देश बचाना है, तो आतंकवादी का धर्म देखकर कार्रवाई करने की नीति छोड़नी होगी। बोट पर आने वालों से तो एनएसजी ने निपट लिया, वोट वालों से कैसे निपटेगा देश।
आतंकवादी और आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले फ्रांस की क्रांति के बाद 1795 में हुआ। क्रांतिकारी सरकार की आतंक की नीतियां लागू करने वाली जन सुरक्षा और राष्ट्रीय कंवेशन कमेटी को आतंकवादी कहा गया। इस तरह आतंकवाद का अर्थ तब मौजूदा अर्थ से बिल्कुल भिन्न और सकारात्मक था। वैसे आतंकवाद की शुरुआत पहली ही सदी में हो गई थी, जब रोमनो ने खाड़ी में यहूदियों की जमीन पर कब्जा कर लिया था। यहूदियों के दो गुट खड़े हुए, जो रोमनो और उनका समर्थन करने वाले यहूदियों की भी हत्या करते थे। ग्यारहवीं सदी से लेकर तेरहवीं सदी के बीच ईरान और सीरिया में एसेसिन नामक इस्लामिक गुट सक्रिय थे, जो राजनीतिक हत्याएं करते थे। सोलहवीं सदी की शुरू में गे फाक्स ने अंग्रेजी राजशाही के खिलाफ विद्रोह कर किया था, इंग्लिश इतिहासकार उसे पहला आतंकवादी मानते हैं।
लेकिन आतंकवाद और आतंकवादी शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल 1795 में फ्रांसीसी क्रांति के बाद ही हुआ, हालांकि तब उसका इस्तेमाल सकारात्मक रूप में लिया गया।
उन्नीसवीं सदी में दुनिया के कई कोनों में राष्ट्रवादी भावनाएं पैदा हुई, जिससे गुरिल्ला युध्द शुरू हुए। दुनिया के बड़े हिस्से में ब्रिटिश हुकूमत थी। ब्रिटिश, फ्रांस और अन्य साम्राज्यों के खिलाफ जगह-जगह शुरू हुए आंदोलनों में अनेक स्थानों पर गुरिल्ला युध्द भी आक्रोश का एक हिस्सा बना। दुनिया के हर हिस्से में राष्ट्रवादी एजेंडे को सामने रखकर आतंकवादी गुट खड़े हुए। ग्रेट ब्रिटेन से अलग होने के लिए आयरिश रिपब्लिकन आर्मी का गठन हुआ। भारत में भी आजाद हिंद फौज का गठन हुआ। बीसवीं सदी की शुरुआत में टर्की, सीरिया, ईरान और इराक में कुर्दों ने राष्ट्रीय स्वायतता के लिए संगठन खड़े किए। कुर्दिश राज्य का गठन करने के लिए 1970 में कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी का गठन हुआ, जिसने अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए आतंकवादी तरीके अख्तियार किए। इराक में कुर्दों की तादाद सबसे ज्यादा थी, जहां सुन्नी शासक सद्दाम हुसैन ने उन्हें कुचल दिया। साठ के दशक में आतंकवादियों ने अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए नए-नए तौर-तरीके अपनाने शुरू कर दिए। जिसके तहत 1968 में फिलिस्तीनी लिबरेशन आर्मी ने विमान अपहरण किया। चार साल बाद 1972 के म्यूनिक ओलंपिक में एक फिलिस्तीनी संगठन ने बंदियों की रिहाई के लिए इजराइली एथलीट की हत्या कर दी। शीत युध्द के समय सोवियत यूनियन ने अफगानिस्तान पर कब्जा करने की कोशिश की, तो अलकायदा नाम से आतंकवादी संगठन खड़ा हुआ, जिसने बाद में लंबे समय तक अफगानिस्तान पर शासन भी किया। सोवियत संघ टूटने के बाद सोवियत निर्मित हथियार सस्ते में आतंकवादियों के हाथ लगने लगे, इसके साथ ही एके-47 जैसी राइफल आतंकवादियों के हाथ आ गई। जिसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया गया। पाकिस्तान के बटवारे के बाद भारत से बदला लेने के लिए पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक ने भारत के टुकडे क़रवाने के लिए आप्रेशन टोपाज शुरू किया। जिसके तहत कश्मीर में आतंकवादी संगठन खड़े किए गए और पंजाब को भारत से अलग करवाकर खालिस्तान नाम से सिखों का अलग देश बनवाने के लिए कई आतंकवादी संगठन खड़े किए। कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से बाहर निकाल दिया है, इसके बावजूद आतंकवादियों को वहां की जनता का पूरा समर्थन नहीं मिल रहा, आंदोलन अब भी जारी है। खालिस्तान को पंजाब की सिख जनता का समर्थन नहीं था, इसलिए वह आंदोलन भी अपनी मौत खुद मर गया। लेकिन हिंसक आंदोलन को कुचलने के लिए हुए आप्रेशन ब्लू स्टार के कारण भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई। श्रीलंका में अल्पसंख्यक तमिलों ने अलग से तमिल राज्य बनाने के लिए लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम का गठन किया, इस आंदोलन को कुचलने के लिए श्रीलंका में भारतीय सेना भेजे जाने के खिलाफ भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मानव बम से हत्या कर दी गई।
इक्कीसवीं सदी में अब हम मानव बमों से होने वाले फिदायीन हमले के युग में जी रहे हैं। यह आतंकवाद का सबसे वीभत्स रूप है, जिसमें इंसान के जेहन में इतना जहर घोल दिया जाता है कि वह हत्या करने के लिए अपनी जान पर खेलने को तैयार हो जाता है। मानव बम से राजीव गांधी की हत्या के बाद पाकिस्तान में ट्रेंड आतंकवादियों ने भी वही तरीका अख्तियार किया है। एक तरफ टाइम बम रखकर आतंकवादी वारदातें करने का सिलसिला जारी है, तो दूसरी ओर दुनियाभर में फिदायीन हमले भी बढ़ रहे हैं। फिदायीन हमलावर यह सोचकर ही आते हैं कि उन्हें जिंदा वापस नहीं जाना है। बीसवीं सदी के आखिरी हफ्ते में भारतीय विमान का अपहरण करके कंधार ले जाया गया। उस समय भारत सरकार ने अमेरिका से मदद मांगी थी, जिसे अमेरिका ने अनसुना कर दिया, लेकिन ग्यारह सितंबर 2001 को अलकायदा के उन्नीस आतंकवादियों ने अमेरिका में चार हवाई जहाजों का अपहरण किया और उनकी न्यूयार्क, वाशिंगटन और पेनसिल्वानिया में महत्वपूर्ण अमेरिकी इमारतों के साथ भिड़ंत करके इस सदी का सबसे भीषण आतंकवादी वारदात की। तो अमेरिका ने इस घटना के फौरन बाद संयुक्त राष्ट्र की बैठक बुलाकर पूरी दुनिया में आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने की मुहिम छेड़ी। सुयंक्त राष्ट्र की अपील के बाद पूरी दुनिया में आतंकवाद के खिलाफ कड़े कानून बनाए गए, भारत में भी आतंकवाद निरोधक कानून पोटा लागू किया गया, लेकिन उसके संसद से पास होने से पहले ही तेरह दिसंबर 2001 को सात आतंकवादियों ने भारतीय संसद में घुसकर फिदायीन हमला कर दिया। जहां एक तरफ पूरी दुनिया में आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया जा रहा है, वहां भारत में आतंकवादी कानून को लेकर राजनीति हुई और 2004 में कांग्रेस ने सत्ता में आते ही पोटा कानून को रद्द कर दिया। संसद पर हमला करने की साजिश रचने वाले अफजल की फांसी पर अनिश्चित कालीन रोक लगा दी गई है। भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की अनिच्छा से आतंकवादियों के हौसले बढ़ गए हैं। पिछले चार सालों में आतंकवादी वारदातों के रिकार्ड टूट गए हैं। सबसे ताजा उदाहरण मुंबई में हुआ फिदायीन हमला है। जिसमें समुद्र के रास्ते पाकिस्तान से आए सिर्फ दस आतंकवादियों ने मुंबई के दक्षिणी छोर से प्रवेश करके कुछ घंटों के भीतर होटल ताज, होटल ओबराय, छत्रपति शिवाजी टर्मिनल रेलवे स्टेशन और भारत में यहूदियों की इमारत छाबड़ सेंटर नरीमन पाइंट पर कब्जा कर लिया। साठ घंटे तक चली मुठभेड़ में सभी दस फिदायीन आतंकवादी तो मारे गए, लेकिन बीस विदेशी मेहमानों समेत कम से कम दो सौ लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। शुरुआती छानबीन में पता चला है कि आतंकवादियों को पाक अधिकृत कश्मीर और कराची में ट्रेनिंग दी गई थी। पाकिस्तानी जहाज आतंकवादियों को भारतीय सीमा तक छोड़ने आया था। भारतीय सीमा में घुसने के बाद आतंकवादियों ने भारतीय मछुआरे की बोट पर कब्जा किया और कोलाबा के सूसोन डाक से तट पर उतर गए। अब एक नई बहस शुरू हो गई है, खुफिया एजेंसियों ने समय रहते सूचना दी थी या नहीं। राज्य सरकार और खुफिया एजेंसियां एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं।
क्या भारत में आतंकवाद का राजनीतिकरण हो गया है? क्या ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि ज्यादातर वारदातों में एक ही समुदाय के विदेशी आतंकवादी शामिल हैं? क्या कुछ भारतीय राजनीतिक दल उस समुदाय के भारतीय नागरिकों का वोट हासिल करने के लिए आतंकवाद पर नरम रुख अपना रहे हैं? अगर ऐसा है, तो क्या वे राजनीतिक दल उस समुदाय के भारतीय नागरिकों की राष्ट्रभक्ति पर संदेह नहीं कर रहे हैं? क्या आतंकवाद को किसी धर्म के साथ जोड़कर देखना राष्ट्र के प्रति अपराध नहीं? जिन लोगों ने बटवारे के समय भारत चुना था, अब उनकी निष्ठा पर सवाल क्यों उठाया जा रहा है? क्या नेताओं के लिए देश से बड़ा वोट हो गया है? बोट से घुसपैठ करने वालों से तो एनएसजी ने निपट लिया, अब वोट से सत्ता हासिल करने वालों से निपटना बाकी है।
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