लेफ्ट ने गवर्नर की आलोचना के बाद अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एस. राजेंद्र बाबू को कटघरे में खड़ा किया। नंदीग्राम का जिक्र जो भी करेगा। लेफ्ट के निशाने पर आ जाएगा। गुजरात की तरह नंदीग्राम पर स्टिंग आपरेशन हुआ। तो मीडिया भी लेफ्ट के निशाने पर होगा। वैसे भी सांसदों को लिखी खुली चिट्ठी में सीपीएम ने कहा- 'मीडिया की रिपोर्टिंग एकतरफा।' लेफ्ट चाहता है- 'जो वह कहे, मीडिया वही छापे।' मीडिया को नंदीग्राम में घुसने की इजाजत नहीं।
शुरुआती आलोचना के बाद कांग्रेस ने पूरी तरह चुप्पी साध ली। जबकि इस बार सीपीएम के अत्याचार मार्च से कहीं ज्यादा। जब तक भारत में थे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जुबान नहीं खोली। पर विदेश यात्रा पर जाते हुए विमान में जब घेर लिए गए। तो बोले- 'राज्य सरकार का काम है सभी नागरिकों की रक्षा करें।' पर बुध्दिजीवी वर्ग नंदीग्राम और गोधरा के बाद हुए गुजरात के नरसंहार में फर्क नहीं मानता। यही बात जस्टिस एस. राजेंद्र बाबू ने कही। तो लेफ्ट ने मंगलवार को कड़ी चिट्ठी लिखी। लेफ्ट ने बहुत कोशिश की संसद में नंदीग्राम पर बहस न हो। उसके कुकर्म संसद के रिकार्ड में न आएं। पर बुधवार को संसद के दोनों सदनों में नंदीग्राम पर बहस होगी। यह लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी का फैसला नहीं। अलबत्ता शरद पवार की ओर से बनाई गई सहमति से तय हुआ। मार्च में जब नंदीग्राम में सीपीएम की पहली हिंसा हुई। तो स्पीकर ने राज्य का मुद्दा बताकर बहस नहीं होने दी। स्पीकर का रवैया इस बार भी वही था। सो तीन दिन संसद एक कदम नहीं चली। बीजेपी ने नंदीग्राम पर काम रोको बहस मांगी। लेफ्ट ने माओवादी-नक्सली हिंसा पर बहस मांगी। कांग्रेस ने मुसलमानों, महिलाओं, बच्चों पर अत्याचार को मुद्दा बनाना चाहा। पर कोई किसी के सुझाव पर राजी नहीं हुआ। तृणमूल के दिनेश त्रिवेदी तो नंदीग्राम मुद्दे पर अड़ गए। मार्च में सिर्फ उन्होंने कई दिन राज्यसभा नहीं चलने दी। इस बार दोनों सदनों में कमान पूरे एनडीए के हाथ। आखिर मंगलवार को बीच-बचाव का काम शरद पवार को सौंपा गया। जिनने सभी दलों के नेताओं से सलाह मशविरा किया। शाम को प्रियरंजन दासमुंशी ने फैसला सुनाया- 'बहस नंदीग्राम पर आधारित होगी न कि बाकी राज्यों की हिंसा केंद्रित।' दासमुंशी ने पहले दिन जरूर नंदीग्राम का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। पर जब लेफ्ट ने एटमी करार पर नरम रुख अपना लिया। तो दासमुंशी समेत पूरी कांग्रेस ने चुप्पी साध ली।
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