धर्मांतरण के अधिकार से उपजा टकराव

Publsihed: 22.Sep.2008, 05:31

कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश में चर्च के खिलाफ आक्रोश हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ आई नई किताब 'सत्यदर्शनी' के कारण फैला। धर्म प्रचार के अधिकार का इस्तेमाल दूसरे धर्म के खिलाफ विषवमन के लिए नहीं होना चाहिए।

उड़ीसा में स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या के बाद उग्र हिंदू संगठनों ने ईसाईयों के खिलाफ जगह-जगह पर हिंसक वारदातें की। हिंसा में जानमाल की भारी हानि हुई। उड़ीसा की आग अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि कर्नाटक में हिंसक वारदातें शुरू हो गईं। कर्नाटक के बाद केरल और मध्यप्रदेश में भी हिंदुओं का गुस्सा ईसाईयों के खिलाफ फूट पड़ा।

उड़ीसा में तो बात समझ में आ रही थी, स्वामी लक्ष्मणानंद चालीस साल से कंधमाल इलाके में ईसाईयों के धर्मांतरण आंदोलन का विरोध कर रहे थे। इसलिए हिंदुओं ने लक्ष्मणानंद की हत्या का ठीकरा चर्च के खिलाफ फोड़ा। हालांकि पुलिस का शुरूआती बयान यह था कि हत्या के पीछे नक्सलियों का हाथ है, लेकिन हिंदू इस पर भरोसा करने को तैयार नहीं थे। भरोसा न करने की वजह यह थी कि पिछले एक साल से स्वामी लक्ष्मणानंद का चर्च के साथ टकराव चल रहा था। जहां चर्च पिछले सौ सालों से आदिवासियों को ईसाई बनाने की मुहिम चलाए हुए है, वहां स्वामी लक्ष्मणानंद ने चालीस साल पहले धर्मांतरण करने वाले  ईसाईयों को हिंदू बनाने का काम कर रहे थे। लक्ष्मणानंद की मुहिम का विरोध करने वालों का एक तर्क यह भी है कि जैसे ईसाई धर्मांतरण करवा रहे हैं, हू-ब-हू वैसे ही लक्ष्मणानंद भी धर्मांतरण करवा रहे हैं। क्योंकि आदिवासी मूलत: जड़-पूजक होते हैं, हिंदू नहीं।

धर्म परिवर्तन ईसाई धर्म का अभिन्न अंग है। चर्च ने पूरी दुनिया को ईसाई बनाने का बीड़ा उठा रखा है। इसलिए पोप ईसाई धर्म के प्रचारक पूरी दुनिया में भेजते हैं। कर्नाटक के तटीय इलाकों में ईसाई मत का प्रचार अंग्रेजों के भारत आने के साथ ही शुरू हुआ था। समुद्र के रास्ते भारत में प्रवेश करने वाले ईसाईयों ने तटीय इलाकों में धर्म परिवर्तन शुरू करवाया।  देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले लगभग सभी तटीय इलाकों में ईसाईयों की तादाद ज्यादा है। कर्नाटक का तटीय शहर मेंगलूर अविभाजित भारत में ईसाई धर्म प्रचार का महत्वपूर्ण स्थान बना। ईसाईयों में मेंगलूरियन ईसाईयों को विशेष दर्जा हासिल है। जहां-जहां ईसाई ज्यादा फैले, वहां-वहां हिंदुओं ने भी प्रतिक्रिया में अपना काम बढ़ाया, जिससे अपना धर्म फैलाने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई। मेंगलूर में यह प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा दिखाई देती है, जहां चर्च की तरह संघ परिवार का काम भी ज्यादा है। कंधमाल के बाद कर्नाटक की मेंगलूर ही वह जगह थी, जहां हिंदुओं का गुस्सा चर्च के खिलाफ फूटा। लेकिन बाद में जो तथ्य सामने आए, उनसे पता चला कि कर्नाटक में चर्च के खिलाफ शुरू हुई हिंसा का कंधमाल की घटना से कोई लेना-देना नहीं। अलबत्ता ठीक उसी समय कर्नाटक और केरल में हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ एक किताब वितरित की गई। 'सत्यदर्शनी' नाम की यह किताब मूल रूप से अंग्रेजी में छपी है, जिसके लेखक हैं परवस्तु सूर्यनारायण। किताब के नाम और लेखक के नाम से स्पष्ट है कि दोनों ही बातें फर्जी हैं। किताब क्योंकि हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ है इसलिए स्पष्ट है कि उसका लेखक कोई हिंदू नहीं हो सकता, अलबत्ता जरूर अन्य धर्मावलंबी होगा। अंग्रेजी की किताब का कन्नड़ अनुवाद श्रीराम रेड्डी ने किया है और प्रकाशन करुणामयी ट्रस्ट की ओर से किया गया है। अनुवादक का नाम भी श्रीराम शरारतन लिखा माना जा रहा है। कर्नाटक में हिंदुओं का गुस्सा इसी किताब के खिलाफ भड़का था, न कि उड़ीसा के कंधमाल में स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या के खिलाफ।

यह कोई पहली बार नहीं हुआ है, जब चर्च और ईसाई शिक्षण संस्थाओं की ओर से हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ साहित्य बांटा और प्रसारित किया गया हो। दो साल पहले राजस्थान में भी केरल के ईसाई लेखकों की हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ किताब बांटी गई थी, जिस पर हिंसक प्रतिक्रिया हुई थी। धर्मांतरण देश में सांप्रदायिक हिंसा की बड़ी वजह बन चुकी है। मुगल काल की समाप्ति के बाद मुसलमानों की ओर से धर्मांतरण मंद पड़ गया था तो ब्रिटिश राज के दौरान ईसाईयों की ओर से धर्मांतरण ने जोर पकड़ लिया। देश की आजादी के बाद जब संविधान बन रहा था, तो संविधान सभा में धर्मांतरण के मुद्दे पर भी बहस हुई थी। कांग्रेस के प्रतिनिधि प्रोफेसर केटी शाह ने एक संशोधन के जरिए मांग की थी कि स्कूलों, कालेजों, अस्पतालों, अनाथालयों आदि को धर्म प्रचार करने की छूट नहीं होनी चाहिए। इसके साथ ही ऐसी संस्थाओं को भी धर्म प्रचार की छूट नहीं मिलनी चाहिए जहां कच्ची उम्र या अपरिपक्व मस्तिष्क के लोगों को उनके अध्यापकों, नर्सों, डाक्टरों या उनकी देखभाल करने वालों को प्रभावित करने का मौका मिले।  कांग्रेस के ही सांसद के. संथानम ने 'प्रचार' पर उठाई गई आपत्तियों का उल्लेख करते हुए सदस्यों को आश्वस्त किया था कि अनुच्छेद में 'धर्मांतरण' शब्द नहीं है। इसी बहस के दौरान कांग्रेस के टीटी कृष्णामचारी और केएम मुंशी ने 'प्रचार' के अधिकार को बनाए रखने की जोरदार वकालत की। केएम मुंशी ने इसी बहस के दौरान खुलासा किया कि भारतीय ईसाईयों को यह वचन दिया जा चुका है कि उन्हें अपने धर्म का प्रचार करने का मूलभूत अधिकार होगा। उन्होंने कहा- 'सर्वसम्मति के लिए ऐसा करना जरूरी था।' केएम मुंशी ने संविधान सभा में कहा कि धर्म परिर्तन ईसाई धर्म का अभिन्न अंग है। संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी दी गई है, उसका इस्तेमाल करके कोई समुदाय किसी को स्वेच्छा से अपना धर्म स्वीकार करने के लिए तैयार कर सकता है। केएम मुंशी ने कहा-' इस प्रावधान के जो भी नतीजे निकलें, हमें समझौते का सम्मान करना है।' इस बात का कभी खुलासा नहीं हुआ है कि कांग्रेस ने, महात्मा गांधी ने या जवाहर लाल नेहरू ने ईसाईयों को आजाद भारत में ईसाईयत का प्रचार करने की गारंटी कब-कैसे और किस अधिकार के साथ दी थी। क्या यह गारंटी आजादी के समय  कांग्रेस की ओर से ब्रिटिश सरकार को दी गई थी? ऐसी क्या मजबूरी थी कि संविधान सभा में इसका खुलासा नही किया गया और केएम मुंशी के अलावा टीटी कृष्णामचारी ने कहा- 'सदस्यों को अनावश्यक रूप से आशंकित नहीं होना चाहिए। हम नागरिकों को धर्म का प्रचार करने और धर्म का परिवर्तन करने का मूलभूत अधिकार दे रहे हैं और यह अधिकार सिर्फ एक विशेष समुदाय को नहीं होगा, सभी धर्मावलंबियों को होगा।' धर्म प्रचार की मुखालफत करने वालों ने संविधान सभा में तर्क दिया था कि संविधान में मिली इस छूट का दुरुपयोग होगा। कांग्रेस  में धर्म का प्रचार करके धर्मांतरण करवाने का अधिकार दिए जाने पर गहरे मतभेद थे, कांग्रेस के ही सांसद लोकनाथ शुरू में प्रचार के अधिकार का कड़ा विरोध कर रहे थे, लेकिन केएम मुंशी की ओर से ईसाईयों को दिए गए धर्म प्रचार की गारंटी का खुलासा किए जाने के बाद उन्होंने विरोध करना बंद कर दिया।

देश की आजादी के बाद पूर्वोत्तर, तटीय इलाकों और आदिवासी आबादी वाले इलाकों में चर्च ने स्कूलों, कालेजों, अस्पतालों के माध्यम से अपने धर्म प्रचार को तीव्रगति से बढ़ाया। संविधान सभा में बहस के दौरान जो आशंकाएं व्यक्त की गई थी वे बार-बार सही साबित हुई। कभी उत्तर प्रदेश के कानवेंट स्कूलों में कृष्ण की पत्थर से बनी मूर्ति को पानी में डुबोकर दिखाने और ईसा मसीह की प्लास्टिक से बनी मूर्ति को तैरता हुआ दिखाकर कच्ची उम्र के अपरिपक्व मस्तिष्क पर प्रभाव डालने की कोशिशों का खुलासा हुआ। कभी राजस्थान में हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ साहित्य बांटकर ईसाईयत को हिंदुत्व से श्रेष्ठ बताने का कुचक्र चलाने का खुलासा हुआ। तो कभी पूर्वोत्तर में चर्च की ओर से ईसाईयों को ईसाई उम्मीदवार के पक्ष में ही वोट डालने के फतवे सामने आए। ऐसी घटनाओं से हिंदुओं का आक्रोशित होना स्वाभाविक है, कांग्रेस ने ईसाईयों को धर्म प्रचार की गारंटी दी होगी, लेकिन दूसरे धर्म को नीचा दिखाकर अपमानित करने की कोई गारंटी तो नहीं दी होगी। इसलिए अब यह कांग्रेस की जिम्मेदारी है, कि वह बहुसंख्यक हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करने की गारंटी दे, मौजूदा स्थिति उसी की गलती से पैदा हुई है।

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