राजनेताओं की संपत्ति में आमदनी से ज्यादा इजाफा कैसे हो जाता है। भारत की आम जनता इसे बाखूबी जानती है, लेकिन हमारा कानून नहीं जानता। आप शायद ही ऐसे किसी नेता का नाम बता सकें, जो आमदनी से ज्यादा संपत्ति पाए जाने के बाद जेल की सालाखों में गया हो। आप ऐसे अनेक नेताओं का नाम जानते होंगे, जिनके यहां आयकर के छापों में आमदनी से ज्यादा संपत्ति पाई गई, लेकिन उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। सुखराम के अलावा जयललिता, लालू यादव, मायावती जैसे कितने ही नाम आप भी जानते होंगे, जो आपकी आंखों के सामने देखते-देखते करोड़पति और अरबपति हो गए।
जिन चार वरिष्ठ नेताओं का नाम लिया गया है, उनमें से दो आमदनी से ज्यादा संपत्ति पकड़े जाने के बाद भी इस समय मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री हैं। बाकी दोनों में भी एक बाद में मुख्यमंत्री और एक राज्य सरकार में मंत्री रह चुका है। मायावती और लालू यादव के संपत्ति से जुड़े मामले अदालतों में लंबित हैं और दोनों हमारे भाग्य विधाता हैं। हमें भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण का एक लाख रुपए लेकर दराज में रखता चेहरा आज भी याद है, लेकिन मायावती, लालू यादव, सुखराम और जयललिता ने किस रास्ते से और कब नोटों की गड्डियां लेकर अपार संपत्ति बनाई, हमने नहीं देखा। इनमें से किसी का भी कुछ नहीं बिगड़ा, जबकि बंगारू लक्ष्मण राजनीति के बीयाबान में खो गए। क्या हमने यह सिध्दांत मान लिया है कि जो पकड़ा जाए वही चोर है। जितना धन इन राजनेताओं से पकड़ा जाता है, उसका हिसाब-किताब कभी जनता के सामने नहीं रखा जाता। हम कुछ दिन तक कसमसा कर रह जाते हैं और यह दुनिया ऐसे ही चलती रहती है। हम फिर इन्हीं नेताओं को खुद पर राज करने के लिए बिठा देते हैं।
सवाल यह है कि क्या महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल ऐसी राजनीतिक संस्कृति की परिकल्पना करते थे। महात्मा गांधी को आजादी के बाद जल्द ही अहसास हो गया था कि कांग्रेस के नेता राजनीति में पवित्रता नहीं रख रहे हैं। इसलिए उन्होंने देश की आजादी दिलाने वाली कांग्रेस को भंग करने की सलाह दी थी। आजादी के शुरूआती दिनों में ही राजनेताओं का धन के प्रति मोह दिखाई देने लगा था और नेहरू व पटेल को गंभीर स्थितियों का सामना करना पड़ा था। पहली सरकार के एक राज्यमंत्री ने एक मामले में मांग कर रिश्वत ली थी, यह बात सरदार पटेल के कानों में पड़ी, तो उन्होंने आईबी से रिपोर्ट देने को कहा। आईबी की रिपोर्ट के बाद भी पटेल ने जांच करवाई और शिकायत सही पाई जाने पर न सिर्फ मंत्री के खिलाफ मुकदमा दायर करवाया बल्कि उन्हें गिरफ्तार करने के आदेश भी दिए। जवाहर लाल नेहरू भ्रष्टाचार को लेकर सरदार पटेल जितने गंभीर नहीं थे, वह पटेल की इस हरकत से मुश्किल में फंस गए थे और उन्हें मंत्री को हटाना पड़ा था। नेहरू के भ्रष्टाचार के प्रति नरम रवैये के कुछ और सबूत भी मौजूद हैं। पाकिस्तान ने जब 22 अक्टूबर 1947 को कश्मीर पर हमला किया, तो जवाहर लाल नेहरू ने ब्रिटेन स्थित भारतीय उच्चायुक्त बीके कृष्णा मेनन को पहाड़ी रास्तों पर चलने वाली जीपों की खरीददारी करने का जिम्मा सौंपा। कृष्णा मेनन ने एक संदेहास्पद कंपनी को 4603 जीपों का आर्डर दे दिया, बहुत ही घटिया क्वालिटी की जीपों की सप्लाई हुई और वह भी जंग खत्म हो जाने के बाद। बवाल खड़ा हुआ, तो जवाहर लाल नेहरू को जांच के लिए अयंगर कमेटी बनानी पड़ी। कमेटी ने तीन साल बाद 1951 में रिपोर्ट दी, रिपोर्ट में कृष्णा मेनन पर शक की सुई टिकी थी, लेकिन नेहरू ने यह रिपोर्ट कभी जग जाहिर नहीं की। कृष्णा मेनन का बाल भी बांका नहीं हुआ, अलबत्ता जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें बिना विभाग का मंत्री बनाकर दिल्ली बुला लिया, बाद में उन्हें देश का रक्षा मंत्री बना दिया गया। रक्षा खरीददारी में तभी से बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के पांव पड़ गए थे।
भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू से राजनीतिक इच्छा शक्ति होती, तो आज हमें ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता। हाल ही में यूपीए सरकार की ग्रामीण रोजगार योजना में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार पकड़ा गया, एक स्वयंसेवी संगठन ने मध्यप्रदेश में इस योजना के तहत चल रही परियोजना का अवलोकन किया तो पाया कि जहां रजिस्टर में 180 का नाम दर्ज था, वहां मौके पर सिर्फ आठ लोग काम कर रहे थे। एक जगह पर मृतकों का नाम भी रोजगार योजना का लाभ पाने वालों की सूची में शामिल पाया गया। एक व्यक्ति रोजगार के लिए किसी दूसरे राज्य में पलायन कर चुका था लेकिन उसका नाम ग्रामीण रोजगार योजना में दिहाड़ी हासिल करने वालों की सूची में शामिल था। पश्चिम बंगाल में तो कई जगह पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने ग्रामीण रोजगार योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में पार्टी के दफ्तर बनवा लिए हैं। भ्रष्टाचार का यह मामला ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह के सामने लाया गया, तो उन्होंने गंभीरता दिखाने की बजाए राजीव गांधी का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने गांवों में एक रुपया भेजने पर पंद्रह पैसे पहुंचने की बात कही थी, लेकिन अब कम से कम पचास पैसे पहुंच रहे हैं। जवाहर लाल नेहरू से इंदिरा गांधी और राजीव गांधी से होते हुए भ्रष्टाचार के बारे में हमारी मानसिकता यहां तक पहुंच गई है कि हमें पचास फीसदी भ्रष्टाचार जायज लगता है। सरकारें जब सत्ता तक पहुंचने और सत्ता पाने के लिए भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी का सहारा लेने लगे तो भ्रष्टाचार हमारे जीवन का हिस्सा बनना लाजिमी है। नरसिंह राव ने अपनी अल्पमत सरकार बचाने के लिए झारखंड मुक्तिमोर्चा के चार सांसदों को नकद मोटी रकम देकर खरीदा था। चारों सांसदों ने वह रकम अपने-अपने बैंक खातों में जमा करवाई थी। भ्रष्टाचार के नोट गिनने के लिए बैंक के कर्मचारी देर रात तक डयूटी पर रहे थे। बाद में मुकदमा चला, तो सब कुछ साबित हो गया, लेकिन कानून में पेंच यह निकला कि संसद से बाहर दी गई रिश्वत को संसद के भीतर होने वाले काम से कैसे जोड़ा जा सकता है और चारों सांसदों के साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी बरी हो गए।
चारों सांसदों ने बैंक के अपने-अपने खाते में जमा कराई राशि को पार्टी का फंड कहा था। हालांकि वह तब तो साबित नहीं हुआ, लेकिन बाद में एक बड़े नेता ने इसे अपने जीवन में बाखूबी इस्तेमाल किया। झारखंड मुक्ति मोर्चा केस के बाद राजनेताओं ने रिश्वत और भ्रष्टाचार को कानूनी जामा पहनाना सीख लिया है। मायावती ने दिल्ली, मसूरी, लखनऊ में करोड़ों रुपए की जायदाद अपने और पारिवारिक सदस्यों के नाम पर खरीद ली है और वह इसे अपने समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं की ओर से दिया गया उपहार बता रही हैं। मायावती देश की ऐसी पहली मुख्यमंत्री बन गई हैं जिन्होंने बिना किसी काम धंधे के करोड़ों रुपए का आयकर भरा है। आयकर विभाग उनसे यह नहीं पूछता कि उन्हें आमदनी कहां से हुई। यह पता ही नहीं चल रहा कि उन्हें आमदनी कहां से हुई। नेताओं ने आय से अधिक संपत्ति को कानूनीजामा पहनाने के अब कई रास्ते ढूंढ लिए हैं। मायावती ने एक रास्ता दिखाया है तो गृहमंत्री शिवराज पाटिल और लालू प्रसाद यादव ने अनुभवों से सीखकर नए रास्ते ईजाद किए हैं। शिवराज पाटिल अपने बेटे शैलेष के माध्यम से और लालू यादव अपनी बेटी रागिनी के माध्यम से अपने सरकारी आवासों से दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं। शिवराज पाटिल का बेटा बिना पैसे लगाए हरियाणा की एक डिस्टलरी कंपनी में पचास फीसदी के हिस्सेदार हो गए हैं, उन्हें सरकारी अड़चनें वक्त से पहले निपटवाने के बदले हिस्सेदारी मिली है। लालू यादव ने अपनी बेटी रागिनी को भारतीय जीवन बीमा निगम का एजेंट बनवाकर गांधी छाप असली नोटों की मशीन लगा ली है। चार महीने की अल्पावधि में रागिनी ने इक्कीस करोड़ रुपए का बीमा करके देश में नया रिकार्ड कायम किया है। इतना बीमा देश के लाखों बीमा एजेंट बीस-बीस साल काम करके भी हासिल नहीं कर पाते क्योंकि वे किसी मंत्री के बेटे-बेटियां नहीं होते।
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