बांद्रा निवासी चार सदस्यीय परिवार के मुखिया अब्दुल रज्जाक मोहम्मद सईद की कुल दो लाख करोड़ रुपये की घोषणा को नहीं माना. ये दोनो घोषणाए अभी संदिग्ध हैं.अब्दुल रज्जाक मोहम्मद सईद के चार पैन कार्डो में से तीन मूल रूप से अजमेर के थे, जिन्हें सितंबर 2016 में ही मुंबई स्थानांतरित किया गया था.

नोटबंदी के असर के दूसरे दौर की अब शुरुआत होने वाली है. मीडिया ने बडी खबरे दी हैं कि काला धन वालो ने मोदी के खोले गए 25 करोड जनधन खाताधारको का इस्तेमाल कर के कम से कम 30000 करोड रुपया सफेद कर लिया है. इस खबर ने रिजर्व बैंक से ले कर मोदी तक को परेशानी में डाल दिया क्योंकि जनधन खातो में तो साल भर में सिर्फ 50000 तक ही जमा होने का प्रावधान था, जबकि 10 नवम्बर के बाद कई खातो में कई कई लाख रुपए जमा होने की खबरे आई हैं. मोदी इन जनधन खाताधारको पर कोई कार्रवाई करने की स्थिति में तो बिलकुल नहीं है, न ही किसी कानून के तहत उन के खातो में जमा पैसा जब्त किया जा सकता है. इस में तो कोई शक-शुबहा नहीं है कि जनधन खाता धारको ने कमिशन के आधार पर अपने जानकार साहूकारो का पैसा उस खाते में जमा करवाया है. जैसा कि इस लिए मोदी और रिजर्व बैंक की दुविधा बढी हुई है.

सिर्फ जनधन खातो मे ही नहीं अलबत्ता गांवो में गरीबो के दूसरे खातो में भी बडी तादात में पैसा जमा हुआ है, पूर्वोत्तर के जिन आदिवासी बहुल राज्यो को आयकर से मुक्ति मिली हुई है, वहाँ तो बोरियो मे भर कर विशेष विमान में पैसा पहुंचाए जाने की खबरे आई.आर्थिक विशेषज्ञो का शुरु से मानना रहा कि काला धन कैश में नाममात्र है, जब कि ज्यादातर काला धन जमीनो, कोठियो, फ्लैटो और सोने में लगा हुआ है. अब खबर आ रही है कि 14.30 लाख करोड के 500-1000 के नोटो में से 10 लाख करोड तो 20 दिनो में ही बैंको में आ चुका है. अभी तो 25 दिन और बाकी पडे हैं. जैसे जनधन और पूर्वोत्तर के खातो का इस्तेमाल कर के काला धन सफेद कर लिया गया, बाकी बचा भी हो जाएगा. हालांकि बडी खेप आ चुकी है.अनुमान है कि 30 दिसम्बर तक बैंको में ज्यादा से ज्यादा एक-सवा लाख करोड तक ही और जमा होगा.

आर्थिक विशेषज्ञो मोदी विरोधी राजनीतिक दलो के अनुसार जीडीपी का कम से कम एक फीसदी ,लगभग 1,50,000 करोड रुपया मार्केट से बाहर हो जाने के बाद गांवो-कस्बो में असंतोष का वातावरण अब इस दूसरे दौर में शुरु होगा . क्योकि नगदी मार्केट से बाहर होने के कारण काम धंधा चौपट हो गया है. लोगो के पास कैश ही नहीं है, मुफलसी मे जी रहे हैं, जिस कारण दूकानदार हाथ पर हाथ धर कर बैठे हैं. जो लोग मार्केट में कर्ज दे कर उस के ब्याज का धंधा करते हैं, उन का धंधा तो चौपट हो ही गया है, कर्ज की वापसी तक रुक गई है और धंधा चौपट होने से देनदारो का ब्याज भी बढ रहा है. मोदी ने 50 दिन मांगे थे, आधे निकल गए, आर्थिकी 31 दिसम्बर को अचानक पटरी पर नहीं आने वाली. आर्थिक मंदी का ऐसा दौर शुरु हो सकता है, जिस की मोदी और उन के नौकरशाहो की टीम ने कल्पना भी नहीं की होगी. इस लिए इस दूसरे स्तर में जनता परेशानी झेलेगी तो मोदी के खिलाफ गुस्सा पैदा हो सकता है. ऐसी स्थिति अगर जनवरी में पैदा होती है तो यूपी, उत्तराखंड, पंजाब और गोवा के विधानसभा चुनावो में भाजपा के लिए घातक साबित होगी. 

अब यही पर पहली फरवरी को पेश होने वाला पहला बजट आता है, जिसे रणनीति के तहत चुनावो से पहले 28 दिन अग्रिम लाया जा रहा है.नोटबंदी के असर का तीसरा स्तर भी इसी समय चरम पर होगा. नोटबंदी के बाद की मैंनेजमैंट फेल होने का ठीकरा वित्त मंत्री अरुण जेतली के सिर फूटने की बाते हो रही हैं, चार दिसम्बर को अमृतसर में हुए हार्ट आफ एशिया सम्मेलन में बिमार पडी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की जगह अरुण जेतली की उपस्थिति ने संकेत दिया है कि कन्ही बजट से पहले ही उन्हे विदेश मंत्री न बना दिया जाए. अरुण जेतली के आर्थिक बंदोबस्त से भाजपा और संघ परिवार में खासी नाराजगी है. उन्होने गरीबो को जोडने में कोई अहम भूमिका नहीं निभाई और मध्यम वर्ग को अच्छा खासा नाराज कर रखा है.

वैसे नोट बदली महाकुम्भ के बीच ही बजट बनने की प्रक्रिया शुरु हो चुकी है. संघ परिवार का दबाव है कि नोटबंदी से जो भी लाभ हो उस का ज्यादा हिस्सा गरीबो तक पहुंचना चाहिए, इसी लिए कालेधन पर लगे जुर्माने के सरचार्ज और कालेधन का 25 फीसदी चार साल तक जमा रख कर उस का ब्याज से गरीबो की योजनाए चलाने का एलान हुआ है.  इस के साथ ही पांच सौ और हजार के करीब करीब ढाई-तीन लाख करोड के नोट 31 दिसम्बर तक जमा नहीं हुए होंगे, जो वास्तव में कालाधन माना जाएगा. रिजर्व बैंक आफ इंडिया वह धन भी डिविडेंट के रूप में भारत सरकार को सौंप देगी.अब जनता का रुख अपनी तरफ मोडने के लिए मोदी जनधन खातो का रुख कर सकते हैं. जिस का सकेत मोदी ने 3 दिसम्बर को मुरादाबाद रैली में दिया है कि वह ऐसी तरकीब सोच रहे हैं जिस से कि जनधन वाले मालामाल हो जाए. तो बजट जेतली पेश करे या पियूष गोयल , प्रधानमंत्री मोदी बजट में जनधन खातो से जुडी दो तीन बडी घोषणाए करवा सकते है. जैसे जनधन में जमा खाते में से पैसा चार साल तक निकाला नहीं जा सकता, यानि उसी का हुआ, जिस के खाते में जमा है और जिन जनधन खातेदारो को नोटबंदी के समय कमिशन पर पैसा जमा करवाने वाले नहीं मिले या जिन्होने मोदी की अपील को मानते हुए अपने जनधन खातो का दुरुपयोग नहीं होने दिया, उन के खातो में केंद्र सरकार कुछ-कुछ जमा करवा दे. इस से पांच विधानस्भाओ के चुनावो की दशा और दिशा ही बदल जाएगी. 

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