कोयले से बिजली उत्पादन घटाना होगा.

Publsihed: 02.Oct.2016, 14:16

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से कोझीकोड मे किए गए एलान के मुताबिक भारत ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस जलवायु समझौते की पुष्टि कर दी है. हालांकि भारत जलवायु परिवर्तन का जिम्मेदार नहीं है. ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा और अमेरिका का औसत नागरिक भारत के औसत नागरिक की तुलना में पांच से 12 गुना के बीच प्रदूषण फैलाता है. लेकिन दुनिया के सामने जिम्मेदार देश की मिसाल कायम करने के लिए भारत ने यह पहल की है, हालांकि बिजली उत्पादन के क्षेत्र में कोयले निर्भरता कम करनी होगी. 

भारत अब इस क्षेत्र में आगे बढ़ना आसान नहीं है. वैश्विक समुदाय को किए गए वादे के मुताबिक, उसे साल 2030 तक अपनी कुल बिजली क्षमता का 40 फीसदी हिस्सा गैर जीवाश्म ईंधन के स्रोतों से सुनिश्चित करना होगा, जो वर्तमान से 30 फीसदी अधिक है, विद्युत मंत्रालय के मुताबिक जो देश जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे, उन्हें जीवाश्म इधन पर अपनी निर्भरता साल 2005 की तुलना में साल 2030 में 30-35 फीसदी तक कम करनी होगी। भारत अपनी कुल बिजली का 75 फीसदी उत्पादन कोयले से करता है, जो अगस्त 2016 में घटकर 61 फीसदी हो गया है। पेरिस जलवायु समझौते को दिसंबर 2015 में दुनिया के 195 देशों ने मंजूरी दी है, जो साल 2020 में प्रभाव में आएगा। तब तक वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस तक कम करने की योजना बनाने की जरूरत है। जून 2016 में वर्ल्ड एनर्जी की सांख्यिकी समीक्षा के मुताबिक, चीन दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाला देश है, जो दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन का अकेले 27.3 फीसदी उत्सर्जन करता है। इसके बाद अमेरिका है, जो 16.4 फीसदी कार्बन तथा भारत 6.6 फीसदी कार्बन का उत्सर्जन करता है।

भारत ने एशिया प्रशांत में साल 2015 में 13.8 फीसदी कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जित किया और इस क्षेत्र में कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन के मामले में यह दूसरे स्थान पर है। जबकि 57 फीसदी कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन के साथ पहले स्थान पर है। इंडिया स्पेंड की मई 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक,भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन वैश्विक स्तर का लगभग 20वां हिस्सा है, जबकि दुनिया की आबादी का छठा हिस्सा भारत में रहता है.  

भारत वैश्विक स्तर पर पवनचक्की से बिजली उत्पादन करने वाला चौथा बड़ा देश है। पवनचक्की से बिजली उत्पादन की क्षमता साल 2014 के 114,609 मेगावाट से बढ़कर साल 2015 में 145,109 हो गई है, जो 12 फीसदी की वृद्धि दर्शाता है।

दुनिया की कुल सौर बिजली उत्पादन का 2.2 फीसदी बिजली का उत्पादन भारत करता है और इस मामले में यह शीर्ष 10 देशों में शुमार है। चीन की अधिकत सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता 18.9 फीसदी है, जिसके बाद जर्मनी की 17.2 फीसदी और जापान की 15.4 फीसदी है। भारत जैसे-जैसे विकास करेगा, उसकी चुनौतियां बढ़ती ही जाएंगी।इंडिया स्पेंड की मार्च 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शहरी इलाकों में जंगलों की कटाई की संभावना है, जिसके कारण भारत के कई शहरों में पेड़ अपनी भूमि की तुलना में पांच फीसदी तक कम हो जाएगी।

यूनियन ऑफ कंसन्र्ड साइंटिस्ट्स के मुताबिक, जब पेड़ों की कटाई होगी, तो वे संग्रहित कार्बन डाई ऑक्साइड को छोड़ेंगे। वनों की कटाई से करीब तीन अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड निकलेंगे।इंडिया स्पेंड की मई 2015 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जैसे-जैसे भारत विकास करेगा कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में वृद्धि होगी।बिजनेस स्टैंडर्ड की सितंबर 2015 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, समस्याओं के बावजूद सरकार ने महतवाकांक्षी उद्देश्यों को उल्लिखित किया है। कम से कम 50 फीसदी बिजली का उत्पादन गैर जीवाश्म स्रोतों से हो सकता है।

बिजली के उत्पादन के लिए जीवाश्म से गैर जीवाश्म की ओर बढ़ना बेहद महंगा होगा और इसके लिए फंडिंग तथा प्रौद्योगिकी के लिए विकसित देशों के साथ मिलकर काम किया जाएगा।अगर वैश्विक हालात में बदलाव होता है और अन्य देश अपनी प्रतिबद्धता पूरी नहीं कर पाते हैं, तो भारत अपने रुख की समीक्षा कर सकता है। ( कतरन )

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