इस महाभारत का कर्ण कौन है और शल्य कौन 

Publsihed: 10.Oct.2017, 04:50

अजय सेतिया / सवाल पेचीदा हो गया है | यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी या आडवाणी, जोशी की बात तो छोडिए | सवाल यह है कि क्या संघ के स्वयसेवक और संघ के प्रचारक मोदी राज से खुश हैं | क्या संघ की रीढ़ की हड्डी संघ के गैर प्रचारक अधिकारी मोदी राज से खुश हैं | जहां संघ के प्रचारकों की राय का महत्व है | वहां संघ के गैर प्रचारक अधिकारियों की राय का महत्व ज्यादा है | संघ के प्रचारकों की राय भी गैर प्रचारकों के फीड बैक से बनती है | संघ ने पिछले कुछ महीनों में प्रचारकों से फीड बैक लिया है | इस फीड बैक ने सरकार के गुणगान की राय बदल दी है | अरुण शौरी का ढाई आदमियों की सरकार वाला जुमला अब संघ सर्कल में भी लोकप्रिय हो रहा है | नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ अरुण जेटली को आधा बताया गया था | पर संघ सर्कल में इस आधे से ही ज्यादा नाराजगी है | मोदी और अमित शाह ने खुद को हिन्दू हितों का रक्षक बनाया हुआ है | आर्थिक मुद्दों पर मिलने वाले फीड बैक का सारा ठीकरा अरुण जेटली पर फूट रहा है | भले ही अरुण जेटली का उतना कसूर है नहीं | पर संघ सर्कल में अरुण जेटली की स्थिति वैसी ही बन गई है | जैसी वाजपेयी के राज में पहले यशवंत सिन्हा की थी और बाद में जसवंत सिंह की थी | भारतीय मजदूर संघ और स्वदेशी जागरण मंच ने वाजपेयी सरकार के खिलाफ जंग छेड़ रखी थी | अब जैसे ही यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने मोदी और जेटली पर हमला बोला | वैसे ही उन्हीं दोनों संगठनों ने भी मोदी और जेटली के खिलाफ सार्वजनिक बयान दे दिया | 
आरएसएस की मथुरा बैठक का जिक्र कई बार हो चुका है | सितम्बर के पहले हफ्ते हुई बैठक के बाद कई बदलाव हुए हैं | पेट्रोल पर दो रुपए का केन्द्रीय टेक्स घटाया गया है | हालांकि अभी भी 34 रुपए का टेक्स लगा हुआ है | जो 28 फीसदी की अधिकतम सीमा के सिद्धांत की धज्जियां उड़ाने वाला है | संघ सर्कल चाहता है कि चुनाव से पहले पेट्रोल और डीजल को जीएसटी में लाया जाए | संघ के फीड बैक को न तो मोदी नकार सकते हैं , न अरुण जेटली | फीड बैक इतना खराब है कि सरसंघ चालक को भी मानना पडा है | इसलिए विजय दशमी के अपने वार्षिक संबोधन में उनने अपनी दो-टूक राय रखी है | मथुरा की बैठक में भी अमित शाह और अरुण जेतली को बुला कर फीडबैक दिया गया था | पर जब इस के बाद फीडबैक के आधार पर कोई बदलाव नहीं हुआ , तो मोहन भागवत को खुद सार्जनिक तौर पर बोलना पडा | मोहन भागवत की सार्वजनिक चेतावनी के गहरे अर्थ हैं | इस का अर्थ मजदूर संघ, स्वदेशी जागरण मंच और विश्व हिन्दू परिषद को छूट देने का इशारा है | ये तीनों संगठन अगर सरकार के खिलाफ खुल कर सामने आ गए | तो इस का मतलब होगा कि सरकार का अपना काडर उस के खिलाफ खडा होगा | जो काडर मीडिया और सोशल मीडिया पर सरकार की पैरवी करता है | जो काडर सड़कों और सोशल मीडिया पर कांग्रेसियों, वामपंथियों को घेरता है | वही काडर मोदी और अमित शाह से सवाल करने लगेगा | 
विजय दशमी के बाद मोदी सरकार के बचाव वाला काडर अभी सिर्फ कन्फ्यूज हुआ है | इसे भांप कर मोदी, जेटली और अमित शाह ने काडर को बांधे रखने के लिए ताबड़ तोड़ दो फैसले किए हैं | पेट्रोल-डीजल पर चुटकी भर राहत दी है | जीएसटी की कुछ दरें कम की हैं  तो व्यापारियों को भी  कुछ राहत  दी है | पर यह ऊंट के मुहं में जीरा है | संघ का मंथन अभी खत्म नहीं हुआ है | अलबत्ता अभी तो मंथन शुरू हुआ है | सत्ता के मद में सरकारें कुछ भी सोचें | संघ फीड बैक के आधार पर सोचता है | फीड बैक का दूसरा दौर 11 अक्टूबर से भोपाल में है, जो 14 अक्टूबर तक चलना है |  जिस में क्षेत्रीय प्रचारकों, प्रांत प्रचारकों के साथ गैर प्रचारक संघ अधिकारी भी शामिल होंगें | राजस्थान, हरियाणा , यूपी, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ सरकारों के कामकाज की भी समीक्षा होगी | संघ के अधिकारी मुख्यमंत्रियों की कार्य शैली से भी कोई ज्यादा संतुष्ट नहीं हैं | एक तरफ संघ ने मथुरा में फीड बैक के आधार पर मोदी सरकार की नीतियों और कार्यशैली पर नाराजगी का इजहार किया | तो ठीक उसी समय यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने मोदी-जेटली के खिलाफ मोर्चा खोला | पर दोनों स्वयसेवक नहीं हैं, इस लिए संघ ने उन्हें ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया | पर इस बहाने मार्गदर्शक मंडल के सदस्य मुरली मनोहर जोशी की अहमियत बढी है | मोहन भागवत 6 अक्टूबर को दिल्ली में थे , पर उन्होंने मुरली मनोहर जोशी को संघ की वार्षिक बैठक से पहले भोपाल बुला कर बात की | 
एक तरफ संघ का फीड बैक सरकार में हलचल पैदा कर रहा है | तो दूसरी तरफ यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने निराश बैठे भाजपा सांसदों में हलचल पैदा की है | मथुरा के बाद इसे गर्म लोहे पर चोट करना माना जा रहा है | जहां संघ की बात को मोदी, शाह और जेटली ने नसीहत के तौर पर लिया था | वहीं सिन्हा और शौरी से जेटली और मोदी तिलमिला उठे हैं | जेटली ने इंडियन एक्सप्रेस में छपे यशवंत सिंहां के लेख की सार्वजनिक आलोचना की | तभी साफ़ था कि उन्हें मोदी की हरी झंडी है | जबकि जिन्हें बोलना चाहिए था , वह अमित शाह थे | जिन्हें दोनों को अनुशाशनहीनता का नोटिस जारी करना चाहिए था | यशवंत सिन्हा ने खुद लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ने का एलान किया था | उन्होंने आदर्श कायम किया था | वह भाजपा की मार्गदर्शक टोली के सदस्य बनाए गए | पर पिछले साढ़े तीन साल में पार्टी ने कभी उन से मार्गदर्शन नहीं लिया | सरकार स्तर पर भी कभी मार्ग दर्शक मंडल से कोई मार्गदर्शन नहीं लिया गया | जबकि अनुभवी आडवाणी , जोशी , सिंहां कई मामलों में मार्गदर्शक हो सकते थे | आडवाणी छह साल गृहमंत्री के नाते कश्मीर को बेहतर जानते हैं | यशवंत सिन्हा तो खुद कश्मीर से फीड बैक लेकर आए हैं | वह सरकार को मार्गदर्शन देना चाहते थे | उन्होंने नरेंद्र मोदी से मिलने का वक्त माँगा , पर वक्त नहीं मिला | 
अलबत्ता सिंहा के लेख के बाद मोदी ने उन्हें निराशावादी कह कर महाभारत के शल्य से तुलना कर दी | तब से भाजपा का हर नेता महाभारत पढने में जुटा हुआ है | यशवंत सिंहा ने महाभारत के उस हिस्से को फौरन दुबारा पढ़ा और अगले ही दिन जवाब दिया | जवाब अरुण शौरी के ढाई आदमियों के जुमले से मिलता जुलता है | यशवंत सिन्हा ने मोदी के साथ अरुण जेटली को भी याद दिलाया कि कौरव सौ भाई थे | पर सिर्फ़ दो प्रसिद्ध हुए: दुर्योधन और दुशासन | शल्य की  नकारात्मकता फैलाने वाली कहानी नरेंद्र मोदी ने सुनाई थी | तो यशवंत सिन्हा ने शल्य की कहानी को विस्तार से सुनाया | शल्य कौरवों के साथ थे | दुर्योधन ने उसे महाभारत में कौरवों का पक्ष लेने के लिए तैयार किया था | उसे काम सौंपा गया था कि वह पांडवों के मन में नकारात्मकता पैदा करे | जब शल्य को इस छल का अंदाज़ा हुआ तब उन्होंने उलटा काम किया | शल्य ने  युधिष्ठिर को वचन दिया कि वह शरीर से कौरवों के पक्ष में लड़ेंगे | पर मन और दिमाग़ से पाण्डवों का साथ देंगे | इसी रणनीति के तहत वह नकारात्मकता के जरिए युद्ध में कर्ण को हतोत्साहित कर रहे थे | शल्य को मालूम था कि कौरव महाभारत का युद्ध नहीं जीत पाएंगे | शल्य युद्ध के दौरान कर्ण को लगातार यही सच बता रहे थे | पर कर्ण को शल्य का सच पसंद नहीं आया | अब अगर नरेंद्र मोदी ने यशवंत सिन्हा को शल्य कहा है | तो  यशवंत सिंहा ने उन्हें कौरवों के साथ खडा कर्ण कह दिया है | यशवंत सिन्हा ने कहा कि कर्ण को फ़ैसलाकुन क्षणों में शल्य का सच निराशाजनक ही लगता है |

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