कमल दा....ऐसे भले कोई छोड़कर जाता है...?

Publsihed: 04.Jul.2017, 15:28

प्रदीप रवात / कमल दा, जोशी जी और कुछ लोगों के लिए फिदेल कास्‍त्रो भी। पर मेरे लिए मेरे आदर्श श्री कमल जोशी जी। अभी एक सप्‍ताह ही तो हुआ था। मेरी फेसबुक पर पोस्‍ट पर उनका कमेंट आया था। लिखा था प्राउड ऑफ यू प्रदीप। आखिरी बार उनसे 15-16 मई के आसपास बात हुई थी। उनके नहीं रहने की खबर सुनने के बाद पहले तो विस्वास ही नहीं हुआ। कोटद्वार के साथी विजय पाल रावत ने फोन पर जानकारी दी। विजय ने जोशी जी के नहीं रहने की बात कहते ही मैंने उनसे सवाल किया। विजय क्‍या ऐसा हो सकता है....? विजय का जवाब था, नहीं। फिर कैसे कह रहे हो कि उन्‍होंने आत्‍महत्या की है....? विजय का फोन कटते ही कोटद्वार के एक और साथी का फोन आया। उसने भी यही कहा कि कमल दा नहीं नहीं रहे। मन नहीं माना तो मैंने उनके करीबी ईटीवी संवाददाता हिमांशु बडोनी को फोन किया। उन्‍होंने भी वही कहा जो पहले दो लोग कह चुके थे। बाजार में था। काफी देर तक स्‍कूटी ही नहीं चला पाया। हाथ-पैर जाम हो गए।

घुमक्‍कड़, यायावर, साहित्‍यकार, प्रकृति के चितेरे, हर किसी के मददगार। उनसे जुड़ा शायद ही कोई ऐसा होगा जो उनको करीब से न जानता हो। मैं उनके सानिध्‍य में लंबे समय तक रहा। हर पल मार्गदर्शन। गलत करने पर डांट और अच्‍छा करने पर प्रोत्‍साहन। यही उनकी खूबी थी। मेरे लिए वह इससे भी बढ़कर थे। निराशा के दौर में जब भी फंसा। उन्‍होंने मुझे बाहर निकाला। फेसबुक पर उनकी हर एक पोस्‍ट को फालो करना मेरी रोज की आदत में याद शुमार था। मैं जानता हूं। वह अभी बूढ़े नहीं हुए थे। उन्‍होंने एक बार कोटद्वार में वरिष्‍ठ नागरिक संगठन ने उनको अपने संगठन में शामिल होने के लिए कहा था। उन्‍होंने यह कहकर संगठन के लोगों को यह कहकर लौटा दिया कि कमल जोशी की उम्र बूढ़ी हो सकती है, लेकिन सोच और दिल मरते दम तक जवां रहेगा। मुझे तो धोखा दिया उन्‍होंने। नाराज हूं मैं उनसे। पर अब कौन सुनेगा। वह तो चले गए। कहा था देहरादून आ रहा हूं जल्‍द मिलने। वादा किया था उन्होंने मुझसे। बिना निभाए ही चुपके से चले गए। क्‍यों...? देश का शायद कोई कोना होगा, जहां कमल दा का कैमरा न पहुंचा हो। उनकी जादूई क्लिक हर किसी को दीवाना बना देती थी। जिन चीजों को लोग बेकार समझकर आगे बढ़ जाते थे। कमल दा उन्‍हीं चीजों और लोगों की फोटो को जीवंत कर देते थे। उत्‍तराखंड और उत्‍तराखंड की चिंता उनकी हर पोस्‍ट में होती थी। उनके कमरे के कोने में पड़ा वर्षों पुराना फोटो कैमरा और ब्‍लैक एंड ह्वाइट फोटो बनाने वाली मशीन। जीवन भर जमीन पर सोये। थोड़ी उम्र हुई तो चिकिनगुनिया ने बेड पर सोने के लिए मजबूर कर दिया। बीमारी ने परेशान किया, लेकिन उनका हौसला नहीं डिगा पाई। उठे और फिर निकल गए घुमक्‍कड़ी करने। फिर ऐसा क्‍या दर्द था कमल दा को जो, किसी को नहीं बताया। उनके करीब रहा। एक बीमारी थी, जो उनको परेशान करती थी। वह थी दमा। पर इसी बीमारी के साथ वह लद्दाक से दारमा, मिलम, स्‍वर्गारोहिणी से लेकर कई पगदंडियों पर निकल पड़ते थे। उनका एक साथी उनकी बाइक।उनके बिना कैसे रहेगी। पिछले कुछ दिनों से ज्‍यादा ही याद आ रहे थे। काश मुझे समझ आ जाता कि आप छोड़कर जाने वाले हो। मिलने आ जाता। कमल दा आपने हमें यूं ही क्यूं छोड़ दिया। एक बार बता तो देते। हम चले आते आपकी सेवा के लिए। आपकी परेशानियों को दूर करने के लिए। पर आपतो जिद्दी थे न। हर काम खुद ही करने की जिद्द। किसी को तकलीफ न देने की जिद्द। घुम्मकड़ी की जिद्द। हमको छोड़कर जाने की भी जिद्द थी क्या आपकी....? क्यों कमल दा....? ऐसे क्यों चले गए...? अलविदा कमल दा। ऐसा कहना भी मुश्किल हो रहा है।... आप मेरी यादों में, मेरे मन में, मेरी हर सांस के साथ बन रहेंगे।
---आपका...
प्रदीप रवात

आपकी प्रतिक्रिया