केजरीवाल-कमल हासन वामपंथियों के शहरी चेहरे

Publsihed: 22.Feb.2018, 21:47

अजय सेतिया / जब आप पार्टी बन रही थी | तभी अपन ने एक लेख लिखा था | ओम थानवी के जमाने में जनसत्ता में भेजा गया वह अपना आख़िरी लेख था | जो छपा नहीं , और फिर अपन ने लिखा नहीं | उस लेख में अपन ने लिखा था कि केजरीवाल वामपंथी नक्सली है | उस के नक्सलियों से करीबी सम्बन्ध हैं | यों तो अपन को ओम थानवी के वामपंथी होने का पता था | पर प्रभाष जोशी की परम्परा वाले जनसत्ता में सम्पादक की विचारधारा से लेख तय नहीं होते थे | जिसे ओम थानवी ने पैरों तले रौंद दिया था | वह तो अपन को बाद में पता चला कि ओम थानवी भी केजरीवाल के बुद्धीपुरुष थे | और राज्यसभा पर निगाह टिकाए हुए थे |

फिर 2015 के  विधानसभा चुनाव के  प्रचार अभियान में नरेंद्र मोदी ने वहीं शब्द कहे | मोदी ने पहली बार केजरीवाल को शहरी नक्सली बताया था | जनसत्ता के रीढ़ की हड्डी रहे हरी शंकर व्यास ने मोदी के उस भाषण को याद किया है | उन ने मोदी के भाषण की याद दिलाते हुए लिखा है तब मोदी ने केजरीवाल को जंगल में चले जाने की नसीहत दी थी।अब जब सोमवार की रात को दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश पर कथित हमला हुआ | दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने भी वही शब्द दोहराए | उन ने कहा केजरीवाल और उनकी पार्टी के विधायक शहरी नक्सली हैं। भाजपा और कांग्रेस को पूरा हक़ है कि वे मौके का फायदा उठाएं | केजरीवाल को नक्सली अपन भी मानते हैं | खुद को अनार्किस्ट बता कर केजरीवाल खुद ही इसे साबित कर चुके हैं | आप के नेता कहते हैं कि भाजपा आप को बदनाम करने का अभियान चला रही है। आप के नेताओं को नक्सली बताना उसी अभियान का हिस्सा है | कांग्रेस के कुछ नेताओं ने तो मुख्य सचिव वाली घटना पर केजरीवाल को कटघरे में खडा किया | पर कांग्रेस के बड़े नेता भविष्य की राजनीति के तहत संभल कर बयान दे रहे हैं | 

तमिलनाडू में कमल हासन के साथ खड़े हो कर केजरीवाल ने भी भविष्य की राजनीति के संकेत दिए हैं | वामपंथियों के ही निकट माने जाने वाले कमल हासन ने बुधवार को जब अपनी पार्टी का एलान किया | तो पार्टी को लांच करने के मौके पर सिर्फ केजरीवाल ही मौजूद थे | कमल हासन का रजनीकांत के साथ न जाना सब के समझ में आता है | कमल हासन खुद कह चुके हैं कि वह दक्षिणपंथी नहीं हैं | उन ने यह नहीं कहा कि वह वामपंथी नहीं हैं | सारे देश में वामपंथियों का सफाया हो जाने के बाद अब वामपंथी नए रूप में आ रहे हैं | वामपंथियों के लिए परदे के पीछे रह कर काम करने वाले खुद सामने आ रहे हैं | उन की पीठ पर वामपंथी हैं | दिल्ली में वह अरविन्द केजरीवाल की पीठ पर हैं और तमिलनाडू में कमल हासन की पीठ पर | अपना मानना है कि द्रमुक अन्नाद्रमुक दोनों इस बार पिट जाएंगे | तमिलनाडू में मुख्य मुकाबला दक्षिणपंथी रजनीकांत और वामपंथी कमल हासन के बीच होगा | वामपंथी और कांग्रेस मिल कर कमल हासन को जिताएंगे | क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद रजनीकांत तो नरेंद्र मोदी के साथ जाएंगे | 

वामपंथियों का गठबंधन अभी तक चार पार्टियों का है | सीपीएम , सीपीआई , आरएसपी और फारवर्ड ब्लाक | अपन देख रहे हैं कि अब उस में कमल हासन और केजरीवाल की पार्टी भी शामिल होगी | कांग्रेस यह मान कर चल रही है कि मोदी 2019 में नहीं जीतेंगे | पिछले दिनों राहुल गांधी ने संसद के सेंट्रल हाल में गपशप करते हुए कहा था कि मोदी पीएम नहीं बनेंगे | उन ने कहा था कि भाजपा 210 सीटें भी जीत गई , तब भी मोदी की सरकार नहीं बनेगी | इस का मतलब है कि कांग्रेस भाजपा की 210 सीटें तो मान कर चल रही है | कांग्रेस का खेल यह है कि किसी तरह तीसरे मोर्चे की सरकार बनवाई जाए | इस लिए कांग्रेस तीसरे मोर्चे को मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रही है | इस रणनीति में मोदी के घोर विरोधी केजरीवाल को मजबूत करना भी शामिल है | इस लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनीष तिवारी ने अंशु प्रकाश के हमले की सच्चाई पर शक जताया है | उन ने अंशु प्रकाश की सारी कहानी को ही प्रायोजित बताते हुए कहा -" नीरव मोदी और पंजाब नेशनल बैंक के घोटाले से ध्यान हटाने के लिए यह सब कुछ हो रहा है।" यानी साफ़ है कि कांग्रेस चीफ सक्रेटरी को नरेंद्र मोदी का मोहरा बता रही है |

इस लिए कांग्रेस का भी दबी जुबान से कहना है कि केजरीवाल को साजिश के तहत नक्सली बताया जा रहा है | यानी बारास्ता लेफ्ट केजरीवाल और कांग्रेस में फिर खिचडी पक रही है | दुश्मन के  दुश्मन को दोस्त बनाने वाली रणनीति पर काम हो रहा है | इस के लिए कांग्रेस अनार्किस्ट केजरीवाल को जल्द ही सच्चा लोकतंत्रवादी घोषित कर सकती है | पर अब दूसरी बात | दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष अंशु प्रकाश वाली घटना पर भले ही "आप" को नक्सली पार्टी कहें | अपन केजरीवाल को नक्सली मानते हुए भी पूरी "आप" पार्टी को नक्सली नहीं मानते | आप के ज्यादातर विधायक खुद केजरीवाल से पिंड छुडाने का रास्ता ढूंढ रहे हैं | पर अंशु प्रकाश की कहानी पर अपन को भी कोई भरोसा नहीं | ब्यूरोक्रेसी जिस तरह खुद को शासक समझती है , यह कहानी उसी मानसीकता का हिस्सा है |

न्यायपालिका , पुलिस , ब्यूरोक्रेसी ने गुरूवार को गठबंधन के संकेत दिए | जब गिरफ्तार किए गए दो विधायकों की जमानत नहीं हुई | अपन इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी मानते हैं | सब ने मिल कर जनता के दो नुमाइंदों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया | यह भारतीय लोकतंत्र के पाकिस्तानी रास्ते पर जाने के संकेत हैं | अभी यह नहीं कहा जा सकता कि अंशु प्रकाश पर सचमुच हमला हुआ था | या उन्होंने कहासुनी को हमले की कहानी में बदला | अपना मानना है कि अगर मारपीट की होती , तो वे अंशु प्रकाश को सीएम निवास से इस तरह जाने नहीं देते | पर यह सही है कि इस घटना से आम आदमी पार्टी बैकफुट पर है । आप के नेता सवाल उठा रहे हैं कि वे प्रदेश के सबसे बड़े अधिकारी को बदसलूकी करने के लिए सीएम आवास पर क्यों बुलाएंगे ? 

सोशल मीडिया भी अंशु प्रकाश की कहानी पर भरोसा नहीं कर रहा | सोशल मीडिया असल में जनता की आवाज है | जो लोकतंत्र पर खतरे के बादल देख रहा है | सोशल मीडिया में ब्यूरोक्रेसी, न्यायपालिका और पुलिस का जनप्रतिनिधियों के खिलाफ गठबंधन बताया जा रहा है | दिल्ली के ज्यादातर लोग अब केजरीवाल को पाखंडी मानते हैं | उसकी लोकप्रियता में भारी गिरावट आई है | इसके बावजूद अंशु प्रकाश की कहानी को ज्यादातर लोग सच नहीं मानते | बावजूद इस के कि अपन तो सब से पहले केजरीवाल को नक्सली मानते हैं | अपन भी अंशु प्रकाश की कहानी को सच नहीं मानते | पर बकौल मनीष तिवारी अगर कांग्रेस सच नहीं मानती , तो उस की वजह दूरगामी राजनीति है | 

 

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